संपादकीय

हर आम में कुछ खास है

-भावना अरोड़ा ‘मिलन’
कलकाजी एडुकेशनिस्ट, लेखिका एवं मोटिवेशनल स्पीकर

आपको आम शब्द पढ़कर कहीं ये तो नहीं लग रहा कि गर्मियों में आने वाला आम फल, फलों का राजा आम, वैसे आम फल भी राजा तभी है जब वह सभी के मुँह का स्वाद बना हुआ है। और जो चीज स्वादिष्ट होती है वो दिल को अच्छी लगती है तभी स्वादिष्ट होती है। किसी भी वेरायटी में चले जाइए- लंगड़ा, चोसा, तोतापरी, दशहरी, सिंदूरी आदि सभी रूपों में आम राजा ही है।
जरा स्वयं के जीवन से जोड़िए इस आम फल को और देखिए कि आप भी आम हैं, पर राजा भी हैं आप। कही ना मैंने सोलह आने खरी बात ! सबसे श्रेष्ठ है आपका आम होना, क्योंकि आप आम बने तभी तो कभी वोटर के रूप में, कभी चाय वाले के रूप में, कभी धोबी के रूप में, कभी दूधवाले के रूप में, कभी मोची के रूप में, कभी चपरासी के रूप में कभी बच्चे की आया के रूप में, कभी मेड के रूप में, कभी डिलीवरी बॉय या गर्ल ले रूप में, और ना जाने कितने अनगिनत छोटे औदों पर होने के बावजूद भी आपके खास गुण ऐसे हैं जिन्हें कोई चुरा नहीं सकता। आपका आम होकर भी खास होना कितना अनुपम है।
बड़े औदों पर पर भी कई आम घने लगे हैं। मेरा मतलब है, शिक्षक, प्रोफेसर, लेखक, कवि, फैक्टरियों के मालिक, डॉक्टर, इंजीनियर, शॉपकीपर, परचूने वाले, केमिस्ट वाले, नेता वर्ग, और न जाने कितने कलाकार उफ्फ कितनों के नाम गिनाऊँ ! एक घर परिवार में घरेलू महिला को ही देख लीजिए पढ़ी-लिखी हो, अनपढ़ हो पर अपने घर के काम-काज को बखूबी करती हैं और उसमें किसी की दखल अंदाजी उन्हें पसंद नहीं। बड़े तरीके से घर को साफ-सुथरा रखते हुए, खान-पान का खयाल रखते हुए सब पर नजर रखती हैं अच्छे से और उनके चंडी- काली रूप में हड़काने से तो पूरी दुनिया के पति घबराते हैं। बाकायदा स्नेह जताते हुए सबका भला करते हुए घर-जीवन और रिश्तों की बागडोर बखूबी संभालती हैं, तो हुई ना आम होकर भी खास।
प्रथम पुरुष मनु और श्रद्धा का धरा पर आगमन। उनका मिलना इस जगत को चौतन्य करना, यहीं से तो शुरुआत हुई एक आम के खास बनने की। जिन्हें प्रकृति ने अपनी गोद में आधार दिया, संसाधन प्रदान किए जीवन यापन के। सृष्टि का नियम ही यही कहता है कि भेदभाव के बिना सभी तो एक-दूसरे के पूरक हैं। पारिस्थितक तंत्र का पालन जब प्रकृति कर रही है और आम अपने सभी रूपों में राजा है तब मनुष्य को क्या मुसीबत है अपनी खासियत को ऊपर रखने में और सबके चेहरे का नूर बनने में ! जैसे आम अपने हर रूप में मिठास घोल रहा है तो हमें भी तो आपस में छोटे-बड़े, छुआछूत, ऊँच-नीच और बहुत खास मुद्दा धर्म को लेकर वैचारिक खींचतान। जिसे हमें छोड़ना होगा, सकारात्मक रूप में खास बने रहना होगा। एक घर-परिवार में रहने वाला आम इंसान अपने सुंदर नैतिक विचारों से खास बनता है और पूरे घर को आगे बढ़ाता है, खास बनाता है। ऐसे घरों से निकले हुए बच्चे । समाज की किसी भी सीखने-सिखाने की कार्यशाला में जब प्रवेश करते हैं तब वह बालक के रूप में हों, शिक्षक के रूप में हों या किसी भी रूप में हों वे एक सुंदर समाज व राष्ट्र का सृजन करते हैं।
समसामयिक दौर में हर आम को अपने भीतर छिपी यही खास बात पहचाननी होगी। हर क्षेत्र में जो चाहें हम कर सकते हैं जीवन का आनंद लेते हुए। अपनी सहूलियत के हिसाब से काम कीजिए, मेहनत कीजिए,जीविका निर्वाह के साथ अपने हुनर को जगाए रखिए किंतु मर्यादित रहना जरूरी है । कुछ ज्यादा पाने की चाह कभी-कभी हमारी खास पहचान को गुम कर देती है। अधिकतम का जुनून, और कमतर का आक्रोश ये दोनों ही तत्व हमारा सुख-चौन, नींद ले जाते हैं और दे जाते हैं स्ट्रेस का हाई लेवल। जिंदगी को काटिए मत जीना सीखिए। भरे पड़े हैं उदाहरण किताबों में आम इंसान के खास बनने के। सोचिए जरूर कि मेरे इस आलेख के लेखन का मकसद क्या है ! भाई समझिए, आम फल तो पेड़ से राजा होते हुए भी उतरा, तोड़ा गया, गिरा भी ! पर तब भी अपने कच्चे-पक्के दोनों ही रूपों में कभी चटनी, कभी अचार, कभी पना, कभी जेम- मुरब्बा, और कभी काटकर-चूसकर निचौड़ा गया द्य इतना स्वाद दूसरों को देने में त्याग-समर्पण-दर्द सब सहा है आम ने। आप भी आम हैं पर बहुत खास वाले।

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