संपादकीयसैर सपाटा

पहाड़ी श्रंखला से घिरा विकट दुर्ग रणथम्भौर

-डॉ. प्रभात कुमार सिंघल, कोटा
हम्मीर की आन-बान शान का प्रतीक रणथम्भोर दुर्ग राजस्थान का एक प्राचीन एवं प्रमुख गिरि दुर्ग है। बीहड़ वन और दुर्ग घाटियों के मध्य अवस्थित यह दुर्ग विशिष्ट सामरिक स्थिति और सुदृढ़ संरचना के कारण अजेय माना जाता था। दिल्ली से उसकी निकटता तथा मालवा और मेवाड़ के मध्य में स्थित होने के कारण रणथम्भोर दुर्ग पर निरन्तर आक्रमण होते रहें। सवाईमाधोपुर से लगभग 13 किमी. दूर रणथम्भोर अरावली पर्वतमाला की श्रंखलाओं से घिरा एक विकट दुर्ग है। रणथम्भोर दुर्ग एक ऊंचे गिरि शिखर पर बना है और उसकी स्थिति कुछ ऐसी विलक्षण है कि दुर्ग के समीप जाने पर ही यह दिखाई देता है। दुर्ग की विषम प्राकृतिक स्थिति एवं ऐतिहासिक महत्व की वजह से वर्ष 2013 ई. में इसे विश्व विरासत सूची में शामिल कर इसकी कीर्ति को विश्व में फैलाया।
रणथम्भौर का वास्तविक नाम रन्त रू पुर है अर्थात् ’रण की घाटी में स्थित नगर’। ’रण’ उस पहाड़ी का नाम है जो किले की पहाड़ी से कुछ नीचे है एवं थंभ (स्तम्भ) जिस पर यह किला बना है। इसी से इसका नाम रणथम्भौर हो गया। यह दुर्ग चतुर्दिक पहड़ियों से घिरा है जो इसकी नैसर्गिक प्राचीरों का काम करती हैं। दुर्ग की इसी दुर्गम भौगोलिक स्थिति को लक्ष्य कर अबुल फजल ने लिखा हैं-यह दुर्ग पहाड़ी प्रदेश के बीच में बख्तरबंद दुर्ग है। रणथंभोर दुर्ग में जाने के लिये पहाड़ी श्रंखलाओं के मध्य चारों और प्राकृतिक छटा से भरपूर एक सर्पिला और तंग रास्ता दुर्ग की और जाता है। मोर कुंड से पहाड़ी का चढ़ाव मार्ग पर पक्का परकोटा एवं मोर द्वार एवं इसके बाद बड़ा दरवाजा बना है। आगे बढ़ने पर मैदानी भाग में पद्मला तालाब, तीन तरफ पहाड़ियाँ एवं चैथी ओर नजर आता है रणथंभोर का विशाल दुर्ग। यहीं से होती है दुर्ग की चढ़ाई ओर करीब एक किमी. चढ़ाई पर दिखाई देता है तीसरा नवलखा द्वार और आगे पक्की सीढियां चढ़ कर तीन द्वारों से और गुजरना होता हैं। किले की मजबूत चार दिवारी करीब 9 किमी.है। प्राचीर में बड़ी-बड़ी विशाल बुर्जे, भैरव यंत्र, ढिकुलियाँ, मर्कटियंत्र लगे हुए हैं जिनसे शत्रु सेना पर पत्थर के गोले बरसाए जाते थे।दुर्ग के तीन ओर गहरी खाई हैं और इनके पीछे फिर ऊंची पहाड़ियाँ हैं, इन पर भी परकोटे बनाये गये हैं। इस प्रकार कई स्तरीय सुरक्षा व्यवस्था का अनूठा दुर्ग दूसरा नहीं मिलता।

दुर्ग में पांच बड़े तालाबों में जल का अटूट भण्डार हैं। पद्मिनी भवन, राजप्रासाद, जोहरे-भोहरे, हम्मीर के मस्तक वाला शिव मंदिर, हम्मीर कचहरी, बत्तीस खम्भों की छतरी प्राचीन स्मारक दुर्ग की शान हैं। दुर्ग में लक्ष्मीनाराण मंदिर (भग्न रूप में) जैन मंदिर, मुस्लिम संत की मस्जिद तथा समूचे देश में प्रसिद्ध त्रिनेत्र गणेश जी का मंदिर दुर्ग के प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं एवं कई उद्यान बनाये गये हैं। दुर्ग के निर्माण की तिथि तथा उसके निर्माताओं के बार में प्रामाणिक जानकारी का अभाव है। रणथम्भोर किले का निर्माण रणथंमनदेव ने करवाया था। उसके उत्तराधिकारियों ने कई निर्माण कार्य किले में करवाये। दुर्ग को सर्वाधिक गौरव मिला यहाँ के वीर और पराक्रमी शासक राव हम्मीर देव चैहान के अनुपम त्याग और बलिदान से। हम्मीर ने सुलतान अलाउद्दीन खिलजी के विद्रोही सेनापति मीर मुहम्मदशाह (महमांशाह) को अपनी यहाँ शरण प्रदान की जिसे दण्डित करने तथा अपनी साम्रज्यवादी महत्वाकांक्षा की पूर्ति हेतु अलाउद्दीन ने 1301 ई. में रणथम्भोर पर एक विशाल सैन्य दल के साथ आक्रमण किया। पहले उसने अपने सेनापति नुसरत खां को रणथम्भोर विजय के लिए भेजा लेकिन किले की घेराबन्दी करते समय हम्मीर के सैनिकों द्वारा दुर्ग से की गई पत्थर वर्षा से वह मारा गया। क्रुद्ध हो अलाउद्दीन स्वयं रणथम्भोर पर चढ़ आया तथा विशाल सेना के साथ दुर्ग को घेर लिया। पराक्रमी हम्मीर ने इस आक्रमण का जोरदार मुकाबला किया।
अलाउद्दीन के साथ आये इतिहासकार अमीर खुसरो युद्ध के घटनाक्रम का वर्णन करते हुए लिखता है कि सुल्तान ने किले के भीतर मार करने के लिए पाशेब (विशेष प्रकार के चबूतरे) तथा गरगच तैयार करवाये और मगरबी (ज्वलनशील पदार्थ फेंकने का यन्त्र) व अर्रादा (पत्थरों की वर्षा करने वाला यन्त्र) आदि की सहायता से आक्रमण किया। उधर हम्मीरदेव के सैनिकों ने दुर्ग के भीतर से अग्निबाण चलाये तथा मंजनीक व ढेकुली यन्त्रों द्वारा अलाउद्दीन के सैनिकों पर विशाल पत्थरों के गोले बरसाये। दुर्गस्थ जलाशयों से तेज बहाव के साथ पानी छोड़ा गया जिससे खिलजी सेना को भारी क्षति हुई। इस तरह रणथम्भोर का घेरा लगभग एक वर्ष तक चला। अन्ततः अलाउद्दीन ने छल और कूटनीति का आश्रय लिया तथा हम्मीर के दो मंत्रियों रतिपाल और रणमल को बूंदी का परगना इनायत करने का प्रलोभन देकर अपनी और मिला लिया। इस विश्वासघात के फलस्वरूप हम्मीर को पराजय का मुख देखना पड़ा। अन्ततः उसने केसरिया करने की ठानी। दुर्ग की ललनाओं ने जौहर का अनुष्ठान किया तथा हम्मीर अपने कुछ विश्वस्त सामन्तों तथा महमांशाह सहित दुर्ग से बाहर आ शत्रु सेना से युद्ध करता हुआ वीरगति को प्राप्त हुआ। जुलाई, 1301 में रणथम्भोर पर अलाउद्दीन का अधिकार हो गया। बाद में किला लंबे समय तक मुगलों के अधीन रहा। समय-समय पर दुर्ग पर गोवोन्द राज, वाहलन देव, प्रहलादन, वीरनारायण। वांगभट्ट, नाहर देव, महाराणा कुम्भा,शेरशाह सूरी, अल्लाउद्दीन खिलजी,राव सुरजन हाड़ा, और मुगलों के अलावा आमेर के राजाओं का नियंत्रण रहा।
