शिक्षा

सफलता के मान्यों को समझना है जरूरी

– सक्सेस गुरु ए.के. मिश्रा
निदेशक, चाणक्य आईएएस एकेडमी
किसी ने सच कहा है कि असफलता के बीच से ही सफलता का रास्ता निकलता है। यह अलग बात है कि हम असफलता के बाद ही इतना परेशान हो जाते हैं कि अगली बार कुछ भी पाने की कोशिश नहीं करते हैं, जिसके कारण हमारी सफलता का दौर शुरू होने से पहले ही बाधित हो जाता है। खास बात तो यह है कि इसी भीड़ से कुछ लोग अपने आपको हतोत्साहित नहीं करते बल्कि असफलता के बीच से ही सफलता के नए-नए आयाम ढूंढ लेते हैं। जो इस आयाम के सहार लेकर कुछ नया करने का प्रयास करते रहते हैं वे निसंदेह एक दिन कुछ खास कर जाते हैं जिसके कारण उनकी पहचान देश में ही नहीं बल्कि विदेश में भी नहीं, इतिहास के पन्नों में सुनहरे अक्षरों में सदा के लिए लिख दिए जाते हैं। हम यहां आगे बढने से पहले बल्ब के आविष्कारक थामस एडिसन की एक छोटी सी घटना पर प्रकाश डालना चाहूंगा। गौर करने की बात तो यह है कि एक बार जब थामस ने बल्ब का आविष्कार किया तो लोंगों ने उनसे प्रश्र किया कि-आप का प्रयोग करीब दो हजार बार फेल होने के बाद आप को अब जाकर सफलता मिली है. इसके जवाब में एडिसन ने कहा कि आपकी सोच गलत है क्योंकि मैं मेरा प्रयोग दो हजार बार फेल नहीं हुआ, बल्कि बल्ब का आविष्कार का प्रयोग दो हजार प्रयोग के बाद पूरा हुआ, इस वाक्य से बहुत ही सकारात्मक सोच की अनुभूति होती है। अगर हमारे अंदर इस तरह की सोच होगी तो हमारे बीच से हजारों की संख्या में थामस एडिसन और न्यूटन जैसे सकारात्मक और सफल व्यक्तियों का आगाज होता रहेगा। सफल होना हर किसी के जीवन का लक्ष्य होता है. सभी लोग सफल होना चाहते हैं और उसके लिए कोशिश भी करते हैं, जिसके लिए हम अपनी लाइफ का अच्छा खासा समय उसे सजाने में लगा देते हैं। यह अलग बात है कि हमारी सफलता का अनुपात कुछ समय ज्यादा तो कुछ समय कम होता है। कुछ लोगों को सफलता ज्यादा मिलती है तो कुछ लोगों को सफलता देर से मिलती है, इसके पीछे सभी के विचार भी अलग होते हैं, इसके लिए सबके विचार भी अलग-अलग होते हैं।
सक्सेस मंत्र –
हमेशा लक्ष्य ज्यादा से ज्यादा तय करें, सबसे बड़ी बात तो यह है कि अगर हम सौ प्रतिशत सफलता का लक्ष्य बनाएंगे तो कुछ हद तक तो सफलता जरूर मिलेगी। अगर हमें पूरी सफलता नहीं मिलेगी तो भी हम कुछ हद तक तो सफलता पा ही जाएंगे।
सफलता के लिए जरूर है कि हमारे अंदर आत्मविश्वास के साथ आत्मज्ञान और संयम भी हो।
हमेशा सकारात्मक सोच रखे और नकारात्मक सोच को दरकिनार कर दें।
हमें हमेशा अपने लक्ष्य को याद रखना चाहिए. लक्ष्य के अनुसार ही काम करना चाहिए।
जहां तक संभव हो अपने आपको भ्रांतियों से बचाकर ही रखें और अपने को समय के अनुसार ही ढ़ालें।
सफलता की सभी कहानियां उसके असफलता से ही निकलती हैं।
