संपादकीय

दृश्य देख विध्वंश का धरती भय से थर्राती है !

-सुनील कुमार महला
फ्रीलांस राइटर, कालमिस्ट व युवा साहित्यकार (उत्तराखंड)

युद्ध किसी भी समस्या का कभी भी स्थाई समाधान नहीं होता है। युद्ध में केवल और केवल विध्वंस है,आग है,धमाका है,खून है, चीत्कारें हैं। युद्ध मानवहीनता की पराकाष्ठा है, वास्तव में युद्ध करूणा का अंत है। युद्ध के विरूद्ध केशव शरण अपनी एक कविता’ युद्ध महान् ‘में कुछ यूं लिखते हैं-‘अपना रथ भी दौड़ाऊं, बाण भी चलाऊं और जीत भी लूं युद्ध महान्, मेरी सैन्य-सुविधाएं क्या यही भगवान ! मैं वीर गति को प्राप्त हो जाऊं और पाऊं स्वर्ग में स्थान, इस सांत्वना के अलावा और कुछ नहीं भगवान !’ रूस-यूक्रेन युद्ध को डेढ़ वर्ष का लंबा समय हो गया है। यह ठीक है कि दोनों देशों में वर्चस्व, सम्मान और स्वाभिमान की लंबे समय से जंग जारी है, लेकिन युद्ध से आखिर होगा क्या ? युद्ध से नुकसान ही नुकसान हैं, कोई फायदा नहीं। आज भी दोनों देशों में से कोई भी देश झुकने को और पीछे हटने को तैयार नहीं है और इसका खामियाजा न केवल रूस और यूक्रेन को बल्कि दुनिया के लगभग लगभग सभी देशों को प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से भुगतना पड़ रहा है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि इस युद्ध में न तो कोई जीत रहा है न ही कोई हार रहा है। दिसंबर 2022 में ही यूक्रेनी राष्ट्रपति के आर्थिक सलाहकार ओलेग उस्तेंको के मुताबिक यह बात सामने आई थीं कि , यूक्रेन को युद्ध की वजह से एक ट्रिलियन डॉलर (करीब आठ लाख करोड़ रुपये) का नुकसान हो चुका है। दिसंबर 22 के ही आंकड़ों के अनुसार रूस भी युद्ध में करीब 8,000 अरब रुपये फूंक चुका है।अमेरिका-यूरोप-यूक्रेन और रूस के लिए युद्ध के अपने-अपने मायने हैं और नफे-नुकसान हैं। लेकिन, कुल मिलाकर बात यह है कि पूरी दुनिया को इसकी कीमत चुकानी पड़ रही है। करीब 32 लाख करोड़ रुपये (4 ट्रिलियन डॉलर) का खर्च तो दिसंबर 22 तक ही हो चुका और इसके बाद तो सात महीने का और समय बीत चुका है तो हम अंदाजा लगा सकते हैं कि इस युद्ध पर कितना अधिक खर्च हो चुका है।जाहिर है, यूक्रेन को युद्ध का सबसे ज्यादा खामियाजा भुगतना पड़ा है। भोजन और ईंधन की बढ़ी हुई कीमतें, बाधित आपूर्ति शृंखला, महंगाई और बेरोजगारी जैसे कारकों को शामिल कर देखा जाए, तो युद्ध की वजह से पूरी दुनिया पर करीब 24 लाख करोड़ रुपये (तीन ट्रिलियन डॉलर) का बोझ तो दिसंबर 22 तक ही पड़ा है। कीव स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स का अनुमान है कि 24 फरवरी 2022 से दिसंबर 2022 तक रूसी हमलों में यूक्रेन का 138 अरब डॉलर का इन्फ्रास्ट्रक्चर तबाह हो गया है। भारतीय करंसी में ये रकम 11 लाख करोड़ रुपये से भी ज्यादा बैठती है। आज स्थिति यह है कि युद्ध के कारण शहर के शहर खंडहर हो चुके हैं। पर्यावरण का कितना अधिक नुकसान हुआ है यह सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। रूस यूक्रेन युद्ध में अब तक हजारों लाखों लोगों की जानें जा चुकी है और हजारों लाखों लोग युद्ध के कारण विस्थापित हो चुके हैं। यहां तक कि लोगों की भोजन, ईंधन, बिजली और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी जरूरतें तक पूरी नहीं हो पा रही है और वे युद्ध की वजह से जीवित रहने के लिए लगातार संघर्ष कर रहे हैं। जानकारी देना चाहूंगा कि 24 फरवरी 2022 को रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने यूक्रेन के खिलाफ जंग का ऐलान किया था। यूक्रेन की स्थिति तो यह है गई है कि यूक्रेन आने वाले पचास सालों में भी युद्ध से हुए नुकसान की भरपाई नहीं कर पायेगा, हालांकि युद्ध