संपादकीयसैर सपाटा

चंदन, हाथीदांत और काष्ठ कलाकृतियों का दुर्लभ संग्रह अपने आँचल में समेट है नाहटा संग्रहालय

-डॉ. प्रभात कुमार सिंघल, कोटा
चंदन, हाथीदांत और काष्ठ कलाकृतियों का दुर्लभ संग्रह अपने आँचल में समेटे नाहटा संग्रहालय राजस्थान के चूरू जिले के सरदार शहर के मध्य में स्थित घण्टाघर के समीप स्थित नाहटा हवेली में स्थापित है। इस संग्राहलय में लगभग एक हजार कलाकृतियां एवं ऐतिहासिक सामग्री संग्रहित की गई हैं।
काष्ठकला की सूक्ष्म कृतियों में भारत का एक मानचित्र भी हैं जिसमें देश के दर्शनीय स्थलों को दर्शाया गया है। लकड़ी की घड़ी में ताज महल, करणी माता का मंदिर, लकड़ी से ही बनी तरबूज की फांक में पूर्व राष्ट्रपति डाॅ. राधाकृष्णन की सवारी, लकड़ी से बने विशालकाय कद्दू में महाराणा प्रताप और चित्तौड़ का विजय स्तम्भ, तलवार, आभूषण आदि नाना प्रकार की कलाकृतियां इस संग्रहालय में रखी हुई हैं। ऊंट पर सवार राजस्थानी दम्पति, तलवार में शिवाजी, महाराणा प्रताप, पृथ्वीराज चौहान, राजस्थानी शाक-सब्जी और भोजन, हवेलियों की बनावट, राजस्थान की संगीत परम्परा, ऊंट पर बीकानेर के पूर्व महाराजा गंगासिंहजी की सवारी का दृश्य आदि अनेकानेक कलाकृतियों से यह संग्रहालय सजा-संवरा है।
संग्रहालय, मालचन्द जांगिड़ और उसके परिवार के सदस्यों द्वारा बनाई गई कलाकृतियों और हाथी दांत कला कृतियों से समूद्ध है। चूरू शहर का मालचन्द जांगिड़ का परिवार चन्दन की लकड़ी और हाथी दांत पर बारीक कारीगरी के लिए विश्वविख्यात है। इस परिवार में स्व. मालचन्द जांगिड़ ने लगभग 80 वर्ष पूर्व चन्दन की लकड़ी पर नक्काशी का कार्य अपने सधे हुये हाथों से शुरू किया था। उनकी प्रथम कलाकृति चन्दन की लकड़ी का कलात्मक बादाम आज सरदार शहर के संग्रहालय की शोभा बढ़ा रहा है। इस परिवार की कलाकृतियों की उत्कृष्टता का अन्दाज इस बात से लगाया जा सकता है कि स्व. मालचन्द जांगिड़ उनके बेटे और पोते को राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कृत किया जा चुका है।
संग्रहालय में बीकानेर के शासकों-गंगासिंह, सार्दूलसिंह और कर्णसिंह के मुंह बोलते चित्र प्रदर्शित किये गये हैं। स्व. शुभकरण नाहटा के परिजनों की तस्वीरें भी लगी हुई हैं। रानी विक्टोरिया, महात्मा गांधी, नेहरू आदि के भी आकर्षक चित्र हैं। शारीरिक आकृति को नाना रूपों में दिखाने वाले बेल्जियम के शीशे, विदेश से लाये हुये ताम्बे के कलश, चीन की कलात्मक पाॅटरी, राज प्रासादों से लाई हुई प्राचीन कुर्सियां, अखरोट की लकड़ी से बनी कलात्मक पाॅटरी, राज प्रासादों से लाई हुई प्राचीन कुर्सियां, अखरोट की लकड़ी से बनी कलात्मक गोलाकार मेज भी संग्रहालय की शोभा बढ़ाते हैं। शेर की एक मुखाकृति दर्शकों को अपनी ओर आकर्षित करती है। यहाँ जैन संस्कृति और जैन तीर्थंकारों की झांकी भी अष्ट धातु के चित्रों के माध्यम से प्रदर्शित की गई है।
चुरू स्थित यह संग्रहालय पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है। आप जान कभी सरदारशहर जाएं तो इस नायब संग्रहालय को भी अपनी सूची में शामिल करना नहीं भूले।

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