संपादकीय

मानवाधिकारों की स्थापना असम्भव नहीं है

-विमल वधावन योगाचार्य
एडवोकेट, सुप्रीम कोर्ट

लापरवाही, उदासीनता, आलस्य, अज्ञानता या भ्रष्टाचार और वोटों की राजनीति में खोये रहने के कारण आधुनिक राजनेता कार्यपालिका पर सक्षम और पर्याप्त नियंत्रण नहीं रख पाते। राजनेताओं को राजनीति में खोया देखकर कार्यपालिका के अधिकांश अधिकारी भी लापरवाही जैसे उन सभी लक्षणों के शिकार हो जाते हैं। कार्यपालिका यदि पूरी तरह से जागरूक रहकर कार्य करे तो देश की सामान्य जनता की परेशानियाँ काफी हद तक कम हो सकती हैं। परन्तु वस्तुस्थिति यह है कि जनता को प्रतिदिन अपने रोजमर्रा के जीवन में अनेकानेक परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

  • हर विभाग से पैदा होती परेशानियाँ

सारे देश में शहरों और गाँवों की आन्तरिक सड़कों का बुरा हाल है। कई स्थानों पर रेड लाईट, मील के पत्थर या मार्गदर्शक बोर्ड जंगली पौधों से ढके रहते हैं, उनकी सफाई करने की सुध किसी को नहीं। सरकारी परिवहन व्यवस्था में बसों के रख-रखाव पर किसी का ध्यान नहीं, बस अड्डे अक्सर गन्दगी से भरे हुए दिखाई देते हैं और बसों के आने-जाने की समय-सारणी का पालन भी पूरी तरह से नहीं किया जाता है। सरकारी अस्पतालों में न तो हमदर्दी से इलाज मिलता है और न ही स्वच्छ और स्वास्थ्यवर्द्धक वातावरण। प्रदूषण फैलाने वाली औद्योगिक इकाईयों पर कोई शिकंजा नहीं कसा जाता। भारत में हर छोटे-बड़े शहर में हजारों पार्क बनाये गये हैं परन्तु उनका रख-रखाव नियमित रूप से नहीं होता। छोटे-छोटे नदियों, नालों पर कच्चे जर्जर पुलों का उद्धार करने की किसी को सुध नहीं है। सरकारी शिक्षा व्यवस्था में शिक्षा की गुणवत्ता से लेकर दिन के भोजन या गरीब बच्चों को वस्त्र तथा छात्रवृत्तियाँ वितरित करने में घोर भ्रष्टाचार व्याप्त है। विद्यालयों में स्वच्छ जल और शौचालयों की दुर्दशा ही देखने को मिलती है। निजी शिक्षण संस्थाएँ भी कानूनों को ताक पर रखकर जनता का शोषण कर रही हैं। अधिक घनत्त्व वाली बस्तियों में पर्याप्त सीवर लाइनें नहीं हैं या बन्द पड़ी रहती हैं। बिजली की आपूर्ति करने के लिए सड़कों पर लगे खम्भे और ट्रांसफार्मर आये दिन अनजान लोगों की जान लेते हुए दिखाई देते हैं। रासायनिक फलों और सब्जियों का उत्पादन रोकने के लिए कार्यपालिका तैयार ही दिखाई नहीं देती। अनेकों सेवानिवृत्त व्यक्तियों को पेंशन मिलने में कई बार लम्बे समय तक प्रतिक्षा करनी पड़ती है। विधवाओं और वृद्ध लोगों को मिलने वाली पेंशन भी भ्रष्टाचार का शिकार हो जाती है। बिजली, पानी तथा अन्य सभी सरकारी कार्यालयों में छोटे-छोटे कार्य करवाने के लिए जनता को अनेकों चक्कर लगाने पड़ते हैं क्योंकि भ्रष्टाचार के बिना कोई कार्य समय पर सम्पन्न नहीं होता। पुलिस स्टेशनों और जेलों में भ्रष्टाचार के कारण एक तरफ अपराध बढ़ता चला जा रहा है तो दूसरी तरफ कई बार बेकसूर लोगों को मुकदमेंबाजी की यातनाएँ सहनी पड़ती हैं। कार्यपालिका की लापरवाहियों और भ्रष्टाचारी प्रवृत्तियों के कारण ही उपरोक्त अनेकों प्रकार की अव्यवस्थाएँ आये दिन देखने सुनने में आती रहती हैं।

  • क्या है मानवाधिकार?