से रूस भी बरसों पीछे चला गया है और उसका भी नुकसान यूक्रेन से कमतर नहीं आंका जा सकता है। इस युद्ध ने पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था को प्रभावित और अस्त-व्यस्त करके रख दिया है। यूक्रेन द्वारा रूस पर ड्रोन हमले किए जा रहे हैं लेकिन इसी बीच रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन द्वारा सेंट पीटर्सबर्ग में जो बयान दिया है उसे गम्भीरता से लिया जाना चाहिए और युद्ध को समाप्त करने की कोई न कोई पहल जरूर की जानी चाहिए। यह बहुत ही संवेदनशील है कि रूसी सेना यूक्रेन के आत्मसमर्पण करने से पहले हमले रोकने को तैयार नहीं है, वही यूक्रेनी राष्ट्रपति वलोडिमिर जेलेंस्की ने अंतिम सांस तक मुकाबला करने, लड़ने की कसम खाई है। सच तो यह है कि यूक्रेन को नाटो देशों से मिल रहे हथियारों ने युद्ध को लंबा खींचने में बड़ी भूमिका निभाई है। लेकिन जो भी हो इस युद्ध को रोका जाना बहुत ही जरूरी व आवश्यक है। हालांकि युद्ध के संबंध में पुतिन का यह कहना है कि वे कभी भी शांति पहल के खिलाफ नहीं रहे हैं लेकिन जब यूक्रेन की सेना बड़े पैमाने पर उनके देश पर हमले कर रही हों तो रूस की सेना युद्ध विराम कैसे कर सकती है ? आज विश्व के बहुत से देश जैसे भारत, चीन,अफ्रीका दोनों देशों से शांति बरतने की लगातार अपील कर रहे हैं। पुतिन का बयान भी काफी महत्वपूर्ण व अहम् है। रूस और यूक्रेन दोनों ही देशों को अपना दंभ त्यागना होगा और शांति बहाली के लिए मेज पर आना होगा। अमेरिका और यूरोपीय देशों को भी युद्ध की विभिषिका को समझना होगा और हथियारों और गोला बारूद की सप्लाई को बंद करना होगा। हालांकि युद्ध के संदर्भ में रूस और यूक्रेन दोनों ने अब तक यही बात कही है कि वे ​बिना शर्तों के शां​ति वार्ता के लिए बातचीत की मेज पर नहीं आएंगे। यह बहुत ही संवेदनशील और महत्वपूर्ण है।
युद्ध के चलते दुनिया भर में आज पैट्रोल, ऊर्जा संकट व खाद्यान्नों का खड़ा हुआ है। यूक्रेन गेहूं का एक बड़ा उत्पादक देश है और युद्ध के कारण अफ्रीकी देशों में खाद्य संकट लगातार गहरा रहा है। आज सोमालिया, कीनिया, इथियोपिया और दक्षिण सूडान जैसे देशों में पांच करोड़ से ज्यादा लोगों को खाद्य सुरक्षा सहायता की जरूरत है। जानकारी देना चाहूंगा कि रूस यूक्रेन युद्ध से मध्य पूर्व के कुछ देशों में भी खाद्य असुरक्षा पैदा हुई है और खाद्यान्न की कीमतों में अभूतपूर्व उछाल देखने को मिला है। मध्य पूर्व और अफ्रीकी देशों में ही नहीं संपूर्ण विश्व में खाद्यान्न कीमतों में इस युद्ध के कारण बढ़ोत्तरी देखने को मिली है। विश्व के अनेक देशों में युद्ध से गरीबी और भूख में इजाफा हुआ है। ऊर्जा व्यापार, कमोडिटी व्यापार, सेवाएं और यात्रा, निवेश और वित्त पर असर पड़ा है। इतना ही नहीं इस युद्ध के कारण आज संपूर्ण विश्व दो गुटों में बंट चुका है। सच तो यह है कि रूस यूक्रेन युद्ध को यदि तुरन्त नहीं रोका गया तो इससे विश्व शांति को गम्भीर खतरा पैदा हो जाएगा। रूस यूक्रेन के साथ ही अब अमेरिका एवं नाटो देशों को भी अपनी जिद और दंभ छोड़ने की जरूरत है। अमेरिका और नाटो देशों की यह बहुत बड़ी भूल है कि वे यूक्रेन को सैन्य सहायता ,गोला बारूद व हथियारों की सप्लाई करके रूस से युद्ध जितवा देंगे। यूक्रेन को भी नाटों में शामिल होने की महत्वकांक्षा को त्याग देना चाहिए और वार्ता की मेज पर आना चाहिए। अंत में यही कहूंगा कि ‘…दृश्य देख विध्वंश का धरती भय से थर्राती है,स्वयं काल की काया भी यह चित्र देख घबराती है।’

(आर्टिकल का उद्देश्य किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं है।)

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