दुर्ग की सबसे ज्यादा ख्याति हम्मीरदेव के समय मिली जिसने 19 वर्ष इस पर शासन किया। उसने 17 युद्धों में से 13 में विजय प्राप्त करी। राव हमीर देव की विक्रम संवत 1345 अर्थात 1288ई.का शिलालेख काफी महत्वपूर्ण है जिस से उसके समय की जानकारी मिलती है। हम्मीर के इस अदभुत त्याग और बलिदान से प्रेरित हो संस्कृत, प्राकृत, राजस्थानी एवं हिन्दी आदि सभी प्रमुख भाषाओं में कवियों ने उसे अपना चरित्रनायक बनाकर उसका यशोगान किया है। हम्मीररासो, हम्मीरहठ एवं हम्मीर महाकाव्य प्रमुख कृतियाँ हैं। रणथम्भोर अपने में शौर्य, त्याग और उत्सर्ग की एक गौरवशाली परम्परा संजोये हुए है। किले के अनेक प्राचीन स्मारकों का वैभव लुप्त हो रहा है।

दुर्ग राष्ट्रीय बाघ परियोजना के अंतर्गत है। दुर्ग की तलहटी में बाघों की क्रीड़ा स्थली के रूप में राष्ट्रीय रणथंभोर उद्यान वन्यजीवों एवं प्राकृतिक दृष्टि से विश्व के सैलानियो के आकर्षण का प्रमुख केंद्र है। रियासती काल में यह जयपुर के महाराजाओं की शिकारगाह थी। आजादी के बाद राज्य सरकार ने 7 नवम्बर 1955 को इसके 392.5 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल को अभयारण्य घोषित किया। बाघ परियोजना के लिए चयनित 9 बाघ रिजर्व क्षेत्रों में से रणथम्भौर भी एक है। इसे 1 नवम्बर 1980 को राणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया। उद्यान में जोगी महल पर्यटकों के लिए आकर्षण का केन्द्र है। इसके खुले बरामदे में बैठकर सामने बने पद्म तालाब में वन्यजीवों को विभिन्न गतिविधियां करते हुए देख मन अति प्रसन्न होता है। पद्म तालाब के अतिरिक्त राजबाग और मलिक तालाब के आस-पास भी सैकड़ों की संख्या में चीतल, सांभर, नीलगाय और जंगली सूअर भी घूमते हुए देखे जा सकते हैं। यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि यदि बाघ को नैसर्गिक वातावरण में देखना है तो रणथम्भौर से अच्छा कोई स्थान नहीं है। यहाँ 270 से अधिक प्रजाति के पक्षियों में ग्रेपेट्र्रिज, पेन्टेड पेेट्र्रिज, पेन्टेड स्टार्क, व्हाईट नेक्ड स्टार्क, ब्लैक स्टार्क, ग्रीन पिजन, क्रेस्टेड सरपेन्ट ईगल, कुएल, स्पूनबिल, तोते, उल्लू, बाज आदि पाए जाते हैं। रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान में विभिन्न पानी के स्त्रोत, नाले, तालाब, झीलें, एनीकट एवं कुएं आदि हैं। रणथम्भौर बाघ परियोजना में विश्व बैंक एवं वैश्विक पर्यावरण सुविधा की सहायता से वर्ष 96-97 से इण्डिया ईको डवलपमेंट प्रोजेक्ट चलाया गया। इस परियोजना का मुख्य उद्देश्य स्थानीय लोगों की सहभागिता से उद्यान पर लोगों का दबाव कम करके जैव विविधता का संरक्षण करना है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *