संपादकीय

चंबल से आई हरित-पीली-नीली क्रांति

-डॉ. प्रभात कुमार सिंघल, कोटा
लेखक एवम पत्रकार

किसी ने कल्पना भी नहीं की थी कि चम्बल नदी हाड़ोती ( राजस्थान) में कृषि उत्पादन में हरित क्रांति को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। कोटा, बारां एवं बूंदी जिलों का दो लाख हेक्टेयर ज्यादा क्षेत्रफल चम्बल की नहरों के कारण सिंचित होगा और यह क्षेत्र कृषि उत्पादन में अग्रणीय बन जायेगा।
चम्बल से आई हरित क्रांति एवं पीली क्रांति का ही परिणाम है कि कोटा राजस्थान में गंगानगर के बाद दूसरा बड़ा कृषि उत्पादक क्षेत्र बन गया है। इसी से कोटा में सेठ भामाशाह कृषि उपज मंडी एशिया की सबसे बड़ी मंडी की स्थापना है । रामगंजमंडी में मसाला मंडी स्थापित है।

कृषि उद्योग :

कृषि उत्पादन की आशातीत प्रगति को देख कोटा में कृषि आधारित उद्योगों के लिए उद्यमी आगे आये और रानपुर में एग्रो उद्योग जोन विकसित किया गया। खाद बनाने, सोयाबीन एवं सरसों से तेल निकलने के बड़े -बड़े उद्योग लगे। उनमें हजारों लोगों को रोजगार मिला। इन उद्योगों से भी हरित क्रांति को बढ़ाने में अमूल्य सहयोग मिला।

फसलें :

रबी एंव खरीफ में कृषि फसलों के उत्पादन के साथ-साथ यहाँ सब्जी, फल, मसाले, औषधीय एवं फूलों की बागवानी तथा कृषि पर आधारित मधुमक्खी पालन के क्षेत्र में भी काश्तकार आगे आये हैं। इसके लिए प्रथक से उद्यान विभाग की स्थापना कर जिला मुख्यालय पर उपनिदेशक स्तर का कार्यालय स्थापित किया गया है जो किसानों को कम पानी में सिंचाई कर कृषी उत्पादन बढ़ाने के उपायों ,कम पानी के उपयोग से अधिक उत्पादन लेने, औषधीय खेती एवं फल उत्पादन बढ़ाने, मधु मक्खी पालन एवं सोलर ऊर्जा के उपयोग जैसे कृषि से सम्बंधित कार्यो के लिए आगे आने को प्रोत्साहित कर रहा है।
चम्बल और उसकी नहर प्रणाली का ही सुफल है कि आज यह क्षेत्र राजस्थान में सोयाबीन,सरसों,गेंहू, चावल,धनिया, जवार, मक्का, मूंग, उड़द, चना, आदि की पैदावार का बम्फर उत्पादक क्षेत्र बन गया है।
मसाला, फल, सब्जी,औषधीय पौधों एवं फूल उत्पादन में भी किसी से पीछे नहीं है और अन्य क्षेत्रों से प्रतियोगिता कर रहा है। कोटा जिले की पंचायत समिति लाड़पुरा सब्जी उत्पादन का प्रमुख केन्द्र बन गई। चन्द्रसेल एवं अर्जुनपुरा आलू उत्पादक प्रमुख गांव बन गये हैं। रंगपुर एवं भदाना गांवां ने मटर उत्पादन में पहचान बनाई हैं। सब्जियों का उत्पादन 28 हजार मैट्रिक के आसपास पहुँच गया है। फलों का उत्पादन लगभग 15 हेक्टयर भूमि हो रहा है। जिले में पपीता, आम, अमरूद, संतरा, नीबू, आंवला, अनार एवं कटहल की पैदावार होती है। इसी प्रकार जिले में धनियां, मैथी, लहसून, जीरा, सौंप, मिर्च, अजवायन, एवं कलोंजी मसालों की खेती की जाती है। करीब 83 हजार मैट्रिक टन मसालों का उत्पादन होता है। कुछ स्थानों रामगंजमण्डी में अश्वगंधा, प्रहलादपुरा गांव में नींबू घास, तुलसी तथा कुछ जगह रतनजोत, सागरजोटा, चन्द्रसूर आदि औषधीय पौधों की खेती में रूझान सामने आया है। कोटा के प्रहलादपुरा एवं बारां के रटावदा गांवो में औषधीय पौधों से तेल निकालने का आश्वन संयंत्र लगाये गये हैं जो निजी क्षेत्र में हैं। कोटा के आसपास के गांवों में लगभग 50 हेक्टर में देशी गंगानगरी किस्म के गुलाब फूलों की खेती की जाती है।

