संपादकीय

यूपीएससी परीक्षा में हिंदी ने लहराया परचम !

सुनील कुमार महला
फ्रीलांस राइटर, कालमिस्ट, युवा साहित्यकार

हाल ही में यूपीएससी यानी कि संघ लोक सेवा आयोग के इतिहास में हिंदी मीडियम के सर्वश्रेष्ठ नतीजे आए हैं। यह दर्शाता है कि हिंदी लगातार आगे बढ़ रही है। कुल मिलाकर हम यह बात कह सकते हैं कि हिंदी की धमक अपने पूरे परवान पर है और अब यूपीएससी जैसी प्रतिष्ठित परीक्षाओं में भी हिंदी अपना परचम लहरा रही है। यहां जानकारी देना चाहूंगा कि इस बार यूपीएससी की सिविल सेवा परीक्षा के नतीजे अपने आप में काफी खास और विश्व हैं। इसकी वजह यह है कि 2022 बैच में हिंदी माध्यम से 54 उम्मीदवार सफल हुए हैं, जो कि बहुत बड़ी बात इसलिए है, क्यों कि अब तक यह समझा जाता था कि यूपीएससी जैसी परीक्षाओं में अंग्रेजी भाषा का अधिक महत्व है, अब हिंदी ने यह साबित कर दिया है कि भाषा कोई भी हो,कभी कोई भी भाषा कमजोर नहीं होती है और सभी भाषाओं का अपना अपना अलग अलग महत्व व महत्ता है। जानकारी देना चाहूंगा कि हाल ही में यूपीएससी का जो परिणाम आया है,यूपीएससी के इतिहास में हिंदी का यह सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है। बताता चलूं कि पिछले साल आए 2021 बैच के रिजल्ट में हिंदी के 24 उम्मीदवार सफल हुए थे और इस बार यह आंकड़ा 54 के आंकड़े को छू गया है, यानी कि पिछली बार की तुलना में इस बार दुगने से अधिक कैंडिडेट हिंदी के साथ सफल हुए हैं, यह हिंदी का बहुत ही शानदार व अच्छा प्रदर्शन कहा जा सकता है। दूसरे शब्दों में हम यह बात भी कह सकते हैं कि अब हिंदी का ग्राफ लगातार सुधर रहा है। इस बार टॉप-100 में 66वीं, 85वीं व 89वीं रैंक पर तीन उम्मीदवारों ने सफलता हासिल की है। यह भी बताता चलूं कि हिन्दी माध्यम की टॉपर 66वीं रैंक हासिल करने वाली कृतिका मिश्रा कानपुर की रहने वाली हैं तथा दिव्या तंवर ने इस बार परीक्षा में 105वीं रैंक हासिल की है। यहां पाठकों को यह भी जानकारी देना चाहूंगा कि 2021 बैच में भी दिव्या ने 438वीं रैंक हासिल की थी और तब वह सबसे कम उम्र (महज 22 साल) की आईपीएस चुनी गई थीं। अब वह आईएएस हो गई हैं। इन नतीजों में सबसे खास बात यह है कि 54 उम्मीदवारों में से 29 उम्मीदवारों ने वैकल्पिक विषय के रूप में हिंदी साहित्य लेकर यह कामयाबी हासिल की है। दो छात्रों ने गणित विषय लेकर हिंदी माध्यम से सफलता हासिल की, जिनमें से एक ने 120वीं रैंक हासिल की है। बहरहाल, हिंदी को आज यदि हम विश्व भाषा कहें तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी, क्यों कि आज के समय में हिंदी के बोलने, समझने वालों की संख्या विश्व में तीसरी है। कितनी बड़ी बात है कि विश्व के 132 देशों में जा बसे भारतीय मूल के लगभग 2 करोड़ लोग हिंदी माध्यम से ही अपना कार्य निष्पादित करते हैं। लेकिन विडंबना की बात तो यह है कि आज भी बहुत से लोग हिंदी की तुलना में अंग्रेजी भाषा को ही अधिक तवज्जो या महत्व देते हैं