संपादकीय

गांवो का भी हो समुचित विकास?

रमेश सर्राफ धमोरा
स्वतंत्र पत्रकार (झुंझुनू, राजस्थान)

हमारे देश में चारों तरफ शहरों के विकास की बात की जा रही है। सरकारी भी शहरों के विकास के लिये स्मार्ट सिटी परियोजना को लेकर बहुत गंभीरता से काम कर रही है। देश के नीति निर्धारकों का मानना है कि शहरों के विकास से ही देश का विकास हो पाएगा। इसी सोच के कारण तेजी से शहरीकरण बढ़ रहा है। रोजगार की तलाश में बड़ी संख्या में लोग शहरों की तरफ निरंतर पलायन करते जा रहे हैं। शहरी क्षेत्रों में आबादी का दबाव इतना अधिक हो गया है कि वहां पर रखने को भी जगह नहीं मिल रही है। लोग गंदे नालों के किनारे झुग्गी-झोपड़ियों में रहते हैं।
भारत गांवों का देश है। भारत में गांवों के विकास के बिना समग्र भारत का विकास संभव ही नहीं है। महात्मा गांधी हमेशा कहा करते थे कि भारत के वास्तविक विकास का तात्पर्य शहरी औद्योगिक केंद्रों का विकास नहीं बल्कि मुख्य रूप से गांवों का विकास ही है। हमारे देश की जनसंख्या का एक बडा हिस्सा आज भी ग्रामीण क्षेत्र में निवास करता है। देश की इस विशाल जनसंख्या को मूलभूत सुविधायें उपलब्ध करवाये बिना देश का समग्र विकास अधूरा है। इसीलिये ग्रामीण विकास ही राष्ट्रीय विकास का केंद्र बिंदु है।
सरकार चाहे केंद्र की हो या राज्य की सभी का ध्यान शहरों के इर्द-गिर्द ही उद्योग धंधे, कल-कारखाने स्थापित करने की तरफ रहता है। कल कारखानों से निकलने वाली धुंआ, गटर का गंदा पानी, वाहनों से होने वाले प्रदूषण की मार से देश के प्राय सभी शहर कराह रहें हैं। पर्यावरण विशेषज्ञों द्वारा बढ़ते प्रदूषण को लेकर लगातार चेतावनी जारी की जा रही है। उसके दुष्परिणामों से लोगों को अवगत करवाया जा रहा है। उसके उपरांत भी सरकारों का पूरा ध्यान शहरों में ऐसे कल कारखानों की स्थापना की और अधिक है। जिनके लगने से प्रदूषण में बढ़ोतरी होना तय माना जा रहा है। मगर फिर भी वास्तविकता को कोई समझना ही नहीं चाहता है।
शहरों के उलटे गांव में आज भी स्वच्छ पर्यावरण, हरा भरा वातावरण देखा जा सकता है। भारत में शहरों की बजाय ग्रामीण आबादी अधिक है। ग्रामीण क्षेत्र आज भी सरकारी उदासीनता के शिकार है। देश के आधे से अधिक गांव में तो अभी तक मूलभूत सुविधाएं भी उपलब्ध नहीं हो पाई है। गांव में मूलभूत सुविधाओं के अभाव में लोग शहरों की तरफ जाने को मजबूर होते हैं। इससे धीरे-धीरे गांव में पलायन की प्रवृत्ति बढ़ रही है। ऐसे में सरकार को चाहिए कि शहरों की तर्ज पर ही गांव का भी विकास करवाएं तथा गांव में भी उद्योग धंधे स्थापित करवाकर मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध करवाएं। ताकि गांव भी समृद्धि की राह पर चलने लगे।
यदि गांवों में छोटे कल कारखाने, उद्योग धंधे व ग्रामीण कुटीर उद्योग को सरकार की तरफ से बढ़ावा मिले तो गांवों की भी शहरों की तरह कायाकल्प हो सकता है। ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाले लोगों का जीवन भी बेहतर हो सकता है। गांव में रोजगार के साधन बढ़ने से लोगों का पलायन रुकेगा। स्थानीय स्तर पर रोजगार मिलने से ग्रामीण क्षेत्र के लोगों की आय बढ़ेगी। जिससे गांव में समृद्धि आएगी। देश के अधिकांश गांवो में पर्याप्त मात्रा में श्रम शक्ति उपलब्ध है। यदि उनको स्थानीय स्तर पर ही नियमित रोजगार मिल सके तो वो बेहतर परिणाम दे सकते हैं। शहरों में गंदे नालों के किनारे कच्चे झोपड़िया बनाकर रहने वाले श्रमिकों को यदि गांव के स्वच्छ वातावरण में रहकर काम के अवसर मिले तो वह अधिक मेहनत व लगन से काम करेगा।
