हलचल

सरकार ने न्यूनतम मजदूरी तो बढ़ाई पर अधिकांश क्षेत्रों में इसका क्रियान्वयन नहीं किया

नई दिल्ली। 1 मई को संसार भर में मजदूर दिवस मनाया जाता है। आज से 130 साल पहले अमेरिका के शिकागो में 8 घंटे काम का नियम बनवाने के लिए सडकों पर आकर संघर्ष किया था, लेकिन अमेरिका की उस समय की सरकार व् कारखाने के मालिकों ने मजदूरों की मांग न मानकर मजदूरों के जुलूस पर गोलियां चलाई थी।
इसी परिप्रेक्ष्य में विश्व मजदूर दिवस के अवसर पर लेबर वेलफेयर फाउंडेशन एवं यूपीएससी विंग रामजस कॉलेज दिल्ली विश्वविद्यालय के सौजन्य से श्रमिकों से सम्बंधित विभिन्न विषयों पर सेमिनार हेतु आज हमलोग जुटे हैं। स्वतंत्र पत्रकारिता, सूचना का अधिकार (त्ज्प्) एवं समाजसेवा के क्षेत्र में सक्रिय भागीदारी के दौरान महसूस हुआ कि आज देश में मजदूर एवं किसान शोषण के शिकार हैं, इसका मूल कारण इस वर्ग हेतु सरकारी कल्याणकारी योजनाएं ज्यादातर कागजी फाईल तक सीमित है।
लेबर वेलफेयर फाउंडेशन का प्रयास –
1. अब शहर से लेकर गांव तक जाकर हमारे कार्यकर्ताओं द्वारा मजदूरों को उनके हकों के प्रति जागरूक किया जाएगा।
2. किसी मिस्त्री मजदूर की मजदूरी करते समय मौत होने पर या किसी की मृत्यु होने पर कोई सहायता राशि प्रदान नहीं की जाती थी। वर्ष 1996 में तत्कालीन प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा की सरकार ने इस कानून को पूरी तरह से पास कर दिया 2006 में यह कानून पूरी तरह से लागू हो गया था। अभी तक सभी क्षेत्रों में मुश्किल से ही सीमित मिस्त्री मजदूरों का रजिस्ट्रेशन हुआ है। जिसमें से कुछेक मिस्त्री मजदूर को ही इस स्कीम का फायदा मिला है। सरकार मजदूरों के कल्याण के लिए 22 स्कीमें लागू है, लेकिन उनमें से केवल 8-10 सुविधाओं का ही लाभ मिल रहा है। मजदूरों के इलाज का कोई प्रबंध ना होना, मकान बनाने के लिए लोन की सुविधा नहीं है, मिस्त्री मजदूरों के रूकने के लिए शहर में कोई शेड वगैरह की व्यवस्था भी नहीं है। इन जैसी कई और सुविधाओं को अभी भी लागू नहीं किया गया है।
इस हेतु हमलोगों ने लेबर वेलफेयर फाउंडेशन ट्रस्ट की स्थापना की। हमें बताते हुए हर्ष हो रहा है कि ट्रस्ट का यह प्रथम कार्यक्रम है। हमारी संस्था ने समस्त जनों से आह्वान करते हुए आपके समक्ष प्रश्न खड़ा किया है कि :-
1. क्या आपको अपनी नौकरी में नियुक्ति पत्रध् परिचय पत्र मिला है?
2. क्या आप भारत सरकार एवं राज्य सरकार द्वारा श्रमिकों के कल्याण की योजनाओं एवं न्यूनतम मजदूरी के नियमों से अवगत हैं?
3. क्या आप अपने नियोक्ता के शोषण के शिकार हैं?
अगर आप इस सम्बन्ध में किसी भी प्रकार की सूचना एवं शिकायत देना चाहते हैं और किसी भी प्रकार की हमसे मदद चाहते हैं तो लेबर वेलफेयर फाउंडेशन के संपर्क नंबर अथवा कार्यालय में संपर्क कर सकते हैं। हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदीजी कहते हैं कि- “ श्रमिक रहेगा दुखी, तो देश कैसे रहेगा सुखी?” पर विचारणीय तथ्य यह है कि हम और हमारा समाज, हमारा देश मजदूरों के प्रति कितनी संवेदनशील है?
उदाहारण के तौर पर किसी भी सरकार के पास सफाई कर्मचारियों की वास्तविक संख्या को लेकर कोई विश्वसनीय आंकड़े नहीं होते। सफाई कर्मचारियों और मैला ढोने वालों की संख्या पर हो रही राजनीति जिलाधिकारियों और उच्च प्रशासनिक पदों पर आसीन लोगों द्वारा जिस प्रकार समर्थन किया जाता है, वह वाकई दुखद है। किसान भी मजदूर ही है, वह खेत में श्रम साधना करता है, जिसके बदौलत हम अपने क्षुधा की तृप्ति करते हैं, पर उसी अन्नदाता किसान के प्रति हमारा नजरिया नकारात्मक है।
दुनियां का सबसे बड़ा मजाक भारतीय संविधान में लिखा है-“ सभी भारतीयों को समानता का अधिकार है।“ वास्तविकता इसके बिलकुल विपरीत है। आज देश की विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका किसानों और मजदूरों के प्रति संवेदनशील दिखाई नहीं देती, यहाँ सभी क्षेत्रों में एक ही पंक्ति चरितार्थ होती है :-“ समरथ को नहि दोष गोसाई”
– ग्राउंड रिपोर्ट इंडिया इंटरनेशनल पत्रिका के संपादक विवेक उमराव के अनुसार –“ भारत में केवल सरकारें ही नहीं, आम समाज एवं आम आदमी भी किसान विरोधी है। वह किसान की बेज्जती करता है। किसान को धरती का बोझ मानता है. किसान होना ही नकारा होना, मूर्ख होना व गाली माना जाता है। ऐसी सोच एवं मानसिकता वाले लोगों व समाज का देश वास्तव में कितना विकास कर सकता है। अंदाजा लगाना कोई भी बड़ी बात नहीं।दुनिया के जितने भी विकसित देश हैं वहां किसान सरकारों व नौकरशाहों के ऊपर चढ़ कर बैठता है। भारत में नौकरशाही व सरकारें किसानों को जूते तले रौंदते हैं। भारत में किसान को मजदूर माना जाता है। विकसित देशों में किसान को एन्ट्रेप्रेन्योर माना जाता है।विकसित देशों में किसान महंगी कारों व खुद के हैलीकाप्टरों से चलते हैं। सुंदर घरों में रहते हैं। भारत में दो कौड़ी की नौकरी करने वाला भी अपने आप को किसान का बाप मानता है। यह फर्क है, यह बहुत बड़ा फर्क है, जमीन आसमान जैसा फर्क है।“
– आरटीआई से खुलासा रू न्यूनतम वेतन को लेकर भयंकर शोषण के शिकार हैं भारतीय
