संपादकीय

सजग रहें सतर्क रहें …फिर पोलियो अपने पैर न पसार पाए

सरकार के वृहद अभियानों एवं वैज्ञानिकों के अथक प्रयासों का ही परिणाम कि पोलियो जैसा रोग आज चिकित्सकों के नियंत्रण में है। जबकि तीसरे और चौथे दशक में हजारो बच्चे पोलियों के शिकार होकर रोजाना काल कवलित हो रहे थे। भारत सरकार सन् 2000 तक पोलियों को जड़ से खत्म करने के भागीरथी अभियान में लगी हुई थी। यह बेहद खुशी का विषय है कि इस पर गत कई वर्षों से सरकार ने पूर्णतः नियंत्रण पा लिया है। जाने माने वैज्ञानिक डॉ. सास्क सथा एस.आई. सोबिन के दिन रात की गई मेहनत का नतीजा है, कि आज भारत में ही नहीं बल्कि अन्य देशों में भी हजारों बच्चों को उक्त डॉक्टरों द्वारा इजाद की गई पोलियो वैक्सिन की बदौलत इस रोग से मुक्ति मिल गई है।
पोलियो के संबंध में एन. एन. हास्पिटल के पूर्व मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. अनिल तोमर ने वर्षों से पोलियो पर विशेष रूप से कार्य करने के साथ पोलियो पल्स कमेटी के चेयरमेन व भूतपूर्व अध्यक्ष भी हैं। उन्होंने पोलियों के संबंध में जानकारी देते हुए बताया कि दूषित हुए पानी को पीने से पोलियो का जन्म होता है, कई स्थानों पर गंदे पाइप का पानी साफ पानी के पाइप में मिलकर बहने लगता है, एवं उस पानी को पीने से पोलियो का वाईरस विशेषकर बच्चों में उत्पन्न हो जाता है। यदि कोई गर्भवती महिला इस तरह के गंदे पानी को पी लेती है, तो गर्भ में बच्चे को पोलियो होने की संभावना बढ़ जाती है।
पोलियो होने पर बच्चों को तेज बुखार रहता है, हाथ पाँव में दर्द – रहता है। धीरे धीरे हाथ पांव में ढीलापन होना शुरू हो जाता है, फिर धीरे धीरे अंग पोलियो ग्रस्त हो जाता है। पोलियो का असर तीन वर्ष तक की आयु के बच्चों पर ज्यादा होता है। उसके पश्चात कम होता जाता है। पहले यह हाल था कि विश्व के कुल पोलियो ग्रस्त रोगियों में से साठ प्रतिशत रोगियों की संख्या भारत में ही पाई जाती थी। इनमें से पचीस प्रतिशत तो केवल उत्तर प्रदेश में ही होते थे। दूषित जल के उपयोग के कारण गाजियाबाद, केला का सर्वाधिक प्रभावित था।(उत्तरप्रदेश के गाँवों में इनकी संख्या बहुत अधिक रहती थी ) कभी-कभी ऐसा भी होते देखा गया है कि छोटे बच्चों को पोलियो का खुराक देने के बाद भी उन्हें पोलियो हो जाता है।
इस महामारी का भी एक इतिहास है। जब वर्ष 1930, 1940 के दशक में दस हजार से अधिक बच्चे अमेरिका में पोलियो के शिकार हो गये, इतना ही नहीं अमेरिका के राष्ट्रपति को 1921 में 39 वर्ष की आयु में पोलियो ने अपना शिकार बनाया तो लोगों को पोलियो से छुटकारा दिलाने के लिये वैज्ञानिकों ने पोलियो वैक्सीन की खोज आरंभ की। सबसे पहेल 1908 में डॉ. कर्ट लैण्ट नेटर ने पोलियों को जन्म देने वाले वायरस की खोज की फिर 1948 में जीन लिन एडर्स ने भी पोलियो वायरस की पहचान की और उसे भ्रूण के मस्तिष्क में स्थापित कर यह सिद्ध कर दिया कि पोलियो एक तंत्रिका रोग नहीं है, वरन वायरस जन्य रोग है। और इसका वायरस छोटी आंत में पलता है। इसके बाद 1938 में डॉ सास्क ने पोलियो की वैक्सीन तैयार की। इस वैक्सीन का 151 लोगों पर सफल परीक्षण किया गया। 1954 को 18 लाख 29 हजार बच्चों को सास्क वैक्सीन का टीका लगाया गया। इस परीक्षण के आधार पर सास्क वैक्सीन को पचानवे प्रतिशत प्रभावी पाया गया। किंतु 1955 को खबर आई कि 6 बच्चे जिन्हें पोलियों का वैक्सीन दिया गया था, वे सभी पोलियो के शिकार हो गये है.। परिणामतः अधिसंख्य लोगों का इस वैक्सीन से विश्वास उठ गया।
