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गुड बाय : दो पीढ़ियों के बीच विचारों के टकराव और इमोशन की पारिवारिक कहानी

फिल्म का नाम : गुड बाय
फिल्म के कलाकार : अमिताभ बच्चन, रश्मिका मंदाना, नीना गुप्ता, आशीष विद्यार्थी, पावेल गुलाटी और सुनील ग्रोवर आदि।
फिल्म के निर्देशक : विकास बहल
रेटिंग : 2.5/5

निर्देशक विकास बहल के निर्देशन में बनी फिल्म ‘‘गुड बाय’’ एक पारिवारिक फिल्म है। जहां इमोशन है, नोंक-झोंक है, नई पीढ़ी व पुरानी पीढ़ी के बीच विचारों के बीच तकरार है और रिश्तों का ताना-बाना है। फिल्म की कहानी विकास बहल ने ही लिखी है।

फिल्म की कहानी :

कहानी शुरू होती है तारा भल्ला (रश्मिका मंदाना) दोस्तों के साथ अपने केस जीतने का जश्न मना रही होती है, उसी वक्त उसे एक कॉल आता है। अपने पिता (अमिताभ बच्चन) के बार-बार आते हुए कॉल को देखकर वो नजरअंदाज कर देती है, फोन नहीं उठाती और दोस्तों के साथ जश्न में मशरूफ रहती है। अगले दिन की सुबह, जो खबर तारा तक सबसे पहले पहुंचती है, वो ये कि उसकी मां गायत्री भल्ला(नीना गुप्ता) की असामयिक मौत हो जाती है। इसके बाद गायत्री भल्ला के अंतिम संस्कार प्रक्रियाएं चलती रहती है और बीच-बीच में कहानी फ्लैशबैक में भी चलती रहती है। अंतिम संस्कार की रस्मों को लेकर पुरानी पीढ़ी और नई पीढ़ी के बीच विचारों का टकराव भी होता रहता है।……..पूरी कहानी डिटेल में जानने के लिए आपको फिल्म देखनी पड़ेगी।

कालाकारों की अदाकारी :

नीना गुप्ता एक मंझी हुई अदाकारा हैं, फिल्म के शुरूआत में ही उनकी मृत्यु दिखाया जाता है लेकिन फ्लैशबैक के दृश्यों में उनको बार-बार दिखाया जाता है, कम दृश्यों में भी वो स्क्रीन पर छा जाती हैं। अमिताभ बच्चन तो हमेशा से ही एक अच्छे कलाकार माने जाते है, कैमरे के सामने आते ही वो किरदार में खो जाते हैं, उनका एनर्जी लेवल गजब का दिखता है। गम और अकेलेपन को जिस तरह से उनके किरदार द्वारा दिखाया गया है, वो काबिले तारीफ है। पॉपुलर फिल्म पुष्पा की अभिनेत्री रश्मिका मंदाना की बॉलीवुड में यह डेब्यू फिल्म है। बिग बी के साथ रश्मिका कुछ दृश्य काफी अच्छे हैं। पावेल गुलाटी, आशीष विद्यार्थी और एली अवराम अपने किरदार अच्छे हैं। पंडित के किरदार में सुनील ग्रोवर की एक्टिंग काफी अच्छी लगी, उनके किरदार के ज़रिए कहानी को एंटरटेंनिंग बनाने की कोशिश की गई है।

फिल्म का पहले भाग की कहानी थोड़ी स्लो है, कहानी को काफी इमोशनल बनाया गया है जिसमें अपनी मां को खो देने के इमोशन को दिखाया गया है लेकिन दर्शकों पर इस इमोशन का बहुत गहरा प्रभाव नहीं दिखाई पड़ता। बीच-बीच में फिल्म में कुछ हलके-फुल्के कॉमेडी सीन्स भी डाले गए हैं जो आपके चेहरे पर कुछ पल के लिए खुशी ज़रूर लाते हैं।

फिल्म के ज़रिय आज के समाज पर कटाक्ष भी किया गया है...फिल्म में एक दृश्य है कि जब शव को जलाने के लिए शमशान लेकर जाते हैं तो वहां अभी समय होता है तब वहां मौजूद लोग एक दूसरे से बात करने के बजाये अपने मोबाइल फोन में लगे रहते हैं....आज का समय भी वैसा ही है चाहे सुख हो या दुख किसी को किसी से कोई मतलब नहीं है सब अपने फोन में ही लगे रहते हैं..एक साथ बैठा कर कोई किसी से बात भी नहीं करता सिर्फ अपने मोबाइल में ही रहता है।

फिल्म के गाने ठीक-ठाक हैं लेकिन बहुत लम्बे समय तक जुबान पर नहीं चढ़े रहते।

फिल्म क्यों देखें ? :

यदि आप भी एक पारिवारिक फिल्म देखना चाहते हैं जिसे पूरा परिवार एक साथ देख पाए तो यह फिल्म आप देख सकते हैं।

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