मेरी स्पष्ट मान्यता है कि किसी नागरिक को उसकी गलती के बिना जब किसी भी संकट का सामना करना पड़ता है जिसे प्रशासन की कानूनी कार्यवाही से दूर किया जा सकता था तो स्पष्ट रूप से नागरिकों के सामने उत्पन्न हुआ वह संकट मानवाधिकार का उल्लंघन समझा जाना चाहिए। परन्तु एक नागरिक किसी गाँव, मोहल्ले, तहसील या छोटे से कस्बे, नगर अथवा जिले में रहते हुए जब सरकारी लापरवाहियों के कारण संकट झेलता है तो वह चारों तरफ से असहाय दिखाई देता है क्योंकि उसकी सहायता करने का कोई भी तन्त्र उसके स्तर पर अर्थात् जिला स्तर पर उपलब्ध ही नहीं होता। जिला स्तर की अदालतें केवल दिवानी, फौजदारी आदि मुकदमों के दायित्व से ही लदी हुई दिखाई देती हैं। एक जिले के अन्दर यदि सरकारी उदासीनता के कारण मानवाधिकारों के उल्लंघन की घटनाएं सामने आती हैं तो उस नागरिक से यह आशा करना व्यर्थ होगा कि वह राज्य मानवाधिकार आयोग के समक्ष अपनी शिकायतें लेकर जाये। मानवाधिकारों के उल्लंघन से पीड़ित व्यक्ति गरीब, अनपढ़ या कानूनी जानकारी से अनभिज्ञ व्यक्ति भी हो सकता है। ऐसी परिस्थितियों में यह भी आशा नहीं की जा सकती कि मानवाधिकार आयोग स्वतः ऐसे पीड़ितों तक अपनी पहुँच बनायें। परन्तु पंजाब के एक राजनेता ने ऐसा सम्भव कर दिखाया। श्री अविनाश राय खन्ना मूलतः एक वकील होने के साथ-साथ संवेदनशील सामाजिक कार्यकर्ता भी थे। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ तथा आर्य समाज की शिक्षण संस्थाओं से उन्होंने समाजसेवा को ही राष्ट्रसेवा और ईश्वरभक्ति के रूप में समझा। विधायक से लेकर लोकसभा सदस्य के रूप में निर्वाचित होने वाले इस लोकप्रिय नेता को वर्ष 2009-2010 में पंजाब मानवाधिकार आयोग का सदस्य नियुक्त किया गया। मानवाधिकार आयोग के न्यायाधीश रूपी एक सदस्य से यह आशा नहीं की जाती कि वह प्रान्त के सभी जिलों में घूम-घूमकर मानवाधिकार उल्लंघन की समस्याओं को स्वयं ढूंढ़ने के लिए निकले और उन पर अन्तिम निदान तक पूरी कार्यवाही करे। परन्तु श्री अविनाश राय खन्ना ने पंजाब के लगभग सभी जिलों में अस्पतालों, शिक्षण संस्थाओं, पुलिस स्टेशनों, जेलों और यहाँ तक कि पार्कों और सड़कों में व्याप्त अव्यवस्थाओं पर संज्ञान लेते हुए सम्बन्धित सरकारी कार्यालयों को झकझोर कर उन अव्यवस्थाओं को दुरुस्त करने के अनेकों कार्य सम्पन्न कर दिखाये। प्रतिदिन दैनिक समाचार पत्रों में छपने वाली अनेकों समस्याओं पर भी स्वतः संज्ञान लेते हुए सरकारी कार्यालयों को नोटिस जारी करके समाधान के लिए विवश कर दिया। मानवाधिकार आयोग के समक्ष सामान्य अदालतों की तरह औपचारिक रूप से याचिकाएँ प्रस्तुत हों या एक साधारण पत्र के द्वारा कोई नागरिक अपनी समस्याओं को प्रस्तुत करे, उन्होंने हर समस्या पर उचित कार्यवाही करके समस्याओं का समाधान करने के सभी सम्भव प्रयास किये। एक राजनेता की तरह उन्होंने केवल वी.आई.पी. संस्कृति का कभी दामन नहीं पकड़ा बल्कि एक समझदार और जागरूक सामाजिक कार्यकर्ता की तरह हर समय जनता की समस्याओं के प्रति संवेदनशील रहे। पंजाब मानवाधिकार आयोग के सदस्य के रूप में तो उनका कार्यकाल लगभग एक वर्ष का ही रहा परन्तु अपने राजनीतिक जीवन में उन्होंने स्वयं लगभग 25 हजार से अधिक शिकायतें राष्ट्रीय तथा पंजाब मानवाधिकार आयोगों के समक्ष प्रस्तुत की हैं।

  • मानवाधिकार आयोग के ‘अनुभव’

उन्होंने नागरिकों के दैनिक जीवन में सरकारी लापरवाहियों के कारण उत्पन्न समस्याओं के प्रयासों को ‘अनुभव’ शीर्षक से तैयार अपनी एक पुस्तक के रूप में भी संकलित किया है। इस पुस्तक का एक सामान्य अवलोकन करने के बाद किसी भी वकील या सामाजिक कार्यकर्ता को यह प्रेरणा सरलता से प्राप्त हो सकती है कि अपने-अपने क्षेत्र के नागरिकों की ऐसी अनेकों समस्याओं का समाधान ढूंढ़ने के लिए वे भी इसी प्रकार मानवाधिकारों के उल्लंघन की हर छोटी-बड़ी समस्या को राज्य या राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के समक्ष प्रस्तुत कर सकते हैं। नये युवा वकीलों के लिए तो यह एक अच्छा अनुभव भी हो सकता है। सामाजिक कार्यकर्ताओं को ऐसे प्रयासों से अच्छी राजनीतिक दिशा प्राप्त हो सकती है। हमारा समाज यदि मानवाधिकारों के उल्लंघन का गम्भीरता पूर्वक विरोध प्रारम्भ कर दें तो यह प्रबल सम्भावना है कि हमारे देश की कार्यपालिका अर्थात् शासन और प्रशासन स्वतः ही अपनी लापरवाहियों के प्रति संवेदनशील होकर मानवाधिकारों की स्थापना में सहायक सिद्ध हों।

  • हर जिले में बने मानवाधिकार आयोग की शाखा

दूसरी तरफ हमें केन्द्र सरकार के समक्ष एक प्रबल माँग रखनी चाहिए कि प्रत्येक राज्य के जिला स्तर पर राज्य मानवाधिकार आयोग की शाखाओं को स्थापित किया जाये। प्रत्येक जिले में सेवानिवृत्त जिला न्यायाधीश की अध्यक्षता में जिला मानवाधिकार शाखा की स्थापना की जानी चाहिए। इसके लिए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग कानून में संशोधन की आवश्यकता है।

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