सरकार को चाहिए कि ग्रामीण क्षेत्र में रोजगार उपलब्ध कराने के लिए विस्तृत कार्य योजना बनाये। शहरों की अपेक्षा ग्रामीण क्षेत्रों में उद्योग धंधों की स्थापना के लिए जमीन भी कई गुना कम कीमत पर मिल सकेगी। साथ ही स्थानीय स्तर पर श्रमिकों की उपलब्धता होने के चलते उद्योग धंधों के उत्पादन का लागत मूल्य भी कम रहेगा। सरकार को जब किसी उद्योगपति को कल कारखाना लगवाना होता है तो उसको सरकार ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की जमीनों का अधिग्रहण कर जमीन उपलब्ध करवाती है। कई बार ग्रामीणों की सहमति नहीं होने के उपरांत भी सरकार जोर जबरदस्ती कर लोगों की जमीन का अधिग्रहण कर लेती है। ऐसे में लोगों को अपनी जन्मभूमि छोड़कर दूसरी जगह भटकना पड़ता है।
सरकार अपनी नीति में थोड़ा परिवर्तन कर उद्योग धंधे लगाने वाली जगह पर रहने वाले किसानों को उस उद्योग धंधे में उनकी योग्यता अनुसार नियोजित करें। उनसे ली जाने वाली जमीन के बदले आसपास में उतनी ही जमीन उपलब्ध करवाएं। तो गांव की आबादी भी नहीं उजड़ेगी और उद्योग धंधों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन भी नहीं होंगे। उस क्षेत्र के लोग उस उद्योग समूह की नीतियों से सहमत होकर उनको और अधिक सहयोग देंगे।
पश्चिम बंगाल के नंदीग्राम में सरकार ने जबरदस्ती से किसानों की जमीन का अधिग्रहण कर टाटा समूह को दी थी। मगर किसानों ने सरकार व उद्योग समूह के खिलाफ इतना बड़ा आंदोलन चलाया कि अंततः टाटा समूह को अपना उद्योग वहां से अन्यत्र स्थानांतरित करना पड़ा। उसके चलते ही बंगाल की कम्युनिस्ट सरकार को भी सत्ता से हाथ धोना पड़ा था।
इस बात से कोई इनकार नहीं करता है कि देश के विकास के लिए उद्योग धंधों का होना भी बहुत जरूरी है। उद्योग धंधे लगने से देश में रोजगार के अवसर उपलब्ध होंगे। देश आत्मनिर्भरता होगा। मगर ग्रामीणों को रौंदकर सत्ता के बल पर उद्योगपतियों से उद्योग धंधे लगवाना भी तर्कसंगत नहीं कहा जा सकता है। सरकार को गांव में रहने वाले ग्रामीणों की बातों पर भी गौर कर उनकी वाजी मांगो को भी मानना चाहिए।
भारत के पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह कहते थे कि देश की समृद्धि का रास्ता गांवों के खेतों एवं खलिहानों से होकर गुजरता है। उनकी कही बात आज भी शत प्रतिशत सही है। गांव के विकास के बिना देश का विकास अधूरा है। जब तक सही मायने में गांव का समुचित विकास नहीं होगा तब तक देश का विकास अधूरा ही रहेगा। आज भी देश की बहुसंख्यक आबादी गांव में ही रहती है। देश की आत्मा गांवों में बसती है। कोई भी राष्ट्र जब तक समृद्धि नहीं हो सकता जब तक वहां का अंतिम सिरे पर बैठा व्यक्ति खुशहाल ना हो जाए। हमारे देश के गांवों में रहने वाले लोग आज भी सरकारी उपेक्षा के शिकार है। ग्रामीण क्षेत्र का व्यक्ति जब किसी बड़े पद पर पहुंचता है तो वह भी अपने गांव को भूल जाता है। उसके पास भी गांव के विकास कार्यों की सुध लेने का समय नहीं रहता है। हमें इस प्रवृत्ति को बदलना होगा तभी गांव का समुचित विकास हो पाएगा तभी देश समृद्ध बन पाएगा।
सरकार को भी गांवों के विकास को पूरी प्राथमिकता देकर विकास कार्य करवाने चाहिए। लॉकडाउन के दौरान हमने देखा था कि वर्षों से शहरों में रह रहे लोग भी अपनी जान बचाने के लिए अंततः अपने गांव में आकर ही शरण ली थी। शहर छोड़कर आने वाले लोगों में से बहुत से लोग तो गांव में ही रहकर अपना छोटा मोटा कार्य करने लगे हैं। यदि ऐसे लोगों को सरकारी स्तर पर सुविधाएं, संसाधन व सहायता मिले तो ऐसे बहुत से और लोग फिर से गांव की ओर लौट आएंगे। सरकार को स्मार्ट सिटी की तरह स्मार्ट गांव की भी योजना बना कर उस पर काम शुरू करवाना चाहिए। यदि ऐसा होगा तो आने वाले समय में उसके बहुत अच्छे नतीजे देखने को मिल सकेंगे।

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