संपादकीय

सत्ता के लिए शक्ति प्रदर्शन में जुटी वसुंधरा

-रमेश सर्राफ धमोरा
मान्यता प्राप्त स्वतंत्र पत्रकार (झुंझुनू, राजस्थान)

राजस्थान विधानसभा के चुनाव में भाजपा को 115 सीटों का पूर्ण बहुमत मिलने के बाद वहां अब मुख्यमंत्री पद को लेकर जोर आजमाईस शुरू हो गई है। राजस्थान का अगला मुख्यमंत्री कौन होगा इसको लेकर दिल्ली में बैठकों का दौर जारी है। वही पार्टी नेता मुख्यमंत्री पद के लिए अपनी-अपनी लाबिंग में जुटे हुए हैं। मुख्यमंत्री कौन बनेगा इसका फैसला तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही करेंगे। लेकिन राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया भी मुख्यमंत्री पद की रेस में अपनी दावेदारी मजबूती से जता रही है।
चुनावी नतीजे घोषित होने के बाद वसुंधरा राजे ना तो स्वयं दिल्ली गई ना ही उन्हें दिल्ली से किसी बड़े नेता ने बुलाकर चर्चा की। वसुंधरा राजे सिंधिया जयपुर स्थित अपने आवास पर भाजपा के नवनिर्वाचित विधायकों से मिलकर उनका समर्थन जुटा रही है। चर्चा है कि वसुंधरा राजे से अब तक करीबन 30 विधायकों की चर्चा मुलाकात हो चुकी है। वैर से विधायक बने बहादुर सिंह कोली व नसीराबाद से चुनाव जीते रामस्वरूप लांबा ने खुलकर वसुंधरा राज्य को मुख्यमंत्री बनाने की मांग की है। मालवीय नगर से विधायक कालीचरण सर्राफ भी वसुंधरा की पैरवी करते नजर आ रहे हैं।
डीडवाना से निर्दलीय चुनाव जीते यूनुस खान जिनका भाजपा ने इस बार टिकट काट दिया था। उसके बाद भी वह निर्दलीय चुनाव जीतने में सफल रहे। वह वसुंधरा राजे को मुख्यमंत्री बनाने के लिए पूरी लाबिंग में लगे हुए हैं। लोगों का कहना है कि वसुंधरा समर्थक होने के चलते ही यूनुस खान का टिकट काटा गया था और अब वह फिर से वसुंधरा राज्य को मुख्यमंत्री बनवाकर अपनी धमक दिखाना चाहते हैं। यूनुस खान वसुंधरा राजे की दोनों बार की सरकार में कैबिनेट मंत्री रह चुके हैं।
2013 से 18 के वसुंधरा राजे के मुख्यमंत्री के कार्यकाल में यूनुस खान, कालीचरण सर्राफ, अशोक परनामी, राजपाल सिंह शेखावत, प्रताप सिंह सिंघवी जैसे लोगों की एक चौकड़ी बनी हुई थी। जो वसुंधरा राजे को हर वक्त घेरे रहती थी। इसी चौकड़ी के कारण वसुंधरा राजे आमजन से कट गई थी। स्थिति यहां तक आ गई थी कि उस दौरान कई वरिष्ठ विधायकों की लगातार प्रयास के उपरांत भी महीनों तक वसुंधरा राजे से मुलाकात नहीं हो पाती थी। वसुंधरा राजे के सिपाहसालारों के मनमाने फैसलों के चलते ही 2018 में भाजपा को करारी हार झेलनी पड़ी थी। उसके बाद से ही वसुंधरा राजे भाजपा में साइड लाइन कर दी गई थी।
अब वसुंधरा राजे का पूरा प्रयास है कि कैसे भी करके विधायकों का समर्थन प्राप्त कर तीसरी बार प्रदेश का मुख्यमंत्री बना जाए। यदि इस बार वसुंधरा राजे मुख्यमंत्री बनने से चूक जाती है तो फिर उन्हें राजनीति के बियाबान में जाने से कोई नहीं रोक सकेगा। जयपुर में वसुंधरा राजे द्वारा भाजपा विधायकों से फेस टू फेस बातचीत करने के घटनाक्रम पर भाजपा आलाकमान पूरी नजर रखे हुए हैं। मुख्यमंत्री पद की रेस में शामिल अन्य कई नेताओं का मानना है कि पार्टी के विधायक पार्टी के किसी भी नेता से मिलने के लिए स्वतंत्र हैं। लेकिन मुख्यमंत्री वही बनेगा जिनका नाम आलाकमान द्वारा घोषित किया जाएगा।
