संपादकीय

बालिकाओं के प्रति कितनी बदली हमारी सोच?

राष्ट्रीय बालिका दिवस 11 अक्टूबर पर विशेष

-डॉ. प्रभात कुमार सिंघल, कोटा
लेखक एवं पत्रकार
लड़कियों के प्रति किसी प्रकार की असमानता न हो, समुचित शिक्षा -सुपोषण हो और उनके अधिकारों के प्रति जागरूकता की मूल भावना को लेकर पिछले करीब 19 वर्षों से हर वर्ष मनाए जा रहे राष्ट्रीय बालिका दिवस कितना सार्थक साबित हुआ है, चिंतन का बड़ा सवाल है।
कहने को तो गर्भ में पल रहे शिशु भ्रूण की पहचान नहीं करने के लिए कानून है की भ्रूण परीक्षण नहीं हो।इसे आपराधिक कृत्य मान कर सजा का प्रावधान किया गया है। जांच होने पर भ्रूण कन्या होने पर गर्भ गिरा दिया जाता था। इससे लड़का-लड़की का लिंगानुपात गड़बड़ा जाता था। यद्धपि इस प्रवृत्ति में कमी आई है फिर भी सामाजिक रूप से सोच यही बनी गई है कि किसी भी तरह से पता चल जाये कि गर्भ में पल रहा भ्रूण कन्या तो नहीं है। आज भी चोरी छुपे गर्भधारण जांच की कई घटनाएं मीडिया की सुर्खी बन जाती हैं।
कन्या जन्म के बाद जागरूकता से यद्यपि परिवार में खुशी जताई जाती है, गांवों में थालियां बजाई जाती हैं और कहा जाता है घर में लक्ष्मी आई है। जब कि मन की सोच और परिजनों में चर्चा यही रहती है, भगवान बेटा दे देता तो कितना अच्छा रहता। पहली संतान तो लड़का हो जाती। भगवान ने पहले ही एक लड़की दे रखी था दूसरी और आ गई। बड़े बुजुर्ग कहते सुने जा सकते हैं, भगवान एक पोता तो दे देता।
परिवारों में आज भी लड़का-लड़की में भेदभाव देखा जा सकता है। लड़की की अपेक्षा लड़के को ज्यादा महत्व दिया जाता हैं। खाने में, पहनने में, शिक्षा में, सम्मान में सभी में लड़की के साथ दोयम दर्जे का बर्ताव किया जाता हैं और अपेक्षकृत कम सुविधाएं उपलब्ध कराई जाती हैं।
चर्चा बालिका सुरक्षा की करें तो वे कितनी सुरक्षित हैं हर दिन समाचार पत्र और चैनल्स चीख-चीख कर कहते नजर आते हैं। बाहर तो छोड़ो आज तो हमारे अपने घरों तक में सुरक्षित नहीं हैं बेटियां। कलयुगी पिता अपनी ही बेटी से, कलयुगी शिक्षक उसके अधीन पढ़ने वाली छात्रा से, चचेरे भाई द्वारा अपने दोस्तों के बहन से, साथ कुकर्म करना जैसी बालिका योन उत्पीड़न की घटनाएं शर्मशार तो करती हैं वहीं रिश्तों को तार-तार कर देती हैं। बालिकाओं के योन उत्पीड़न की घटनाएं अब तो हिंसात्मक रूप लेने लगी हैं। बालिका से बलात्कार, गैंग रेप, रेप के साथ-साथ घर वालों को धमकी देना, रेप की वीडियो बना कर बदनाम करने की धमकी दे कर कई बार बलात्कार करना, रेप के बाद मारपीट करना, तेजाब डाल देना, हत्या कर देना जैसी जघन्य परिणीति बालिकाओं की सुरक्षा के प्रयासों की खुल कर पोल खोलने को पर्याप्त हैं। इससे भी खतनाक पहलु यह है कि ऐसे कई मामलों में तो पुलिस में एफआईआर तक दर्ज नहीं की जाती, ऊपर से जब दबाव पड़ता है तो जा कर कहीं एफआईआर दर्ज हो पाती है। किसी-किसी को न्याय मिल भी पाता है तो काफी जिद्दोजहद से लंबे समय बाद। बलात्कार पीड़ित बालिका का पूरा जीवन उसके लिए शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ना ,अपमान और दर्द की दास्तान बन कर रह जाता हैं।
बालिकाओं के प्रति समाज इस नजरिये और माहौल के बावजूद भी बालिकाओं ने पढ़-लिख कर अपने बूते पर वर्चस्व कायम किया हैं। शिक्षा, खेल, देश रक्षा, विज्ञान, अंतरिक्ष, समाजसेवा सभी क्षेत्रों में बालिकाओं ने अपने अदम्य साहस का परचम लहराया है। उन्होंने समाज को बता दिया हम भी किसी से कम नहीं हैं, हमारे प्रति अपना नजरिया बदलें। हमारे जन्म को बोझ नहीं समझे। हमें जन्म दें, जीने का अधिकार दें ,मान और सम्मान दें। लड़कियों के प्रति अभी भी समाज के सोच को व्यापक रूप से बदलने की जरूरत हैं। परिवार, समाज, शासन-प्रशासन, समाजसेवी संस्थाएं सभी को एकजुट हो कर कन्या को जन्म देने, अच्छा पोषण करने, अच्छी शिक्षा देने, लड़के के समान समझने एवं उन्हें समुचित सुरक्षा की दिशा में गम्भीरता से प्रयास करने होंगे।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *