संपादकीय

प्लास्टिक से हो रहा पर्यावरण निरंतर बीमार !

सुनील कुमार महला
फ्रीलांस राइटर, कालमिस्ट व युवा साहित्यकार (उत्तराखंड)

बढ़ती आबादी और विकास के बीच अब धीरे धीरे पहाड़ों के स्वास्थ्य को लगातार खतरा बढ़ता चला जा रहा है। पहाड़ों में अंधाधुंध कटान, जंगलों की आग(दावानल) और शहरों में बढ़ता प्रदूषण पर्यावरण की सेहत के लिए बड़ा खतरा बना हुआ है। मिट्टी, पानी और हवा पर इसका बहुत ही बुरा असर पड़ रहा है। कटते पहाड़ों से जहां भूस्खलन जोन बढ़ रहे हैं। वहीं, प्रदूषण से धरती की आबोहवा दूषित होने के साथ ही आग भी हमारे ईको सिस्टम(पारिस्थितिकी तंत्र) को लगातार प्रभावित कर रही है। प्लास्टिक कचरा पहाड़ों के लिए एक अन्य बड़े खतरे के रूप में उभर रहा है। पहाड़ी क्षेत्र पर्यटन की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण क्षेत्र होने के कारण यहां बहुत से लोग हर साल घूमने फिरने के लिए आते हैं। विदेशी पर्यटकों की पहली पसंद हिल स्टेशन ही होते हैं। वास्तव में सच तो यह है कि आजकल पहाड़ प्रदूषण मुक्त क्षेत्र नहीं रह गये हैं और समय के साथ पहाड़ी क्षेत्रों में मानवीय हस्तक्षेप बहुत अधिक होने के का कारण प्रदूषण भी बढ़ा है। आज यदि देश के पहाड़ी क्षेत्रों में स्थित विभिन्न पर्यटन स्थलों पर नजर दौड़ाएं तो हम यह पायेंगे कि पर्यटन स्थलों पर आज सबसे अधिक प्लास्टिक कचरा है। हैरत यह है कि पर्यावरण संरक्षण के लिए आज कोई भी गंभीर नजर नहीं आता हैं। यहां जानकारी देना चाहूंगा कि देश में 1 जुलाई 2022 से सिंगल यूज प्लास्टिक की चीजों को बनाने, बेचने और इस्तेमाल करने पर सरकार द्वारा पाबंदी लगाई गई है। इस पाबंदी का मतलब इन चीजों को बनाना, आयात करना, जमा करना, इनका डिस्ट्रिब्यूशन करना, इनकी सेल करना, इस्तेमाल करने आदि पर रोक है। वास्तव में इन सामानों की उपयोगिता कम है और तुरंत फेंक दिया जाता है। प्लास्टिक को अमूमन लोग इस्तेमाल के बाद यत्र यत्र यूं ही खुले में फेंक देते हैं और इससे शहरों की नालियां, सीवरेज व्यवस्था गड़बड़ा जाती है। जब बारिश होती है तो यह पानी के साथ बहकर नदी-नालों में जमा हो जाता है। इससे जल प्रदूषण होता है। प्लास्टिक की विघटन प्रक्रिया में सैकड़ों साल लग जाते हैं। इसलिए जब प्लास्टिक हो भूमि के अंदर दबा दिया जाता है तो यह विघटित नहीं हो पाता है और जहरीली गैसें और पदार्थ छोड़ता रहता है। इस कारण वहां की भूमि बंजर हो जाती है। वहां अगर कोई फसल पैदा भी होती है तो उसमें जहरीले पदार्थ मिले होने से यह मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होती है। प्लास्टिक से ज्यादातर वस्तुएं ऐसी बनाई जाती हैं जो मानव द्वारा इस्तेमाल करने के बाद फेंक दी जाती हैं। इनमें पानी की बोतलें, खिलौने, टूथ ब्रश, पैकिंग का सामान, पॉलीथीन बैग और प्लास्टिक के बॉक्स आदि। प्लास्टिक को खुले में फेंकने पर इसमें आवारा कुत्तों व अन्य जानवरों, पशुओं द्वारा मुंह मारा जाता है और वे भूखे होने के कारण खाद्य वस्तुओं के साथ प्लास्टिक की थैलियों आदि को यूं ही निगल जाते हैं और उनकी असमय मौत हो जाती है। जानकारी देना चाहूंगा कि प्लास्टिक कचरा प्रबंधन नियम के तहत सिंगल यूज प्लास्टिक की कुल 19 चीजों पर सरकार ने पाबंदी लगा दी है। यह सामान यानी वह प्लास्टिक का सामान जो फेंकने से पहले या रिसाइकल करने से पहले सिर्फ एक बार ही अमूमन इस्तेमाल किया जाता है। दरअसल, सरकार चाहती है कि सिंगल यूज प्लास्टिक को धीरे-धीरे करके कई चरणों में लोगों की ज़िंदगी से हटाया जाए। इसी दिशा में यह कदम उठाया गया है। सरकार का यह कदम वास्तव में अत्यंत काबिलेतारिफ कहा जा सकता है, क्यों कि प्लास्टिक हजारों सालों तक भी गलता सड़ता नहीं है और मानव समेत धरती के प्राणियों को बहुत नुक्सान पहुंचाता है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि प्लास्टिक के कैरी बैग्स या प्लास्टिक (पालीथीन) की थैलियों को इन 19 चीजों में शामिल नहीं किया गया है लेकिन पिछले साल ही यानी कि वर्ष 2022 में ही इनकी मोटाई को बढ़ाकर 50 माइक्रोन्स से 75 माइक्रोन्स कर दिया गया था। सरकार के अनुसार प्लास्टिक युक्त ईयर बड, गुब्बारों के लिए प्लास्टिक डंडियां, प्लास्टिक के झंडे, कैंडी स्टिक, आइसक्रीम की डंडियां, पॉली स्टाइरीन की सजावटी सामग्री पर रोक रहेगी। इसके अलावा प्लास्टिक प्लेटें, कप, गिलास, कांटे, चम्मच, चाकू, स्ट्रा, जैसी कटलरी, मिठाई के डब्बों को लपेटने वाली प्लास्टिक फिल्म, निमंत्रण कार्ड, सिगरेट पैक, 100 माइक्रोन से कम मोटे प्लास्टिक के बने बैनरों पर रोक लगाई गई है। वास्तव में आज प्लास्टिक पर्यावरण का सबसे बड़ा दुश्मन है और इससे हमारी धरती पर उपलब्ध पहाड़ों को काफी नुकसान पहुंच रहा है, क्यों कि पहाड़ हमारी धरती के प्राकृतिक सौंदर्य को, हमारे पर्यावरण को, हमारी धरती के पारिस्थितिकी तंत्र को सुंदर व अच्छा बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करते हैं। आज प्लास्टिक कचरे से निपटने के लिए सभी को आगे आने की जरूरत है। पहले ही जानकारी दे चुका हूं कि ये पदार्थ न तो गलता है और न ही नष्ट होता है। प्लास्टिक जल, भूमि,वायु सभी को किसी न किसी रूप में प्रदूषित करता है और नुकसान पहुंचाता है। सच तो यह है कि प्लास्टिक पदार्थो से उत्पन्न कचरे का निस्तारण काफी कठिन होता है और पृथ्वी पर प्रदूषण में भी इसका काफी अहम योगदान है, जिससे यह भारत ही नहीं अपितु संपूर्ण विश्व के लिए एक बड़ी वैश्विक चिंता का विषय बन गया है। प्लास्टिक बैगों, बर्तनों और फर्नीचर के बढ़ते इस्तेमाल के वजह से प्लास्टिक के कचरे में काफी वृद्धि हुई है, जिससे प्लास्टिक प्रदूषण जैसी भीषण समस्या उत्पन्न हो गयी है। हमें यह चाहिए कि हम प्लास्टिक का या तो उपयोग करें ही नहीं और अन्य विकल्पों को अपनाएं। दूसरे शब्दों में हम यह कह सकते हैं कि प्लास्टिक प्रदूषण को रोकने के लिये सबसे महत्वपूर्ण कदम यह हो सकता है कि हमें प्लास्टिक के उपयोग से ही बचना चाहिये। आज की भागमभाग की इस जिंदगी में हम इसके उपयोग के काफी हद तक आदि हो चुके है तथा यह काफी सस्ते भी है, इसलिये हम इनके उपयोग को पूरी तरह से बंद नही कर सकते हैं। हालांकि हम उन प्लास्टिक उत्पादों के उपयोग को आसानी से बंद कर सकते है, जिनके इको-फ्रैंडली विकल्प उपलब्ध हैं। उदाहरण के लिये, बाजार से सामान खरीदते समय हम प्लास्टिक बैग के जगह हम जूट, कपड़े या पेपर से बने बैगों का इस्तेमाल कर सकते हैं। ठीक इसी तरह पार्टियों और उत्सवों के दौरान हम प्लास्टिक के बर्तन और अन्य सामानों का उपयोग के जगह हम स्टील, कागज, थर्माकोल या अन्य उत्पादों से वस्तुओं का उपयोग कर सकते हैं, जिनका आसानी से पुनरुपयोग और निस्तारण किया जा सके।