और वे समझते हैं कि आज अंग्रेजी भाषा के बिना काम नहीं चलाया जा सकता है। बहुत से लोग अंग्रेजी भाषा सीखने,बोलने को अपनी प्रतिष्ठा से जोड़ते हैं और वे यह सोचते हैं कि यदि वे हिंदी बोलेंगे, पढ़ेंगे, लिखेंगे या सुनेंगे तो उन्हें दूसरे लोग अधिक महत्व नहीं देंगे। जबकि ऐसा नहीं है। अंग्रेजी भाषा भी बुरी नहीं है, कोई भी भाषा कभी भी अच्छी या बुरी नहीं होती है,हम सभी को विश्व की अनेकानेक भाषाएं सीखने का प्रयास करना चाहिए लेकिन अपनी मां बोली, अपनी मातृभाषा को छोड़कर दूसरी भाषा को नहीं अपनाना चाहिए, क्यों कि यदि हम स्वयं ही अपनी भाषा को, भाषाओं को महत्व नहीं देंगे तो हमारी भाषा, भाषाएं आखिरकार कैसे पनपेगी ? सबसे पहले हमें अपनी भाषा को महत्व देना चाहिए, क्यों कि अपनी मां बोली, अपनी मातृभाषा में अभिव्यक्ति हमेशा सहज,सरल व सुबोध होती है। कोई भी व्यक्ति जितनी सहज अभिव्यक्ति अपनी मातृभाषा, अपनी मां बोली में दे सकता है, उतनी सहजता, सरलता से वह दूसरी भाषा में अपनी अभिव्यक्ति कभी भी नहीं दे सकता है। यहां जानकारी देना चाहूंगा कि एशियाई संस्कृति में अपनी विशिष्ट भूमिका के कारण हिंदी एशियाई भाषाओं से अधिक एशिया की प्रतिनिधि भाषा है।एक भाषा के रूप में हिंदी न सिर्फ भारत की पहचान है बल्कि यह हमारे जीवन मूल्यों, हमारी संस्कृति एवं संस्कारों की सच्ची संवाहक, संप्रेषक और परिचायक भी है।
यह भारत की एकता व अखंडता की प्रतीक है। बहुत सरल, सहज और सुगम भाषा होने के साथ हिंदी विश्व की संभवतः सबसे वैज्ञानिक भाषा है जिसे दुनिया भर में समझने, बोलने और चाहने वाले लोग बहुत बड़ी संख्या में मौजूद हैं। हिंदी की शब्दावली वैज्ञानिक है और यह हमारे पारम्‍परिक ज्ञान, प्राचीन सभ्‍यता और आधुनिक प्रगति के बीच एक सेतु भी है। हिंदी भारत संघ की राजभाषा(आफिशियल लेंग्वेज) होने के साथ ही ग्यारह राज्यों और तीन संघ शासित क्षेत्रों की भी प्रमुख राजभाषा है। संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल अन्य इक्कीस भाषाओं के साथ हिंदी का एक विशेष स्थान है। जानकारी देना चाहूंगा कि संविधान की आठवीं अनुसूची में क्रमशः असमिया, उड़िया, उर्दू, कन्नड़, कश्मीरी, कोंकणी, गुजराती, डोगरी, तमिल, तेलगू, नेपाली, पंजाबी, बांग्ला, बोडो, मणिपुरी, मराठी, मलयालम, मैथिली,संथाली, संस्कृत व सिंधी को शामिल किया गया है। देश में तकनीकी और आर्थिक समृद्धि के साथ-साथ अंग्रेजी पूरे देश पर हावी होती जा रही है। हिन्दी देश की राजभाषा होने के बावजूद आज हर जगह अंग्रेजी का वर्चस्व कायम है। हिन्दी जानते हुए भी लोग हिन्दी में बोलने, पढ़ने या काम करने में हिचकने लगे हैं। यहां यह भी बताता चलूं कि राजभाषा हिंदी के विकास के लिए खासतौर से राजभाषा विभाग का गठन किया गया है। भारत सरकार का राजभाषा विभाग इस दिशा में प्रयासरत है कि केंद्र सरकार के अधीन कार्यालयों में अधिक से अधिक कार्य हिंदी में हो। इसी कड़ी में राजभाषा विभाग द्वारा प्रत्‍येक वर्ष 14 सितंबर को हिंदी दिवस समारोह का आयोजन किया जाता है। 14 सितंबर, 1949 का दिन स्वतंत्र भारत के इतिहास में बहुत महत्त्वपूर्ण है। इसी दिन संविधान सभा ने हिंदी को संघ की राजभाषा के रूप में स्वीकार किया था। इस निर्णय को महत्व देने के लिए और हिन्दी के उपयोग को प्रचलित करने के लिए साल 1953 के उपरांत हर साल 14 सितंबर को हिन्दी दिवस मनाया जाता है। बहरहाल, आज प्रतिस्पर्धा का जमाना है और आज के समय की स्थिति यह कि छात्र हिंदी के प्रति गर्व का अनुभव तो करते हैं लेकिन उसे आत्मविश्वास के साथ परीक्षा का माध्यम बनाने से डर रहे हैं, वे सोचते हैं कि यदि वे हिंदी को अपना माध्यम चुनेंगे तो वे अन्य छात्रों की तुलना में पिछड़ जायेंगे, क्यों कि आज आम आदमी की यह सोच बन चुकी है कि सिर्फ और सिर्फ अंग्रेजी को अपनाकर ही आगे बढ़ा जा सकता है, लेकिन यह ठीक नहीं है। दरअसल, हमारे देश में आज भी हम मैकाले की शिक्षा पद्धति पर ही चल रहे हैं और अंग्रेजी भाषा से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं।सच तो यह है कि कहीं ना कहीं हम आज भी लार्ड मैकाले की शिक्षा प्रणाली को ही ढो रहे हैं। हम अपनी मातृभाषा की जड़ों से नहीं जुड़ पा रहे हैं। यह विडंबना ही है कि आज दुनिया के सर्वोच्च विश्वविद्यालयों में भी हमारे किसी विश्वविद्यालय का नाम नहीं है। शिक्षा को लेकर हमारा अतीत गौरवशाली रहा है, नालंदा और तक्षशिला विश्वविद्यालयों में केवल भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करने के लिए आते रहे हैं। शिक्षा और ज्ञान हमारे देश की पहचान रही है, हमारी भाषा, हमारी संस्कृति भी हमारी पहचान है और हमें यह बात अपने जेहन में रखनी चाहिए कि हमें इसी के बल पर पुन: भारत को विश्वगुरु के सिंहासन पर विराजमान करना है।
आज हमारे छात्रों के भीतर भाषा को लेकर भी कहीं न कहीं एक डर है कि यदि वे अंग्रेजी को नहीं अपनायेंगे तो वे पिछड़ जाएंगे और यह डर अंग्रेजी के बढ़ते वर्चस्व से ही उत्पन्न हुआ है, आज हमारे माता पिता, अभिभावक हमें अंग्रेजी स्कूलों में पढ़ाना अधिक उचित समझते हैं, लेकिन वर्तमान समय में हिंदी विश्व बाजार की भाषा बन गई है। आज संयुक्त राष्ट्र के पटल पर हिंदी की गूंज सुनाई देती है, विश्व के अनेक देश हिंदी भाषा के प्रति अपनी रूचि दिखा रहे हैं और इसे सीख रहे हैं। विदेशी धरती पर हिंदी की धमक सुनाई देने लगी हैं, सोशल नेटवर्किंग साइट ट्विटर, फेसबुक, व्हाट्स एप, इंस्टाग्राम, इंटरनेट पर हिंदी का जमकर प्रयोग किया जा रहा है। विदेशों में हिंदी फिल्में आज खूब चलतीं हैं, हिंदी साहित्य की हर तरफ आज बहार है। हमें यह बात अपने जेहन में रखनी चाहिए किभाषा मानव सभ्यता का एक अभिन्न व शक्तिशाली अंग है और यह भाषा ही होती है जो किसी भी राष्ट्र को एक अलग व महत्त्वपूर्ण पहचान देती है। राष्ट्रभाषा राजनैतिक, आर्थिक एवं सामाजिक दृष्टि से किसी भी राष्ट्र को सुदृढ़ व मजबूत बनाती है और उसकी एकता एवं अखण्डता को