संपादकीय

जोधराज परिहार “मधुकर” का नवोदित प्रतिभाओं को निखारने का वंदनीय प्रयास

हाड़ोती क्षेत्र में साहित्य के फलक पर उत्कृष्ट व्यक्तित्व के धनी जोधराज परिहार “मधुकर” एक ऐसा नाम है जो अपनी साहित्यिक प्रतिभा के साथ – साथ कई प्रांतों की नवोदित प्रतिभाओं को भी उभारने का सार्थक प्रयास कर रहे हैं। इनकी साहित्यिक त्रैमासिक पत्रिका “काव्य सृजन” गत दो वर्ष से नवोदित साहित्यिक प्रतिभाओं को एक सशक्त मंच प्रदान कर रही है। इसके लिए इन्होंने हाड़ौती के साहित्यिक परिवेश में ” मधुकर काव्य सृजन संस्थान ” की कोटा में स्थापना की है। इनके संपादन में प्रकाशित इस पत्रिका का आठवाँ अंक ( दूसरे वर्ष का चौथा अंक) अक्टूबर 23 में विशेषांक के रूप में प्रकाशित होने जा रहा है।
पत्रिका के बारे में मधुकर बताते हैं कि इसमें लगभग सात प्रांतों से रचनाकारों की रचनाएँ नियमित प्रकाशित की जा रही हैं। पत्रिका में सामान्य साहित्यकारों की रचनाओं के अलावा चार परिशिष्ट हैं। प्रथम परिशिष्ट “नई कोंपल ” में साहित्य क्षेत्र के नवोदित कलमकारों की रचनाओं को प्रकाशित किया जाता है। साथ ही पत्रिका के विमोचन पर उन्हें सम्मानित कर प्रोत्साहित किया जाता है, जिससे उनकी लेखनी में अधिक से अधिक निखार आ सके। दूसरा परिशिष्ट ” आलेख ” में कोई एक विषय देकर उस पर आलेख आमंत्रित किए जाते हैं। चयनित श्रेष्ठ आलेख को पत्रिका में प्रकाशित किया जाता है। नवोदित प्रतिभाओं को आगे बढ़ाने में निश्चित ही मधुकर का यह प्रयास स्तुत्य है।
पत्रिका का तृतीय परिशिष्ट “हमारे साहित्यकार” में किसी एक वरिष्ठ साहित्यकार के बारे में परिचय सहित विस्तार से लेख प्रकाशित किया जाता है ताकि इससे उभरते हुए साहित्यकार उनके बारे में पढ़कर अपने साहित्यिक लेखन को अधिक से अधिक सुघड़ और प्रभावशाली बना सके। चतुर्थ परिशिष्ट ” इतिहास के झरोखे से ” में राजस्थान के किसी एक एतिहासिक स्थल, मन्दिर, या घटना के बारे में जानकारी प्रकाशित की जाती है जिससे सभी साहित्य साधक उसके बारे में साहित्यिक जानकारी प्राप्त कर सके। वे बताते हैं कि इस साहित्यिक पुनीत कार्य के यज्ञ में वरिष्ठ साहित्यकार जितेन्द्र “निर्मोही”, विजय जोशी, गजलकार एवं पत्रिका के सह संपादक रामावतार सागर, वरिष्ठ साहित्यकार एवं संस्था कोषाध्यक्ष हेमराज सिंह ” हेम ” और साहित्यकार बालूलाल वर्मा निरंतर आहुति दे रहे हैं।

साहित्य सृजन

मधुकर स्वयं भी हिंदी और हाड़ोती भाषा में लेखन का सामान अधिकार रखते हैं। आप दोनों ही भाषाओं में छंदबद्ध ओर छंद मुक्त के साथ-साथ गीत, गजल, कविता, मुक्तक आदि साहित्यिक विधाओं में उत्कृष्ट लेखन के घनी हैं। आपके हाड़ौती के गीत ” बेटी का दर्द’ की एक बानगी इस प्रकार है…………
मलबों बी तो मौसर होग्यो, बाबुल अतनी दूर पड़ी।
थांने परदेशा परणा दी-2 , बाबुल थांकी सोन चड़ी।
मलबों बी तो मौसर होग्यो, ———
बेटी बेटी करता होगा, घर में जब आता होगा।
रात रात भर रोता होगा, याद घणी करता होगा।
यादां जब जब आयी होगी,ऑंख्यां भर आयी होगी।
बेटी तो छ परायों धन जी,माँ यूँ समझाती होगी।
माँ करती बी कांई करती,रोती होगी दूर खड़ी।
थांने परदेशा परणा दी,बाबुल थांकी सोन चड़ी।
मलबों भी तो मौसर होग्यो, —-
आंगन बैठ्यो काग उड़ाऊ, मझ रातां मूॅं जग जाऊँ।
सूती सूती मन ही मन म्हूं, बीरा सूं यो बतलाऊॅं।
एक बार हाल पूछ ले तो, साल बित गया बतलायां।
भूल गयो तू जामण जायां,बरस बित गया थनै आयां।
चुपके चुपके आंसू पटकूं, बाबुल म्हूं तो घड़ी घड़ी।
थांने परदेशा परणा दी, बाबुल थांकी सोन चड़ी।
मलबों बी तो मौसर होग्यो, —-
सासूं ससरा जेठ जिठानी, हाथां हाथां में राखे।
देवर देवराणी क तांई, तो धन्य हुई म्हूं पाके।
आंगन म्हारों मन्दिर लागे, देवता छ ये जणा जणा।
अन्न धन्न की कमी कोई न, प्रेम पावणा घणा घणा।
दुखड़ो तो कौण रती भर बी ,थांकी आवे याद घणी।
थांने परदेशा परणा दी, बाबुल थांकी सोन चड़ी।
मलबों बी तो मौसर होग्यो, —–

