संपादकीय

बंद मुट्ठी में गणतंत्र कसे

-डॉ एम डी सिंह

बंद मुट्ठी में गणतंत्र कसे
मन में सबके वह मंत्र बसे

भटके न कभी कोई पथ से
छिटके न कभी कोई रथ से
सबके नाक एक नकेल हो
बंध रहें सब एक ही नथ से

कभी कोई ना अन्यत्र हंसे
मन में सबके वह मंत्र बसे

पुर्जा हिले न एक यंत्र का
न खंडित हो एक शब्द मंत्र का
तभी देश गतिमान रहेगा
समगति चले हर अंग तंत्र का

रग रग में जीवन जन्त्र रसे
मन में सबके वह मंत्र बसे

दुश्मन ढूंढ रहे हैं अवसर
रहे खेल दिन-प्रतिदिन चौसर 
फिर महाभारत न हो जाए
पढ़ना होगा हमको अरिसर

कहीं आ न फिर परतंत्र ठ॔से
मन में सबके वह मंत्र बसे

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