अक्षुण्ण रखने में सहायता प्रदान करती है। परंतु, भारत में जो कि विविधताओं का देश है, उसमें एक राष्ट्रभाषा एक जटिल मुद्दा है। हालांकि हिंदी आज लगातार आगे बढ़ रही हैं और अपनी सफलता का परचम लगातार लहरा रही है लेकिन अभी भी कहीं न कहीं हिंदी को तकनीकी भाषा के रूप में उपयोग करने में कठिनता है। हमारे देश में अंग्रेजी भाषा की चुनौती है, हिंदी के कुछ शब्द बहुत क्लिष्ट हैं, अन्य क्षेत्रीय भाषाओं की भावनाओं का असर भी यहां देखने को मिलता है, लेकिन हमें मीडिया और फिल्मों में हिंदी को और अधिक प्रोत्साहन देने की जरूरत है। इंटरनेट पर हिंदी के प्रोत्साहन की और अधिक जरूरत है।
आज हमें हमारे राष्ट्र की मां बोली की स्वीकार्यता को बढ़ाने की जरूरत है। वास्तव में, निरंतर प्रगति एवं विकास ही किसी भी भाषा को स्वस्थ एवं जीवित रखती है और उसके लिये अन्य भाषाओं, संस्कृतियों से आदान-प्रदान अत्यंत आवश्यक है। भाषा के विकास के लिए हमें इसके(हिंदी भाषा के) शब्दकोश में विभिन्न भाषाओं से, विभिन्न संस्कृतियों से शब्दों को बिना कोई ये परवाह करते हुए, सभी भाषाओं के साथ सामाजिक समरसता, भाईचारे का संबंध स्थापित करते हुए, उन सभी भाषाओं से हाथ से हाथ मिलाकर, अपने शब्दकोश में शब्दों को डालना होगा कि अमुक शब्द उस भाषा संस्कृति का है या नहीं। ‘मैं’ की प्रवृत्ति का त्याग करके ‘हम’ की भावना का विकास करना होगा। वास्तव में, जहाँ हम हिन्दी को राष्ट्रभाषा के रूप में देखना चाहते हैं, वहीं हमें क्षेत्रीय भाषाओं को भी समान बढ़ावा देने की जरूरत अंत्यंत ही महत्ती है। यह बहुत ही चिंताजनक बात है कि हमारे देश के संविधान द्वारा अनुमोदित “त्रिभाषीय सूत्र” अधिकांश हिन्दी भाषीय राज्यों व अन्य राज्यों में आज भी प्रभावी ढंग से लागू नहीं किया जा रहा है। अधिकाधिक हिन्दी भाषियों को अन्य क्षेत्रीय भाषाओं जैसे कि कन्नड, गुजराती, तमिल आदि भाषाओं को सीखना चाहिए। इसके लिये शिक्षा प्रणाली में व्यापक सुधार कर त्रिभाषीय सूत्र को कड़े रूप से लागू करने की आवश्यकता है। आज विज्ञान और तकनीक का युग है जो हिंदी के लिए अत्यंत मददगार सिद्ध हो सकता है। वास्तव में हमें संविधान के अनुच्छेद 351 के अनुसार हिंदी का विकास करना होगा जो कहता है कि-,’संघ का यह कर्तव्य होगा कि वह हिन्दी भाषा का प्रसार बढ़ाए, उसका विकास करे जिससे वह भारत की सामासिक संस्कृति के सभी तत्वों की अभिव्यक्ति का माध्यम बन सके और उसकी प्रकृति में हस्तक्षेप किए बिना हिन्दुस्तानी में और आठवीं अनुसूची में विनिर्दिष्ट भारत की अन्य भाषाओं में प्रयुक्त रूप, शैली और पदों को आत्मसात करते हुए और जहाँ आवश्यक या वांछनीय हो वहाँ उसके शब्द-भंडार के लिए मुख्‍यतः संस्कृत से और गौणतः अन्य भाषाओं से शब्द ग्रहण करते हुए उसकी समृद्धि सुनिश्चित करे।’

(आर्टिकल का उद्देश्य किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं है।)

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