न्यूनतम मजदूरी को लेकर सभी कामों को लेकर अलग-अलग प्रावधान हैं, लेकिन जानकारी के अभाव में श्रमिक भीषण शोषण का शिकार हो रहे हैं। सूचना के अधिकार के तहत मुताबिक श्रम एवं रोजगार मंत्रालय से प्राप्त जानकारी के मुताबिक कृषि कार्य पत्थर तोड़ने, खदानों में काम करने वाले कामगार, सफाईकर्मी, पहरा देने, लदान, निर्माण, कोयला क्षेत्र के साथ ही कुशल और अकुशल कर्मियों के लिए विभिन्न कार्यों के लिए अलग-अलग मजदूरी तय की गई है। कृषि क्षेत्र में अकुशल मजदूरों के लिए प्रतिदिन के हिसाब से 204 से 226 रुपये, अकुशल मजदूरों के लिए 209 से 247 रुपये और कुशल कामगारों के लिए 247 से 298 रुपये निर्धारित किये गए हैं। पत्थर तोड़ने और पत्थर पीसने के कार्य में लगे मजदूरों के लिए भिन्न-भिन्न कार्यों के हिसाब से मजदूरी निर्धारित की गई है। वहीं मुलायम मिट्टी हटाने के लिए जहां प्रतिदिन 236 रुपये मजदूरी तय है, वहीं कंकड़ सहित मुलायम मिट्टी हटाने के लिए 357 रुपये, कंकड़ हटाने के लिए 473 रुपये प्रतिदिन मजदूरी निर्धारित की गई है। अलग-अलग आकार के पत्थर तोड़ने और उनकी पिसाई के लिए 602 रुपये से 1465 रुपये प्रतिदिन मजदूरी तय है। झाड़ू लगाने और सफाई करने के लिए 236 से 353 रुपये प्रतिदिन और बिना शस्त्र के पहरा देने के लिए 276 रुपये से 390 रुपये प्रतिदिन तथा शस्त्र सहित पहरा देने के लिए 333 रुपये से 430 रुपये मजदूरी तय की गई है। सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि न्यूनतम मजदूरी निर्धारित होने के बाद भी मजदूरों को इसकी जानकारी नहीं है, इसके अलावा देश के अलग-अलग राज्यों में एक जैसे कार्य के लिए अलग अलग मजदूरी है जो अपने आप में मजदूरों का नीति आधारित शोषण है। दिल्ली के आरटीआई कार्यकर्ता गोपाल प्रसाद ने श्रम एवं रोजगार मंत्रालय से मजदूरों की न्यूनतम मजदूरी निर्धारण के बारे में जानकारी मांगी थी। श्रम एवं रोजगार मंत्रालय से प्राप्त जानकारी के अनुसार, सामान लादने और उतारने के कार्य एवं निर्माण क्षेत्र में लगे अकुशल मजदूरों के लिए 236 रुपये से 353 रुपये न्यूनतम मजदूरी निर्धारित की गई है.कोयला खदानों में भूमि के ऊपर काम करने वाले मजदूरों के लिए न्यूनमत मजदूरी 236 रुपये प्रतिदिन और भूमि के नीचे काम करने वालों के लिए 294 रुपये निर्धारित की गई है। आरटीआई के तहत मंत्रालय से प्राप्त जानकारी के अनुसार, केंद्रीय क्षेत्र में अनुसूचित नियोजनों में नियोजित महिला कामगारों के लिए केंद्र सरकार द्वारा कोई अलग से मजदूरी निर्धारित नहीं की गई है। राष्ट्रीय स्तर पर औसत न्यूनतम मजदूरी 1 जुलाई 2015 को 137 रुपये प्रतिदिन से बढ़ाकर 160 रुपये कर दी गई है। केंद्र और राज्य दोनों सरकारें अपने अपने अधिकार क्षेत्र के तहत अनुसूचित नियोजनों में कामगारों की विभिन्न श्रेणियों के संबंध में न्यूनतम मजदूरी दरें निर्धारित करती हैं। कुछ समय पहले संसद में पेश श्रम मंत्रालय से जुड़ी स्थाई समिति की एक रिपोर्ट में कांच से जुड़े कारखानों, खनन, कोयला क्षेत्र, भट्टियों में काम करने वाले मजदूरों की दयनीय स्थिति का जिक्र किया गया है। कार्यक्रम के प्रथम सत्र का विषय..