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टाइटल अच्छा मगर हंसाने और डराने में कुछ खास कमाल नहीं करती है फोन भूत की कहानी

फिल्म का नाम : फोन भूत
फिल्म के कलाकार : कैटरीना कैफ, ईशान खट्टर, सिद्धांत चतुर्वेदी, जैकी श्रॉफ, शीबा चड्ढा
फिल्म के निर्देशक : गुरमीत सिंह
रेटिंग : 1.5/5

निर्देशक गुरमीत सिंह के निर्देशन में बनी फिल्म ‘‘फोन भूत’’ अब रिलीज़ हो चुकी है। यह एक हॉरर-कॉमेडी फिल्म है। फिल्म के राइटर हैं रवि शंकरन और जसविंदर सिंह बाथ। फिल्म एक्सेल एंटरटेनमेंट के बैनर तले बनी है।

फिल्म की कहानी :

दो बड़े ही अच्छे दोस्त गुल्लू (ईशान खट्टर) और मेजर (सिद्धांत चतुर्वेदी) भूतों और हॉरर फिल्मों में काफी दिलचस्पी रखते हैं। दोनों को हॉरर से इतना लगाव है कि उन्होंने अपने फ्लैट का इंटीरियर भी डरावना सा ही करवाया है जैसे- अजीब से मुखौटे, घोस्ट स्टेचु और आकृतियां सजा रखी हैं, जिनकी आंखों से लाल रोशनी निकलती है। दोनों के पिता उन दोनों को किसी भी काम के लायक नहीं समझते और इसी वजह से दोनों अलग अलग बिजनेस प्लान करते रहते हैं। दोनों भूतों को देख सकते हैं उनसे बात कर सकते हैं। उनकी एक पार्टी में रागिनी (कैटरीना कैफ).. जो खुद एक भूत है, उनसे मिलती है और दोनों को आत्माओं को मोक्ष दिलाने का बिजनेस करने के लिए कहती है। पहले तो गुल्लू और मेजर इस बिजनेस के लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं होते लेकिन बाद में दोनों रागिनी से हाथ मिला लेते हैं। फिर तीनों मिलकर आत्माओं को मोक्ष दिलाने के बिजनेस आगे बढ़ाते हैं.. और ‘फोन भूत’ के नाम से अपना काम शुरू करते हैं। लेकिन शुरूआत में रागिनी अपना मेन मकसद नहीं बताती और कहती है कि बाद में बता देगी। दूसरी तरफ तांत्रिक आत्माराम (जैकी श्रॉफ) को इसकी भनक लग जाती है और वो इनकी जान के पीछे लग जाता है।

कैसी बनी है फिल्म?

निर्देशक ने फिल्म में ग्लैमर, कॉमेडी, हॉरर, सस्पेंस और रोमांस सबकुछ डाल कर एक अच्छी हॉरर-कॉमेडी बनाने की कोशिश की है, लेकिन कहानी कुछ खास कमाल नहीं करती है क्योंकि भूतों को देखकर न तो डर लगता है और न ही संवादों के ज़रिए पंचलाइन पर हंसी आती है। कभी कभी लगता है कि फिल्म कितनी बोरिंग है।
फिल्म में संवादों के जरिए पुरानी और कुछ नई हिंदी फिल्मों के संदर्भ भी कहानी में जोड़े गए हैं। हंसाने के लिए हर लाइन में पंच डाला गया है, लेकिन फिल्म में कुछ ही जगह ऐसे हैं जहां हल्की सी हंसी आती है। करेन्ट पॉप कल्चर के कई एलिमेंट्स को जोड़ा गया है – चाहे वो मीम्स हों, स्लाइस का एड हों या फिर किसी दूसरी फ़िल्म का क्रॉस ओवर हो। कहने का मतलब है आज के बहुत से रेफ़्रेंसेस इस्तेमाल किए गए हैं।
फिल्म का वीएफएक्स अच्छा है और प्रोस्थेटिक्स का भी ठीक-ठाक इस्तेमाल किया गया है। गानों की बात करें तो गानों की ज़रूरत महसूस नहीं होती लेकिन हिन्दी सिनेमा में गाने न हों, ये तो हो ही नहीं सकता। खैर…..‘काली तेरी चोटी’ गाना अच्छा लगा जिसे सुनकर गुनगुनाने का मन करता है।

कलाकारों की अदाकारी :

ईशान खट्टर और सिंद्धात चतुर्वेदी की जोड़ी पर्दे पर अच्छी लगी, दोनों ने काफी कोशिश की हंसाने और मनोरंजन करने की लेकिन स्क्रिप्ट कमजोर होने के कारण उनका अभिनय भी फीका पड़ जाता है। शादी के बाद कटरीना की बड़े पर्दे पर यह पहली फिल्म है, उन्होंने अच्छी ऐक्टिंग करने अच्छी कोशिश की है। कटरीना को बहुत सोच-समझ कर स्क्रिप्ट को चुनना चाहिए क्योंकि शादी के बाद अभिनेत्रियों को फिल्में कम ही ऑफर होती हैं इसलिए वो पर्दे पर कम ही नज़र आती हैं। शीबा चड्ढा का बंगाली चुड़ैल का किरदार अच्छा लगता है। जैकी श्रॉफ का तांत्रिक आत्माराम का किरदार ठीक-ठाक है लेकिन बहुत ज़्यादा दमदार नहीं है।

फिल्म क्यों देखें ? :

फिल्म में सबकुछ ओवर द टॉप है। देखना या ना देखना ये आपके उपर है।

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