संपादकीय

शिक्षित समाज पर एक कलंक है रेगिंग

-सुनील कुमार महला
फ्रीलांस राइटर कालमिस्ट व युवा साहित्यकार (उत्तराखंड)

आज के समय में विभिन्न कालेजों, विश्वविद्यालयों, शिक्षण संस्थाओं में रेगिंग पर रोक होने के बावजूद रेगिंग का रोग थमता नजर नहीं आ रहा है और रह रहकर बीच बीच में रेगिंग की घटनाएं सामने आ रही हैं। कहना ग़लत नहीं होगा कि कैंपस में रैगिंग के मामले उच्च शिक्षा संस्थानों में वर्षों से चिंता का विषय रहे हैं। ‘रैगिंग’ का अर्थ है ऐसा कोई कार्य करना जो किसी छात्र को शारीरिक, मनोवैज्ञानिक या दैहिक क्षति पहुंचाता है, या शर्मिंदगी या शर्मिंदगी का कारण बनता है।वास्तव में,एक शिक्षण संस्थान के किसी अन्य छात्र के खिलाफ एक छात्र द्वारा किये गये किसी भी शारीरिक, मौखिक या मानसिक दुर्व्‍यवहार को रैगिंग कहते हैं। यदि कोई छात्र किसी अन्य छात्र को उसके काम करने के लिए धौंस दिखाता है या किसी छात्र को कॉलेज समारोह जैसी परिसर की गतिविधियों से बाहर रखा जाता है, तो उसे रैगिंग माना जाता है। कहना ग़लत नहीं होगा किशारीरिक शोषण, उदाहरण के लिए, खाने, पीने या धूम्रपान करने के लिए मजबूर करना, कपड़े पहनने या कपड़े उतारने के लिए मजबूर करना,मौखिक दुर्व्यवहार, उदाहरण के लिए अपशब्द और वाक्यांश, व्यक्ति की उपस्थिति, पोशाक, धर्म, जाति, परिवार या अध्ययन के चुने हुए क्षेत्र के लिए प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अपमानजनक संदर्भ आदि दुर्व्यवहार और गतिविधियों को रेगिंग में शामिल किया जा सकता है। सरल शब्दों में कहें तो किसी भी छात्र को कोई भी कार्य करने, या कोई भी कार्य करने के लिए कहना, जिसे वह सामान्य रूप से करने या प्रदर्शन करने के लिए तैयार नहीं होगा, ही रेगिंग के अंतर्गत आती है। पाठकों को जानकारी देना चाहूंगा कि रेगिंग का उद्देश्य विकृत आनंद प्राप्त करना है। हालांकि यह भी एक तथ्य है कि रैगिंग को आमतौर पर पुराने छात्रों द्वारा कॉलेज लाइफ में नए छात्रों के स्वागत का दोस्ताना तरीका माना जाता है। एक रूप में इसे नए छात्रों और पुराने छात्रों के बीच की दूरियों को पाटने का प्रयास भी माना जाता है, जो नए छात्रों को अपने वरिष्ठों (सीनियर्स) के साथ घुलने-मिलने और संवाद कायम करने का मौका देता है, लेकिन छात्र संवाद कायम करने की बजाय नये छात्रों के साथ दुर्व्यवहार, दादागिरी करते हैं।जानकारी देना चाहूंगा कि भारत में विश्‍वविद्यालय अनुदान आयोग(यूजीसी) ने भारतीय विश्वविद्यालयों में इसको रोकने के लिए कई निर्देश जारी किए हैं। यहां तक कि इसके लिए एक टोल फ्री हेल्पलाइन भी शुरू की गई है, लेकिन रेगिंग है कि थमने का नाम ही नहीं ले रही है। जानकारी देना चाहूंगा कि वर्ष 2001 में भारत के उच्चतम न्यायालय ने रैगिंग पर संज्ञान लेते हुए इसकी रोकथाम के लिए केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो के पूर्व निदेशक ए राघवन की अध्यक्षता में एक समिति बनाई थी।
मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा भी अपने अधीन आने वाले शिक्षा संस्थानों में रैगिंग के विरुद्ध कड़े निर्देश जारी किए गए थे। कई राज्यों ने भी इस पर रोक लगाने के लिए कानून बनाए हैं। वर्ष 1997 में तमिलनाडु में विधानसभा में रैगिंग-विरोधी कानून पास किया गया, लेकिन इनसे रेगिंग में कहीं न कहीं कमी तो जरूर देखने को मिली है लेकिन इस पर पूर्णतया पाबंदी अभी तक भी नहीं लगाई जा सकी है और यही कारण है कि रेगिंग एक गंभीर रोग का रूप धारण करने की ओर रूख कर रहा है। आंकड़े बताते हैं कि शैक्षिक सत्र 2009-10 में रैगिंग से हुई