हिंदी गीत

आपने हाड़ोती भाषा के साथ हिंदी में भी कई गीत लिखे हैं। मातृभाषा हिन्दी में गीत ” भारत भौर सुहानी ” के अंश इस प्रकार है………..
कण कण भारत मन मन भारत, भारत ढाणी ढाणी |
धरती का वैभव है भारत, भारत भौर सुहानी|
कण कण भारत———
उत्तर खड़ा हिमालय अपना, दक्षिण बसता सागर|
रवि पूरब में जगमग करता, पश्चिम भरता गागर|
केसरिया सा बाना पहने, बनी छटा बलिदानी|
धरती का गौरव है भारत, भारत भौर सुहानी|
कण कण भारत—————
गुजरात नृत्य गरबा करती, सजधज कर बालाऐ|
केरल का कथक नृत्य कहता, शिव ताण्डव गाथाऐ|
मन मोहक मन मोह लेता है, धूमर राजस्थानी|
धरती का वैभव है भारत, भारत भौर सुहानी|
कण कण भारत————

मुक्तक

आपने अनेक गीतों और गजलों के साथ-साथ वर्तमान परिवेश पर कई मुक्तक भी लिखे हैं। आपके कुछ मुक्तकों की बानगी इस प्रकार है……….
(१ )ये ऐसा है वो ऐसा है, मछलियाँ शोर करती है।
जमे बैठे मठाधीशों पे, हर बार चोट करती है।
आपस में शह ओर मात का, यही तो खेल है सारा
क्योंकि देश की यह जनता भी, इसी पे वोट करती है।
(२ )देखो दुश्मन देश का, जहर देश में घोल रहा है।
हमें नजर अंदाज कर, औरों से कम तोल रहा है।
यह दुश्मन की हरकते , लगती है नापाक हमे अब
भारत की जयकार जब, बच्चा बच्चा बोल रहा है।

सम्मान

आपको हिन्दी दिवस 2023 पर प्रेरणा हिन्दी प्रचारिणी सभा जबलपुर से दिल्ली में भाग लेने पर सम्मान पत्र, राष्ट्रीय काव्य संग्रह मंच पर काव्य पाठ करने के लिए ” काव्य कुसुम सम्मान “, काव्योदय मंच पर काव्य पाठ करने पर ” दाद- ओ- तहसीन ” सम्मान पत्र, तथा श्री कर्मयोगी सेवा संस्थान कोटा से ” श्री कर्मयोगी साहित्य गौरव सम्मान ” से सम्मानित किया जा चुका है। आप कई संस्था से संबद्ध हैं। सारंग साहित्य समिति, करसो खेत खंलाण समिति ढ़ोटी, चलता फिरता क्लब देई,आदि प्रमुख हैं । आपने इनके मंचों से एवं कवि सम्मेलनों में काव्य पाठ कर श्रोताओं से हमेशा दाद पाई है।

परिचय

नवोदित साहित्यिक प्रतिभाओं को उजागर कर उन्हें आगे बढ़ाने का मतवपूर्ण कार्य करने वाले जोधराज परिहार ” मधुकर” का जन्म 7 जुलाई 1967 को कोटा जिले की तहसील सांगोद के छोटे से गांव बोरीना कलां में पिता श्याम लाल जी सेन और माता श्रीमती लटूरी बाई के परिवार में हुआ। पिता जी खेती करते थे। आपकी प्राथमिक शिक्षा गांव में हुई। अपने बड़े भाई के पास रहकर राजकीय महाविद्यालय कोटा से विज्ञान संकाय में स्नातक की डिग्री प्राप्त की और 1991 में शिक्षा महाविद्यालय डीग से बीएड कर शिक्षा विभाग में अध्यापक का पद पर नियुक्ति हो गई। आप वर्तमान में ब्लॉक शिक्षा अधिकारी कोटा शहर में संदर्भ व्यक्ति के पद पर सेवारत हैं और साहित्य साधना में लगे हुए हैं।

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