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सुप्रसिद्ध कलाकारों द्वारा संगीत नृत्य के महाकुम्भ का शानदार आगाज

नई दिल्ली। संगीत और मंचीय कला के हमारे दोनों पारंपरिक कला रूपों को पुनर्जीवित करने और पश्चिमी और भारतीय लोकप्रिय फिल्म संगीत में अधिक रुचि रखने वाली वर्तमान युवा पीढ़ी को इन कला शैलियों से रूबरू कराने तथा इन्हें पुनर्जीवित करने के उद्देश्य से पद्मभूषण डॉ. उमा शर्मा के भारतीय संगीत सदन और श्री राम सेंटर फॉर परफॉर्मिंग आर्ट्स की ओर से राष्ट्रीय राजधानी नई दिल्ली में संगीत, नृत्य और गायन के एक महत्वपूर्ण उत्सव – स्वामी हरिदास-तानसेन – संगीत-नृत्य महोत्सव का आयोजन पिछले 18 वर्षों किया जा रहा है।
इस महोत्सव के माध्यम से ’महफिल-अंदाज’ में महान गुरु-शिष्य परंपरा को बढ़ावा दिया जा रहा है। संगीत-प्रेमियों के लिए संगीत पेश करने की पुरानी, शास्त्रीय शैली मुगल अवधि के दौरान प्रचलित थी और इसे भारत के दो महान संगीत प्रतिभाओं, बृंदावन के सम्मानित संत-संगीतकार, कवि और संगीतकार स्वामी हरिदास और उनके शानदार शिष्य मियां तानसेन – बैजू बावरा के उदाहरण से समझा जा सकता है।
कार्यक्रम के पहले दिन की शुरुवात उस्ताद आशीष खान के सरोद वादन से हुई जिनके साथ तबले पर पंडित बिक्रम घोष ने बखूबी संगत की प्रख्यात सरोद वादक आशीष खान ने राग झिंझोटी में तीन ताल की गत पेश की। विलबिम्ब से शुरू करके मध्य और फिर द्रुत लय तक आते-आते उन्होंने ऐसा समा बांधा कि रसिक मंत्रमुग्ध हो गये। और तबले पर तो पंडित विक्रम घोष ने कमाल ही कर दिया। संगत के बावजूद उन्होंने ताल की कई खूबियां पेश कीं और लयकारी में भी कौशल का परिचय दिया।
कार्यक्रम की दूसरी प्रस्तुति श्रीमती परवीन सुल्ताना के मधुर गायन की रही जिसमे उन्होंने दर्शकों को अपनी सुरीली आवाज से मंत्रमुग्ध कर दिया बेगम परवीन सुल्ताना के शानदार प्रस्तुति से दर्शकों को बांधे रखा। उनकी यादगार प्रस्तुति में राग पुरया धनाश्री में भजन ‘कौन गली गए श्याम’ प्रस्तुत किया। उसके पशचात दर्शकों की पुरजोर फरमाइस पर ‘हमें तुमसे प्यार कितना ये हम नहीं जानते मगर जी नहीं सकते तुम्हारे विना’ पेश किया उनकी सुरीली व जादुई आवाज ने हर किसी को मोह लिया। उनकी हर राग पर दर्शकों की तालियां बजती रही। उनके मंच पर आते ही जैसे ही दर्शकों ने तालियों से उनका स्वागत किया जिसे देखकर वे भाव विभोर हो गई और पुरानी यादें ताजा हो गई। अपने कार्यक्रम के दौरान उन्होंने कई यादगार प्रस्तुति दी, जिसमें गजल ठुमरी के साथ गाए। जिसे सुनकर दर्शक मंत्रमुग्ध हो गए।
उद्घाटन समारोह में शाम की अंतिम प्रस्तुति में पंडित विश्वमोहन भट्ट ने श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। पंडित विश्वमोहन भट्ट के मोहन वीणा और उनके बेटे सलिल भट्ट के सात्विक वीणा की जुगलबंदी कमाल की रही। मांगिणयार ने वीणा के साथ जुगलबंदी की। पंडित विश्वमोहन भट्ट ने खुद के बनाए राग विश्व रंजनी से शुभारंभ किया उसके बाद ‘झिलमिल बरसे’, ‘पधारो म्हारे देश’, दमादम मस्त कलंदर और आज जाने की जिद न करो पेश किया फिर दर्शकों के फरमाइस पर ‘बंदेमातरम’ गा बजाकर आधी रात को कार्यक्रम का समापन किया।
इस मौके पर पंडित विश्वमोहन भट्ट ने कहा कि ‘स्वामी हरिदास तानसेन महोत्सव शीर्ष स्तर पर भारतीय शास्त्रीय संगीत को बढ़ावा दे रहा है और आम श्रोताओं के बीच भारतीय संस्कृति और संगीत के बारे में जागरूकता पैदा कर रहा है, इस भव्य संगीत समारोह का हिस्सा बनकर मै बहुत प्रफुल्लित हूँ।’

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