न्यूनतम मजदूरी, द्वितीय सत्र का विषय मजदूरों के अधिकार, तीसरे सत्र का विषय असंगठित क्षेत्र के मजदूरों की समस्या एवं चैथा सत्र इंदु आर्ट थियेटर के सौजन्य से शंकर शेष द्वारा लिखित एवं मधुमिता घोष द्वारा निर्देशित मजदूरों की व्यथा पर आधारित नाटक …पोस्टर का मंचन था। कार्यक्रम का उद्घाटन रामजस कॉलेज के प्राचार्य द्वारा दीप प्रज्वलन कर किया गया। प्रथम सत्र की अध्यक्षता सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता एवं वरिष्ठ पत्रकार श्री अजय कुमार जी ने किया। अपने संबोधन में उन्होंने आप्रवासी मजदूरों की व्यथा एवं सरकार के रवैये पर प्रकाश डाला। कार्यक्रम के मुख्य संयोजक तथा लेबर वेलफेयर फाउंडेशन के मुख्य ट्रस्टी एवं आरटीआई एक्टिविस्ट गोपाल प्रसाद ने श्रमिकों की समस्याओं पर सर्वप्रथम शिकायत दर्ज करवाने एवं श्रमिकों के अधिकार हेतु जनजागरूकता बढ़ाने एवं आरटीआई के प्रयोग पर जोर दिया। दूसरे सत्र की अध्यक्षता करते हुए अनलॉक कम्युनिकेशन प्राईवेट लिमिटेड के निदेशक राजेश पराशर जी ने श्रमिकों की समस्याओं पर आधारित अपने पीपीटी के माध्यम से पावर पॉइंट प्रेजेंटेशन दिया। श्री महावीर बंसल ने मजदूरों की समस्याओं के निदान के संबंध में अपने व्यापक अनुभव साझा की। उन्होंने नाटक के कलाकारों को प्रोत्साहित करने हेतु 500 रुपये का नकद पुरस्कार भी दिया। तीसरे सत्र की अध्यक्षता करते हुए लोक जनशक्ति पार्टी के मजदूर सभा के अध्यक्ष रामजी सिंह ने अट्टालिकाओं की नींव रखनेवाले निर्माण श्रमिकों, असंगठित क्षेत्र के मजदूरों की विभिन्न समस्याओं पर विस्तार से प्रकाश डाला. सुभाष विचार मंच के राष्ट्रीय अध्यक्ष अनिल सुभाष ने मजदूरों के वर्गीकरण करने पर रोष व्यक्त करते हुए इसे विदेशी साजिश करार दिया, वहीं एनजीओ गुरु के संस्थापक एवं सीए राजेश वर्मा ने मजदूरों के तीन वर्गों में विभाजित करने की प्रक्रिया का समर्थन किया। रामजस कॉलेज में लॉ एंड गवर्नेंस के प्राध्यापक डॉक्टर धनीराम ने अगड़े-पिछड़े, में विभाजित कर, बैकलॉग वैकेंसी पर नियुक्ति नहीं करने, एक साल से अधिक तक पोस्ट खाली रहने पर पद समाप्त करने, निजीकरण एवं कॉन्टैक्ट नियुक्ति की सरकारी साजिश पर विस्तार से प्रकाश डाला। इस कार्यक्रम में दिल्ली के डॉक्टर जय सिंह आर्य एवं अलीगढ़ से पधारे गाफिल स्वामी ने मजदूरों पर आधारित कविता से सबक मैन मोह लिया, जिसकी सभी श्रोताओं ने मुक्तकंठ से प्रशंसा की। यूपीएससी विंग रामजस कॉलेज के अध्यक्ष रजत अरोड़ा ने जिज्ञासा व्यक्त किया कि यदि हम विदेश में भारत से मानव संसाधन नहीं भेजेंगे तो हमारी विदेशी मुद्रा भंडार पर असर नहीं डालेगा? उनकी जिज्ञासा का समाधान अजय कुमार एवं राजेश वर्मा जी ने किया। लेबर वेलफेयर फाउंडेशन के ट्रस्टी प्रवीण दत्त चतुर्वेदी एवं राकेश डूमरा ने आगंतुकों का धन्यवाद ज्ञापन किया तथा अतिथियों और नाटक के कलाकारों को श्वेतु इंटरनेशनल के सौजन्य से पर्यावरण संरक्षण का प्रतीक पौधे का गमला देकर सम्मानित किया।

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