डॉ. सैने ने इसके बाद इस पर अपना अनुसंधान जारी रखा। सैने ने पोलियो रोगी की मृत्यु के बाद परीक्षण से वह नतीजा निकाला कि पोलियो के वायरस रोगियों के मस्तिष्क तथा आंतों में आक्रमण करते हैं। इस परीक्षणों के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला गया कि यह वैक्सीन तभी प्रभावी हो सकती है, जब वायरस आँतों में पनपता रहे और मस्तिष्क इससे प्रभावित न हो। उन्होंने बाद में पोलियो वायरस की तीन किस्मों का पता लगाकर एक नई और संबंधित पोलियो वैक्सीन की खोज की। यही वैक्सीन विश्व के अनेक देशों में पोलियो उन्मूलन अभियान में प्रयोग मे लायी गई है, और अंततः आज विश्व में पोलियो उन्मूलन का सपना साकार हुआ है। भारत में भी यही वैक्सीन प्रयोग की जा रही है।
विश्व के अनेक देशों में पोलियों से निपटने के लिये पल्स पोलियो. अभियान चलाया गया, जिसके फलस्वरुप 109 देशों को पोलियो से निजात मिल गई है। भारत में भी पल्स पोलियो अभियान गत कई वर्षो से जारी है। पल्स पोलियो का तात्पर्य है कि एक ही समय में अधिक से अधिक बच्चों को दवा पिलाई जा सके। इसको सफल बनाने के लिये जगह – जगह तथा दूर दूर तक पल्स पोलियो केंद्र खोले गये। ताकि काफी दूर तक के बच्चों को एक ही तिथि पर दवाई पिलाई जा सके। 7 अप्रैल 1995 को विश्व स्वास्थ्य दिवस में पोलियो को जड़ से समाप्त करने का प्रण लिया गया था। अनेक संस्थायें, समाज सेवी संस्थायें एवं सरकार भी इस पोलियो उन्मूलन अभियान के प्रति सचेत एवं सक्रिय हैं। केन्द्र व राज्य सरकार ने सन् दो हजार के अंत तक मध्यप्रदेश को पोलियो मुक्त राज्य बनाने के उद्देश्य से पाँच वर्ष तक की आयु के सभी बच्चों को पोलियो की दवा पिलाने का सघन अभियान 24 अक्टुबर से 16 मार्च सन् 2000 तक चलाने का निर्णय लिया था। अभियान के तहत पोलियो की खुराक और एक साथ पिलाई जाने की व्यवस्था 2000 तक अलग-अलग तारीख मे की जाने की राज्यव्यापी प्रबंध किये गये। पूरे प्रदेश में पोलियो टीकाकरण के लिये 1998-99 में 66 हजार 353 पोलियो बूथ बनाये गये थे। जिन बच्चों का पोलियो से बचाव किया जाना था, उनकी संख्या 110 लाख से अधिक आंकी गई थी।
चूंकि पोलियो एक जल जनित रोग है तो इसके बचाव के लिए सबसे अच्छा उपाय है कि सदैव स्वच्छ पेयजल का प्रयोग करें। अच्छा होगा यदि पानी फिल्टर कर दिया जाये या उबालकर पीएं। नालियों की सुचारू रूप से सफाई होती रहनी चाहिये। जहाँ पर गंदे पानी एवं साफ पानी के पाइप साथ साथ न हों, यही विशेष ध्यान देने की जरूरत है।
राष्ट्रीय टीकाकरण सूची के अनुसार बच्चों को डेढ़ महीने का होने के पश्चात टीका और पोलियो की खुराक दे देना चाहिए। बच्चा बीमार है. उसे उल्टी दस्त और सूखा रोग आदि भी हो तो भी यह दिया जा सकता है। अगर बच्चे को दस्त व बुखार है तो पुलिया की खुराक पूरी तौर पर असर नहीं करती है तो बच्चे के बुखार दस्त ठीक होने के पश्चात पुनः फिर पोलियो की खुराक बच्चे को दिलाएं। पोलियो की और खुराक टीका लगने पर बच्चे को बुखार आ सकता है, जिसमे घबराने की बात नहीं है। बुखार उतारने के लिए पैरासिटामोल की टेबलेट उचित मात्रा में दिया जा सकता है। पोलियो किसी भी का मोहताज नहीं। किसी को भी कभी भी हो सकता है। अत: निश्चित तिथि पर अपने नन्हे बच्चों को साथ लेकर पोलियो अभियान में भाग लें और पोलियो को जड़ से खत्म करने में सहयोग प्रदान करें। तब ही मानव जाति हमेशा इस रोग से मुक्त रह सकेगी।

सुरेश सिंह बैस” शाश्वत”

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