सर्वाधिक मृत्यु दर्ज की गईं । इनमें महाराष्ट्र शीर्ष दो राज्यों में से एक था, जिनमें रैगिंग से सर्वाधिक मौतें हुईं। रैगिंग का प्रतिशत मेडिकल और इंजीनियरिंग कॉलेजों में सर्वाधिक बढ़ा है। गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज औरंगाबाद, महाराष्ट्र में वर्ष 2011 में एक रैगिंग मामले में फाइनल इयर के 13 छात्रों को 25 हजार रुपये प्रत्येक का जुर्माना लगाया गया। यह महाराष्ट्र में अपनी तरह का पहला मामला था। जानकारी देना चाहूंगा कि फरवरी 2009 में सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2007 के अपने अंतरिम आदेश को पुनर्बहाल करते हुए इसे ‘मानवाधिकार हनन’ की संज्ञा दी थी। साथ ही, इसने सभी शैक्षिक संस्थाओं को यह निर्देश दिया था कि वे इससे सख्ती से निपटें। सर्वोच्च न्यायालय ने 16 मई, 2007 के अंतरिम आदेश को पुनर्बहाल करते हुए रैगिंग का सख्ती से उन्मूलन करने के संकेत दिए, तो यू.जी.सी. ने भी इस पर सकारात्मक रवैया अपनाते हुए यू.जी.सी. एक्ट 1956 को प्रभावी बनाने का प्रयास किया तथा सभी विश्वविद्यालयों एव संस्थानों को कहा कि इस एक्ट की किसी भी प्रकार की अवहेलना होने की स्थिति में विश्वविद्यालय अथवा संस्थान के विरुद्ध दंडात्मक कार्रवाई की जाएगी। जानकारी मिलती है कि श्रीलंका दुनिया में रैगिंग से सर्वाधिक प्रभावित देश है, लेकिन भारत में भी रेगिंग के कम मामले सामने नहीं आते हैं। पाकिस्तान व बांग्लादेश जैसे देश भी रेगिंग से काफी प्रभावित नजर आते हैं। सच तो यह है कि आज के इस आधुनिक युग में कॉलेजों, विभिन्न शिक्षण संस्थाओं और विश्वविद्यालयों में वरिष्ठ(सीनियर )छात्र नए छात्रों से अपनी बड़ाई प्रकट करने के लिए बहुत ही अपमानजनक रूप से पेश आते हैं, अभद्र हरकतें, गुंडागर्दी और अभद्र तरीकों का प्रदर्शन करने पर जोर देते हैं। वो रेगिंग का भय दिखाकर कनिष्ठ छात्र -छात्राओं के साथ दुर्व्यवहार करते हैं और स्वयं को बड़ा व बेहतर साबित करते हैं। रेगिंग के कारण नये छात्र -छात्राओं को बहुत सी मानसिक व शारीरिक यातनाओं तक का सामना करना पड़ता है। आज के समय में अब किसी भी कॉलेज, विश्वविद्यालय में रैगिंग एक बड़ा अपराध माना गया है। रैगिंग का दोष साबित होने छात्रों को तो सजा मिलेगी ही, साथ ही संबद्ध कॉलेज, विश्वविद्यालय पर भी कार्रवाई होगी और उस पर आर्थिक दंड भी लगाया जाएगा। जानकारी मिलती है कि रैगिंग के खिलाफ सबसे कड़ी सजा दोषी को तीन साल तक सश्रम कैद है। दूसरे शब्दों में कहें तो मानसिक चोट, शारीरिक दुर्व्‍यवहार, भेदभाव, शैक्षणिक गतिविधि में व्‍यवधान आदि सहित छात्रों के खिलाफ रैगिंग के विभिन्न रूपों को कानून, दंडित करता है। आज रेगिंग न हो इसके लिए कालेजों, विश्वविद्यालयों में छात्र -छात्राओं से प्रतिज्ञाएं ली जाती हैं लेकिन बावजूद इसके रेगिंग की जाती है।ताजा मामला हिमाचल प्रदेश के मंडी में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान यानी आईआईटी का है। जानकारी के मुताबिक सीनियर छात्रों ने जूनियर स्टूडेंट्स को पार्टी के बहाने क्लास रूम में बुलाया और मुर्गा बनाया। जानकारी देना चाहूंगा कि सीनियर छात्रों द्वारा जूनियर बच्चों को काफी देर तक क्लास रूम में मुर्गा बनाकर रखा गया, जिससे कई छात्र दहशत में आ गए। हालांकि आई आई टी प्रबंधन ने मामला ध्यान में आने के बाद 10 छात्रों को छह महीने के लिए सस्पेंड कर दिया है। इन्हें हॉस्टल से भी बाहर करने के आदेश दिए गए हैं। जानकारी मिलती है कि रैगिंग में संलिप्त 75 अन्य छात्रों पर 15-15 हजार रुपए का जुर्माना लगाया गया है। यहां तक कि