आज में जीने वाला व्यक्ति सदा, खुशहाल भविष्य का भागीदारी होता है। यहां हमारा यह बिल्कुल भी नहीं कहना है कि आज को आप पूरी तरह ऐश में बीता दें, यानी बर्बाद कर दें तो आप का भविष्य उज्ज्वल है, यहां आज में जीने का तात्पर्य बहुत ही सामान्य है कि आप आज में जीए और भविष्य के लिए तैयारियां करें, उदाहरण के तौर पर अगर हम परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं तो हमें वर्तमान में जी कर यानी पूरी तरह से अटेंटिव होकर अपनी पढ़ाई करनी चाहिए। इस दौरान उसे न तो नौकरी के बारे में सोचना चाहिए और न ही उसे परीक्षा के परिणाम के बारे में सोचना चाहिए। अगर वह स्टूडेंट, विभिन्न तरह के परिणामों यानी सवालों के घेरे में पड़ जाएगा तो वह वर्तमान दौर की जरुरत पढ़ाई नहीं कर पाएगा, फिर न तो परीक्षा का रिजल्ट आएगा और नही अच्छी नौकरी की उम्मीद की जा सकती है।
हमे कभी भी शॉर्ट कट फार्मूला कभी भी नहीं अपनाना चाहिए। गौर करने की बात तो यह है कि शॉटकट हमेशा छोटा होता है और वह असफलता को आमंत्रित करता है। अगर गलती से सफलता मिल भी जाती है तो वह ज्यादा दिनों तक नहीं टिकती है क्योंकि वह भी शॉट कट से निकलती है तो वह भी शॉट होती है।
हमे जिंदगी में फूल-प्रूफ प्लान बनाना चाहिए ताकि सफलता में कोई भी संदेह न रहे।
सबसे अहम और जरूरी बात यह है कि हर किसी को अपने अंदर आत्मविश्वास और भरोसा जरूर रखना चाहिए. क्योंकि आत्मविश्वास होने पर बड़ी से बड़ी चुनौतियां बड़े ही आसानी से प्राप्त की जा सकती है।
सफलता का एक अन्य जरूरी सूत्र है कि हम अपने आपको आत्मसंतुलित रखें यानी कि अपने को नियमों के अनुसार बांधकर चले, जिससे सफलता जरूर मिलती है।
अपने आपको सदा इधर-उधर की बातों से दूर रखें जहां तक संभव हो जितना जरूरी हो वहीं तक लोगों से बात करे. लोगों को सदा इंटरटेन करने के बारे में न सोचे। अगर आपको लगे कि इसती संगति आपको परेशान यानी असफलता की तरफ ले जाती है तो आपको इसका साथ छोडने में देरी नही करनी चाहिए, इसी संदर्भ में किसी जानकार का वक्तव्य हम व्यक्त करना चाहेंगे कि कुसंगति से अच्छा है कि हम बिना संगति के रहें।
गौर करने की बात तो यह है कि सफलता से सदा आत्मसंतुष्टि होती है जिसका स्वाद तो बस वही समझ सकता है कि जिसने सच्चे अर्थों में सफलता प्राप्त की हो यानी जिसने अपनी लगन और मेहनत से तैयारी की हो और उसे उसी अनुपात में सफलता मिली हो. सफलता के बाद हमें नेम, फेम के साथ एक सुकून मिलता है जो बड़ा ही आरामदायक और आनंददायक होता है, लेकिन इन सब के बावजूद व्यक्ति को कभी यह नहीं भूलना चाहिए कि उसकी शुरूआत कहा से हुई थी। चूंकि कई बार व्यक्ति यह भूल जाता है कि उसने कहा से शुरू किया था और अपनी सफलता में अंधा हो जाता है, जिसके कारण वे अपने लक्ष्य से भटक जाता है और एक अंधकामय रास्ते की ओर बढ़ता चला जाता है। जिस कारण उसकी हालत एक ऐसे नव्ये की तरह हो जाती है जो दो नाव में सवार तो है लेकिन उसे जाना कहा है उसके बारे में पता ही नहीं है।
व्यक्ति को समय के साथ और परिवर्तन के अनुकूल स्वंय को ढालते हुए चलना चाहिए और अपनी कामयाबी का जश्र अवश्य मनाएं लेकिन किसी को छोटा दिखाते हुए नहीं बल्कि उसको अपने साथ लेकर. सफल व्यक्ति असली मान्यें में वहीं होता है जो समय और लोगों को अपने साथ लेकर चलता है वरना एक आता है दूसरा चला जाता है, उसे कोई याद नहीं रखता है। याद वही रहता है जो सबके सामने एक मिसाल बनता है, जिसके जाने के बाद भी लोग उसको याद रखते है और उसकी मिसालें देते है। असल मान्यें में यही सफलता मानी जाती है।

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