दिव्यांगों के हित में काम करने वाले समूहों का विधानसभा चुनावों से पूर्व राजनीतिक दलों से मांग
नई दिल्ली। दिव्यांगों के अधिकारों के लिए काम करने वाले समूहों से जुड़े विशेषज्ञों ने राजनीतिक दलों से मांग की है कि वे आगामी विधानसभा चुनावों में दिव्यांग समुदाय से जुड़े मुद्दों को प्राथमिकता दें। दिव्यांगजनों के साथ समान व्यवहार की आवश्यकता पर जोर देते हुए, दिव्यांग अधिकार के पक्षधरों ने दिव्यांगों के एजेंडे को प्राथमिकता देने और उन्हें निर्णायक वोट बैंक के रूप में स्वीकार करने पर गंभीरता से विचार करने का आह्वान किया है। ये विशेषज्ञ राज्य विधानसभा चुनावों से पहले राष्ट्रीय स्तर के ऑनलाइन विमर्श में अपने विचार व्यक्त कर रहे थे।
ऑनलाइन राष्ट्रीय विमर्श का आयोजन राज्यव्यापी विमर्श शृंखला की परिणति थी, जिसकी शुरुआत नेशनल सेंटर फॉर प्रोमोशन ऑफ इम्प्लायमेंट फॉर डिसेबल्ड पीपल (एनसीपीईडीपी) द्वारा दिव्यांगता के मुद्दों पर काम करने वाले राज्य स्तरीय समूहों के सहयोग से की गई है। मुख्यधारा की राजनीति एवं नीतिगत चर्चाओं में दिव्यांगों को शामिल करने के महत्व के बारे में राजनीतिज्ञों के बीच जागरूकता बढ़ाने के लिए सभी पांच चुनावी राज्यों- मिजोरम, तेलंगाना, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान- में ऐसे विमर्श आयोजित किये जा चुके हैं। दिलचस्प तथ्य यह भी है कि दिव्यांग अधिकार समूहों की कुछ मांगों को मध्य प्रदेश में कांग्रेस पार्टी और छत्तीसगढ़ में भाजपा के घोषणापत्रों में जगह भी मिली है।
एनसीपीईडीपी के कार्यकारी निदेशक अरमान अली ने दिव्यांगों के मुद्दों पर जनता और सरकार दोनों की मानसिकता में बदलाव की आवश्यकता बताई। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि दिव्यांगता क्षेत्र को एक निवेश के रूप में देखा जाना चाहिए, जिससे समग्र विकास को बढ़ावा देने में सक्षम वोट बैंक का गठन किया जा सके। व्यापक विकास के उद्देश्य से 24 हजार करोड़ रुपये की महत्वपूर्ण पहल, पीएम-पीवीटीजी विकास मिशन की घोषणा का स्वागत करते हुए उन्होंने कहा कि दिव्यांगता क्षेत्र के लिए समर्थन का एक समान मॉडल आवश्यक है।
श्री अरमान अली ने राजनीतिक दलों से अपना नजरिया बदलने की मांग करते हुए कहा, ”हर किसी को दिव्यांग वोट की ताकत को पहचानना चाहिए। प्रत्येक वोट देश की किस्मत बदलने की क्षमता रखता है।”
विधानसभा चुनावों से पहले, दिव्यांग समूहों ने राजनीतिक दलों के समक्ष विचार करने के लिए कई मांगें रखी हैं। इनमें प्रमुख हैं: पेंशन की शुरुआत और बढ़ोतरी, दिव्यांग-विकास आयोग की स्थापना, स्वास्थ्य देखभाल और सुगम पहुंच के लिए उन्नत प्रावधान, राष्ट्रीय चुनावों में प्रस्तावित 33% महिला आरक्षण के अंतर्गत दिव्यांग महिलाओं के लिए 5% आरक्षण, एक वर्ष के भीतर यूडीआईडी कार्ड जारी करने का कार्य पूरा करना, और यह सुनिश्चित करना कि प्रत्येक दिव्यांग व्यक्ति (पीडब्ल्यूडी) के पास एक यूडीआईडी कार्ड हो।
श्री अरमान अली ने कहा, “रोजगार पारिस्थितिकी तंत्र में निजी क्षेत्र की बढ़ी हुई जवाबदेही के साथ-साथ दिव्यांगता जनगणना इस क्षेत्र की प्रमुख मांगों में से एक बनी हुई है।”
विमर्श में शामिल सभी पांच विशेषज्ञों ने इस बात पर प्रकाश डाला कि प्रत्येक राज्य में लाखों दिव्यांग मतदाता हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार, पांच राज्यों में लगभग 80 लाख लोग दिव्यांग थे। समय बीतने के साथ, यह संख्या निश्चित रूप से काफी बढ़ गई है और राजनीतिक दलों के लिए एक महत्वपूर्ण वोट बैंक की उपस्थिति का संकेत देती है। 2024 के आम चुनावों को ध्यान में रखते हुए, डिसेबिलिटी सेक्टर ने दिव्यांग समुदाय के समक्ष पेश आने वाली जमीनी चुनौतियों की पहचान करने के लिए इन विमर्श का उपयोग किया।
श्री अरमान अली ने जोर देकर कहा, “अब समय आ गया है कि हम दिव्यांग-विशिष्ट चिंताओं से आगे बढ़ें। रोजगार, पहुंच और शिक्षा पर समझौता नहीं किया जा सकता है, लेकिन हमें मुख्यधारा के मुद्दों से भी जुड़ना चाहिए। केवल एक एकीकृत आवाज बनकर ही हम वास्तव में सुने जाने की उम्मीद कर सकते हैं।”
वेबिनार में पांचों चुनावी राज्यों के दिव्यांग समूहों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया, जिनमें तेलंगाना में दिव्यांग व्यक्तियों के संगठनों के नेटवर्क के संस्थापक श्री एम श्रीनिवासुलु, छत्तीसगढ़ विकलांग मंच के अध्यक्ष श्री ईश्वर प्रसाद चट्टा, राजस्थान में दिव्यांग अधिकार मंच के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. हेमन्त भाई गोयल, मध्य प्रदेश विकलांग मंच के अध्यक्ष श्री आनंद मालाकार और मिजोरम में डिफरेंटली एबल्ड एसोसिएशन के अध्यक्ष श्री निकी छाकछुआक शामिल थे।
वेबिनार ने दिव्यांग समुदाय के समक्ष आने वाली चुनौतियों को स्पष्ट करने, संवादात्मक चर्चाओं को बढ़ावा देने और अधिक समावेशी राजनीति का मार्ग प्रशस्त करने के लिए एक महत्वपूर्ण मंच प्रदान किया।