रैगिंग में संलिप्त सभी आरोपियों को परिजन साथ लाने को कहा गया है, लेकिन यहां यक्ष प्रश्न यह उठता है कि आखिर रेगिंग की यह घटना क्यों घटित हुई ? इसके पीछे कारण क्या रहे ? इस पर विचार किया जाना चाहिए। हाल फिलहाल,निस्संदेह आईआईटी मंडी के प्रबंधन के इस कदम से संबंधित छात्रों को अपनी गलती का अहसास हुआ होगा और दूसरे संस्थानों के छात्रों को भी इससे सबक मिल सकेगा। आज से 15-20 साल पहले तक तो शैक्षणिक संस्थानों में रैगिंग का चलन आतंक का पर्याय बन चुका था। मेडीकल व इंजीनियरिंग कॉलेजों, उच्च शिक्षण संस्थाओं में रेगिंग की बहुत सी घटनाएं सामने आती थी। हालांकि अब यह पहले की तुलना में बहुत कम हो चुकी हैं लेकिन एक भी रेगिंग की घटना आखिर क्योंकर हमारे देश में होनी चाहिए ? पहले पुराने छात्र नए छात्रों से परिचय के नाम पर उन्हें प्रताड़ित किया करते थे, उनसे अशोभनीय हरकतें कराते थे, उनके साथ अभद्र भाषा में बात करते थे। तमाम उच्च शैक्षणिक संस्थान भी इसे एक आम चलन की तरह स्वीकार कर लेते थे। मगर इसके चलते बहुत सारे कोमल मन के विद्यार्थी दहशत से भर उठते थे। अनेक छात्र-छात्राओं ने रैगिंग के चलते खुदकुशी तक कर ली।
हमारे देश की सर्वोच्च अदालत तक को रेगिंग की घटनाओं पर स्वत‌: संज्ञान लेना पड़ा। सख्त कानून बनाया गया।रैगिंग करने वालों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई की जाने लगी। फिर भी छात्रावासों, उच्च शिक्षण संस्थाओं में रेगिंग की गतिविधियां चोरी-छिपे चलती रहीं। दरअसल, सीनियर छात्रों ने रैगिंग को एक तरह से अपने मनोरंजन और अपनी कुंठा निकालने का माध्यम बना लिया था। कड़े कानून और कठोरता से रेगिंग पर रोक लगाने के प्रयासों से काफी हद तक ऐसी गतिविधियां रुकी हैं, लेकिन हिमाचल प्रदेश आईआईटी मंडी में हाल ही में हुई रेगिंग की घटना से यह पता चलता है कि यह अब भी पूरी तरह समाप्त नहीं हुई है। यह ठीक है आज कालेज, कलीग और कन्वर्सेशन का जमाना है। कालेज में कलीग्स होते हैं और क्लीग्स के बीच कंवर्सेशन होना बहुत जरूरी है क्यों कि आपसी इंटरेक्शन से ही शिक्षण संस्थानों में पठन और पाठन का वातावरण अच्छा बनता है। सीनियर छात्रों को यह चाहिए कि वह अपने जूनियर छात्रों का हर संभव सहयोग करें। उनकी समस्याओं को सुनें और समझें तथा उनका समाधान निकालने का प्रयास करें। किसी को प्रताड़ित करके, दुखी करके, किसी को मानसिक व शारीरिक रूप से हानि पहुंचाकर अपनी मनमानी करना किसी भी हाल व परिस्थितियों में जायज़ नहीं ठहराया जा सकता है। वास्तव में सच तो यह है कि मेलजोल बढ़ाने का यह अर्थ कतई नहीं होता कि नए विद्यार्थियों को प्रताड़ित किया जाए, उन्हें अपमानित किया जाए,उनका शोषण किया जाए। नये छात्र बहुत ही कोमल व मृदु स्वभाव के होते हैं। दुर्व्यवहार से उनके आत्मविश्वास, आत्मसम्मान को ठेस पहुंचती है। सीनियर छात्रों को यह बात ध्यान में रखनी चाहिए कि स्नेहिल व अच्छे व्यवहार से ही सीनियर छात्र अपने जूनियर छात्रों के दिलों में स्थान बना सकते हैं। उसी स्थिति में मेलजोल की भावनाओं में बढ़ोतरी हो सकती है।वरिष्ठ या सीनियर होने का अर्थ अपने कनिष्ठ(जूनियर )के प्रति सुरक्षात्मक और सहयोगी होना होता है, न कि उसे प्रताड़ित करना और वास्तव में विद्यार्थियों में ऐसे भाव पैदा करने की जिम्मेदारी शैक्षणिक संस्थानों की है। कुल मिलाकर यह बात कही जा सकती है कि रेगिंग शिक्षित समाज पर एक बड़ा कलंक है।

(आर्टिकल का उद्देश्य किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं है।)

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