फलदार बगीचे :

किसानों को गुणात्मक बीज उपलब्ध कराने, कीट नियंत्रण, मिट्टी के स्वास्थ की जांच करने, कृषि संबंधी अनुसंधान कर किसानों को तकनीकी ज्ञान उपलब्ध कराने के लिए बोरखेड़ा कृषि अनुसंधान केन्द्र, नान्ता कृषि अनुसंधान केन्द्र-सेंटर ऑफ एक्सीलेन्स तथा उम्मेदगंज अनुसंधान केन्द्र स्थापित किये गये हैं। खेती के फसल चक्र में बदलाव भी देखने को मिलता है। किसान कम पानी में होने वाली फसलें बोने लगे हैं। कम्पोस्ट खाद के उपयोग में आगे आये हैं। जलबचत एवं सन्तुलित सिंचाई के लिए बूंद-बूंद सिंचाई, फव्वारा सिंचाई एवं पाईप लाइन से सिंचाई करने की पहल भी करने लगे हैं। फलदार बगीचों के प्रति रूझान बढ़ा है।

कृषि मंडियां :

कृषि उपज केन्द्र विक्रय के लिए कोटा में ”अ” श्रेणी की सेठ भामाशाह कृषि उपजमंडी ऐशिया की मंडियां में अपना स्थान रखती है। पूरे संभाग से किसान अपनी उपज बेचने यहाँ आते हैं। यह मंडी 118 एकड़ भूमि पर निर्मित है। करीब 33 करोड़ रूपये की लागत से मंडी का निर्माण कराया गया। परिसर में 342 दुकानें एवं जिन्स रखने के लिए शेडस बनाये गये हैं। यहांँ 22 अक्टूबर 1998 से व्यापार प्रारंभ किया गया जो आज तक अनवरत चल रहा हैं। किसानों की सुविधा के लिए बैंक, नीलामी स्थल, किसान भवन एवं अन्य आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध कराई गई हैं। जिले के इटावा, सुल्तानपुर, रामगंजमंडी, कैथून, मण्डाना में भी कृषि उपज मंडियाँ स्थापित की गई हैं। कोटा संभाग में बारां एवं रामगंजमंडी भी बड़ी मंडी है।.

नीली क्रांति में योगदान :

चम्बल नदी ने जहां एक ओर हरित एवं पीली क्रांति को बढ़ाने में योगदान दिया वहीं दूसरी ओर मत्स्य विभाग की ओर से नीली क्रांति में मत्स्य उत्पादन को बढ़ावा में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है। कम लागत में अच्छी क्वालिटी के प्रोटीन मत्स्य आहार को बढ़ावा देने एवं कुपोषण रोकने में चम्बल सहायक बनी है। चम्बल के विशाल जलाशय राणाप्रताप सागर बांध एवं कोटा बैराज के डाउन स्ट्रीम में केशोरायपाटन तक मत्स्य उत्पादन किया जा रहा है।
रावतभाटा मत्स्य बीज उत्पादन केंद्र पर भारतीय मेजर कार्प प्रजातियां कतला, रोहू एवं नरेन मछली के बीज उत्पादन, हार्मोनल इंडयूज तकनीक से किया जाता है। राणा प्रताप सागर बांध चंबल वैली स्थित मत्स्य परियोजना में मत्स्य बीज उत्पादन का कार्य किया जा रहा है। परियोजना में उत्पादित कृत्रिम मछली बीजों का निर्यात अन्य जिलों को किया जाता है। मत्स्य पालक कृषकों एवं निजी फिश फार्म मालिकों को बीजों का विक्रय होता है।
चाइनीज सर्कुलर हेचरी में ब्रीडिंग कराई जाती है। इसके बाद मत्स्य बीजो को स्पान पूल में लेते हैं। तीन दिन तक इन कृत्रिम बीजों को इसमें रखा जाता है। इसके बाद इसे फिश पोंड में स्थानांतरित किया जाता है। तब जाकर यह मछली का रूप लेते हैं। इसके लिए हेचरी की सफाई की जाती है। नर, मादा मछलियों को इंजेक्शन लगाकर ब्रीडिंग पूल में डाला जाता है। मत्स्य बीज प्राप्त कर विक्रय, वितरण एवं रियरिंग किया जाता है। बीज उत्पादन केंद्र पर महाशीर (बाडस) बीज उत्पादन के लिए अभिजनक तैयार किए जा रहे है। स्पोर्ट्स फिशरीज, एकलिंग पहली प्राथमिकता है। यहां से मत्स्य बीज अलवर, जयपुर, कोटा, बूंदी, करोली, बारां, झालावाड़, मध्यप्रदेश के कई जिलों को दिया जा रहा है। चम्बल नदी में कतला, रोहू,नरेन,सिल्वर कार्प, कामन ग्रास कार्प, महासीर, तिलपिया,पतोल, घेघरा, बनवीर, लांची, बाम, पत्तरचेटा, सूलिया आदि 65 प्रकार की मछलियां मिलती हैं। रावतभाटा में 1977 में मत्स्य फार्म की स्थापना की गई। तब से प्रति वर्ष 19 हजार 600 हेक्टेयर में ठेका किया जाता है। कोटा बैराज से केशोरायपाटन तक का भी ठेका किया जाता है।