राजस्थान में मुख्यमंत्री पद को लेकर वसुंधरा राजे के अलावा विद्याधर नगर सीट पर सबसे अधिक वोटो से जीतने वाली राजसमंद की सांसद दीया कुमारी, झोटवाड़ा से विधायक बने जयपुर ग्रामीण के सांसद राज्यवर्धन सिंह राठौड़, केंद्र सरकार में जल संसाधन मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सीपी जोशी, राज्यसभा सांसद व सवाई माधोपुर से विधायक बने डॉक्टर किरोडी लाल मीणा, केंद्र सरकार में कानून राज्य मंत्री अर्जुन राम मेघवाल, केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव, भूपेंद्र यादव, संघ से जुड़े पूर्व संगठन महासचिव प्रकाश चंद्र अग्रवाल, ओम माथुर, तिजारा से नवनिर्वाचित विधायक व अलवर के सांसद बाबा बालक नाथ सहित करीबन एक दर्जन नेताओं के नाम चर्चा में है।
भाजपा में यह तो तय है कि मुख्यमंत्री वही बनेगा जिसका नाम दिल्ली में बैठ बड़े नेता तय करेंगे। मगर मुख्यमंत्री पद के लिए सबसे सशक्त दावेदार बनकर उभरी वसुंधरा राजे सिंधिया को भी हल्के में नहीं लिया जा सकता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस बात का अच्छे से पता है कि राजस्थान भाजपा में आज भी वसुंधरा राजे से बड़ा कोई लोकप्रिय चेहरा नहीं है। अगले पांच महीनो के बाद लोकसभा चुनाव होने वाले हैं। जिसको प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया जाएगा उनके कंधों पर लोकसभा चुनाव जीतवाने की जिम्मेदारी भी होगी। 2014 व 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा प्रदेश की सभी 25 सीटों पर जीतती आ रही है। ऐसे में मुख्यमंत्री पद के चयन पर लोकसभा चुनाव की छाप भी देखी जाएगी।
हालांकि भाजपा को पर्याप्त बहुमत मिलने के कारण फिलहाल तो मुख्यमंत्री पद के लिये जिसका भी नाम तय किया जाएगा उसे सभी विधायक स्वीकार कर लेंगे। लेकिन देर सवेर पार्टी के अंदर वसुंधरा राजे के रूप में एक चिंगारी धधकती रहेगी। जिसे जब भी हवा मिलेगी तब उसे शोला बनते देर नहीं लगेगी। विधानसभा चुनाव में वसुंधरा राजे के काफी समर्थक चुनाव जीते हैं। चुनावों के दौरान उन्होंने करीबन 40 से अधिक विधानसभा क्षेत्र में प्रचार किया था। जिनमें से बड़ी संख्या में विधायक जीत कर आए हैं।
हालांकि पार्टी आलाकमान ने वसुंधरा के समय चर्चित चौकड़ी में शामिल रहे यूनुस खान, राजपाल सिंह शेखावत, अशोक परनामी, कैलाश मेघवाल जैसे बड़े नेताओं का टिकट काटकर उन्हें पार्टी की मुख्य धारा से अलग-थलग कर दिया है। वहीँ नरपत सिंह राजवी चित्तौड़गढ़ सीट पर अपनी जमानत जब्त करवाकर प्रभावहीन बन चुके है। मगर यही सब लोग आज भी वसुंधरा राज्य के खास सलाहाकार बने हुए हैं तथा उन्ही की सलाह पर वसुंधरा राजे राजनीति कर रही है।
अगले कुछ दिनों में राजस्थान में भाजपा विधायक दल के नेता का चुनाव हो जाएगा। इसके बाद ही पता चलेगा कि वसुंधरा राजे नेता बनती है या अन्य किसी नेता को मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी दी जाती है। भाजपा आलाकमान वसुंधरा राजे को किस तरह शांत रख पायेगा इसका पता तो आने वाले कुछ दिनों में ही चल पाएगा। बहरहाल वसुंधरा राजे आज भी मुख्यमंत्री पद की रेस में सबसे आगे नजर आ रही है। यदि वक्त ने उनका साथ दिया तो उनका मुख्यमंत्री बनना तय लग रहा है। क्योंकि प्रदेश की राजनीति में जितनी स्वीकार्यता वसुंधरा राजे की है उतनी भाजपा के अन्य किसी भी नेता की नहीं है। आज मुख्यमंत्री कि दौड़ में शामिल अधिकांश नेताओं को कभी ना कभी वसुंधरा राजे ने ही राजनीति में आगे बढाया था। वैसे राजनीति को सम्भावनावों का खेल कहा जाता है। यहां एन वक़्त पर कब क्या हो जाये किसी को पता नहीं रहता है। चेला चीनी बन जाता है और गुरु गुड़ ही रह जाता है।

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