यदि हम प्लास्टिक बैगों, थैलियों और प्लास्टिक से बनी अन्य वस्तुओं का उपयोग बंद नहीं कर सकते हैं तो कम से कम उन्हे फेंकने से पहले जितनी बार भी हो सके उनका कम से कम उनका पुनरुपयोग करना चाहिए। प्लास्टिक को खुले में जलाना कभी भी नहीं चाहिए, क्योंकि इसे जलाना तो और भी अधिक खतरनाक साबित हो सकता है। जानकारी देना चाहूंगा कि प्लास्टिक को जलाने से वातावरण तो दूषित होता ही है, इससे निकलने वाले जहरीले धुएं से कैंसर जैसी गंभीर बीमारियां हो सकती हैं। प्लास्टिक को न तो खुले में फेंकना चाहिए और न ही जलाना चाहिए। इसे जितना हो सके रीसाइकल किया जाना चाहिए। जानकारी देना चाहूंगा कि हर साल करोड़ों टन प्लास्टिक वेस्ट को ऐसे ही बिना उपचार के वातावरण में छोड़ा जा रहा है जो हवा, पानी और फसलों के जरिए लौटकर वापस हमारे पास ही आ रहा है। हाल ही में प्रकाशित शोधों से पता चला है कि प्लास्टिक के यह कण न केवल इंसानी फेफड़ों बल्कि उसके रक्त में भी मिले हैं।
आज शहरों में नगर निगम,नगर पालिकाएं और ग्राम पंचायतों का कूड़ा सड़क पर या शहर के बाहर कहीं पर भी डाल दिया जाता है। अमूमन देखा जाता है कि सफाई कर्मचारी इस कूड़े में अक्सर आग लगा देते हैं। आग लगने से कूड़े से निकलने वाला धुआं हवा को प्रदूषित करता है। कूड़े में सबसे ज्यादा पॉलिथीन ही जलती है।आज के समय में यह एक बहुत ही गंभीर समस्या है। विज्ञान कहता है कि प्लास्टिक एक प्रकार का पॉलीमर यानी मोनोमर नाम की दोहराई जाने वाली इकाइयों से युक्त बड़ा अणु है। प्लास्टिक थैलों के मामले में दोहराई जाने वाली इकाइयां एथिलीन की होती हैं। जब एथिलीन के अणु को पॉली एथिलीन बनाने के लिए पॉलीमराइज किया जाता है तो कार्बन अणुओं की लंबी शृंखला बनाती है। इसमें प्रत्येक कार्बन को हाइड्रोजन के दो परमाणुओं से संयोजित किया जाता है। बहरहाल, आंकड़ों पर नजर दौड़ाएं तो वर्ष 2014 में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार समुद्र में प्लास्टिक कचरे के रुप में 5,000 अरब टुकड़े तैर रहे हैं। अधिक वक्त बीतने के बाद यह टुकड़े माइक्रो प्लास्टिक में तब्दील हो गए हैं। जीव विज्ञानियों के अनुसार समुद्र तल पर तैरने वाला यह भाग कुल प्लास्टिक का सिर्फ एक फीसदी है, जबकि 99 फीसदी समुद्री जीवों के पेट में है या फिर समुद्र तल में छुपा है। एक अनुमान के मुताबिक 2050 तक समुद्र में मछलियों से अधिक प्लास्टिक होगी।
प्लास्टिक के आंकड़ों पर गौर करें तो पता चलता है कि हर साल दुनियाभर में 500 अरब प्लास्टिक बैग्स का इस्तेमाल होता है। बड़े पैमाने पर उत्पादन के कारण इसका निपटारा कर पाना गंभीर चुनौती है। प्लास्टिक 500 से 700 साल बाद नष्ट होना शुरू होता है और पूरी तरह से डिग्रेड होने में उसे 1000 साल लग जाते हैं। यहां यह भी जानकारी देता चलूं कि प्लास्टिक छोटे-छोटे टुकड़ों में टूटता है पर नष्ट नहीं होता है। इससे पर्यावरण प्रदूषित होता है। दुनियाभर में केवल 1 से 3% प्लास्टिक ही रीसाइकल हो पाता है। यहां यदि हम भारत की बात करें तो देश में हर साल तकरीबन 56 लाख टन प्लास्टिक कचरे का उत्पादन होता है, जिसमें से लगभग 9205 