सिंचाई तंत्र :

चंबल का जल सिंचाई के लिए कोटा बैराज से नहरों में पानी प्रवाहित होता है। बैराज से निकली 372 किमी.दांई मुख्य नहर राजस्थान एवं मध्य प्रदेश राज्यों की 1.27 लाख हेक्टेयर भूमि को सिंचित करती है। बांई मुख्य नहर की दो शाखाएं बूंदी एवं कापरेन हैं जो 168 किमी.लंबी हैं एवं राजस्थान में बूंदी जिले के 1.02 हेक्टेयर भूमि को सिंचित करती है। वर्ष 1960 से इन नहरों से सिंचाई के लिए जल उपलब्ध कराया जाने लगा। वर्ष 1962 में परियोजना क्षेत्र में विश्व बैंक से साथ करार होने से कृषि संबंधी नियम बनाये गए। समस्त कार्यों में समन्वय के लिए समादेश क्षेत्राधिकार संस्था-कमांड एरिया ऑथिरिर्टी ( सीएडी) की व्यवस्था की गई। क्षेत्रीय विकास आयुक्त इसके अध्यक्ष बनाये गए। चम्बल परियोजना क्षेत्र में 4.84 लाख हेक्टेयर क्षेत्र कोटा,बारां एवं बारां जिलों में है,जिसमें से 2.29 लाख हेक्टेयर क्षेत्र ही सिंचाई योग्य है। परियोजना की नहर प्रणाली 2.29 लाख हेक्टेयर भूमि राजस्थान में एवं इतनी ही भूमि मध्य प्रदेश की सिंचित करती है।
परंपरागत कुओं, तालाबों,बावड़ियों से 1965-67 तक 59 हेक्टेयर से सिंचित क्षेत्र नहरी तंत्र के कारण बढ़ कर 2.09 लाख हेक्टेयर हो गया। चम्बल की नहरों पर 8 जलोत्थान सिंचाई योजनाएं कोटा में जालूपुरा एवं दीगोद, और बारां जिले में अंता, चक्षणबाद, पचेल, गणेशगंज, सोरसन एवं काचरी में निर्मित हैं।

उत्पादन बढ़ाने के प्रयास :

सीएडी के माध्य्म से जापान के सहयोग से 400 करोड़ की राजाड परियोजना का क्रियान्वयन किया गया। इससे सीएडी क्षेत्र की भूमि में जलभराव एवं लवणीयता की समस्या का समाधान करने के लिए परफॉरेटेड पाइप खेतों में बिछाई गई जिस से सिंचित क्षेत्र में वृद्धि हुई है। कोटा-बूंदी जिलों की लाखों हेक्टेयर क्षेत्र भूमि को लवणीयता से छुटकारा दिला कर उपजाऊ बनाया गया। साथ ही लाखों हेक्टेयर भूमि में भूमि सुधार कार्यक्रम से अधिक उपजाऊ बनाया गया। इन प्रयासों से सिंचित क्षेत्र में जहां वृद्धि हुई वहीं कृषि उत्पादन बढ़ कर कई गुणा बढ़ गया है।
नये प्रयोग : कोटा में दो आईआईटीयन ने खेती की जिस तकनीक पर काम किया है उससे बिना मिट्टी और जमीन के, हवा में सब्जियां उगाना मुमकिन हो गया है। इस तकनीक से पानी भी साधारण खेती के मुकाबले 80 फीसदी तक कम लगता है और मुनाफा कई गुना ज्यादा है। इनकी इजाद की गई तकनीक से सब्जी उगाने से पेस्टिसाइड नहीं लगती है। इस तकनीक के जरिए ये आईआईटीन आज सिर्फ ढाई बीघा में हर महीने लाखों रुपए की कमाई कर रहे हैं और लोगों तक पहुंचा रहे हैं।

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