टन प्लास्टिक को रिसाइकिल कर दोबारा उपयोग में लाया जाता है। जानकारी मिलती है किभारत में सबसे ज्यादा 24 फीसदी प्लास्टिक का उपयोग पैकिंग के लिए, कृषि कार्य के लिए 23 फीसदी, घरेलू उपयोग वाली सामग्री में 10 फीसदी उपयोग है। भारत में 2019-20 के आंकड़ों के अनुसार हर साल 3.4 मिलियन प्लास्टिक कचड़े का उत्पादन होता है। डाउन टू अर्थ में छपे एक आर्टिकल के अनुसार 2019 में जहां 7.9 करोड़ टन प्लास्टिक कचरा ऐसे ही वातावरण में डंप किया जा रहा था, उसका आंकड़ा 2060 में बढ़कर 15.3 करोड़ पर पहुंच जाएगा। एक अनुमान के अनुसार वर्ष 1950 के बाद से अब तक करीब 830 करोड़ टन प्लास्टिक उत्पादित किया जा चुका है जिनमें से 60 फीसदी को ऐसे ही या तो लैंडफिल में डंप कर दिया गया है, या फिर वातावरण में छोड़ दिया गया है। यह आश्चर्यजनक नहीं है कि हर मिनट कूड़े से भरे एक ट्रक के बराबर प्लास्टिक समुद्र के पानी में मिल रहा है। पिछले कुछ दशक में दुनियाभर में प्लास्टिक का इतना उत्पादन किया गया था, जितना पिछली पूरी शताब्दी में नहीं हुआ था। यूएन एनवायरमेंट के मुताबिक हम जो प्लास्टिक इस्तेमाल में लाते हैं उसका 50 फीसदी सिंगल-यूज या डिस्पोजेबल होता है। हर मिनट दुनिया में करीब 10 लाख प्लास्टिक बॉटल्स खरीदे जाते हैं। दुनियाभर में जो भी कूड़ा-कचरा पैदा होता है, उसका 10 से 20 फीसदी हिस्सा प्लास्टिक का ही होता है।डाउन टू अर्थ में छपे एक आर्टिकल से पता चलता है कि प्लास्टिक की खपत पिछले कुछ समय में बहुत अधिक हो गई है।प्लास्टिक की खपत कितनी विशाल है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि जहां वर्ष 2019 में हर साल करीब 46 करोड़ टन प्लास्टिक इस्तेमाल किया जा रहा था वो वर्ष 2060 तक बढ़कर 123 करोड़ टन प्रति वर्ष से ज्यादा हो जाएगा। ऐसे में यह बहुत ही जरुरी है कि दुनिया के सभी देश इस समस्या की गंभीरता को समझें और इससे निपटने के लिए ठोस रणनीति बनाएं। प्लास्टिक पर नियंत्रण अकेले किसी व्यक्ति विशेष का विषय ही नहीं है, अपितु यह हम सभी की सामूहिक जिम्मेदारी है। वास्तव में सरकार या प्रशासन या व्यक्ति विशेष अकेले अपने दम पर कुछ भी नहीं कर सकती है। वास्तव में, हमें व्यक्तिगत स्तर पर प्लास्टिक से निपटने के यथेष्ठ व नायाब प्रयास करने होंगे। बढ़ते प्लास्टिक उपयोग को कम करना हमारी भी जिम्मेवारी है। इसके लिए हमें जरुरत से ज्यादा प्लास्टिक उत्पादों की खरीदारी से बचना चाहिए और उससे जुड़े कचरे को ऐसे ही नहीं फेंकना चाहिए। प्लास्टिक व पालीथीन को फेंकने से पहले हमें सौ बार यह सोचना चाहिए कि इससे हमारे पर्यावरण को कितना नुक्सान पहुंच सकता है।हमें इस बात की गंभीरता को समझना होगा कि खतरा इन उत्पादों से ज्यादा हमारी जीवन शैली से है जो ज्यादा से ज्यादा संसाधनों की बर्बादी की राह पर जा रही है। अगले लगभग चालीस सालों में प्लास्टिक का उपयोग तीन गुना तक बढ़ने की प्रबल संभावना है इसलिए हमें धरती पर जीवन को बचाना है तो हमें प्लास्टिक पर पूर्णतया प्रतिबंध लगाना होगा और इसके बढ़ते उपयोग को रोकना होगा। लोगों को हमें जागरूक करना होगा।

(आर्टिकल का उद्देश्य किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं है।)

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