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राष्ट्रगान के रचयिता, कवि और नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर की 162 वीं जयंती पर पाठक संवाद कार्यक्रम

नई दिल्ली। प्रथम भारतीय नोबल पुरुस्कार विजेता, कवि एवं राष्ट्रगान के रचियता गुरुदेव रवींद्रनाथ टेगोर की 162 वीं जयंती पर “ पाठक विमर्श” कार्यक्रम का आयोजन किया गया । कार्यक्रम की अध्यक्षता ज्योतिशाचार्य पं रविकांत शर्मा , मुख्य वक्ता राम शर्मा “ कापरेन” अभिनेता एवं नाटयकर्मी, मुख्य अतिथि डॉ नवीन शर्मा असिस्टेंट प्रोफेसर कोटिल्य कॉलेज ऑफ एजुकेशन कोटा , विशिष्ठ अतिथि विजय जैन वरिष्ठ अध्यापक एवं रिंकी “रविकांत” शोधार्थी रहे ।
उदघाटन सत्र मे डॉ दीपक कुमार श्रीवास्तव संभागीय पुस्तकालय अध्यक्ष ने कहा कि – दुनिया के पहले गैर यूरोपीय साहित्यकार जिसे नोबेल पुरस्कार से नवाजा गया। उनकी संवदेनशील और बेहतरीन कविता के लिए यह पुरस्कार दिया गया था।’।
मुख्य वक्ता राम शर्मा “ कापरेन” ने कहा कि – रविंद्र नाथ टैगोर जिन्हें गुरुजी के नाम से भी जाना जाता है, एक महान भारतीय कवि व लेखक थे। साहित्य के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार पाने वाले वे पहले भारतीय थे। महात्मा गांधी ने इन्हें ‘गुरुदेव’ की उपाधि दी थी। भारत का राष्ट्र-ज्ञान ‘जन-गण-मन’ और बांग्लादेश का राष्ट्र-ज्ञान ‘आमार-सोनार-बांग्ला’ रबिन्द्रनाथ टैगोर जी की रचनाओं की देन है।
मुख्य अतिथि डॉ नवीन ने टेगोर के संदेश को बताते हुये कहा कि – शिक्षा का मुख्य उद्देश्य स्पष्टीकरण देना नहीं है, बल्कि मन के दरवाजे खटखटाना है। अध्यक्षता कर रहे रविकांत शर्मा ने कहा कि – हम महानता के सबसे करीब तब आते है जब हम विनम्रता मे महान होते है । विशिष्ठ अतिथि विजय जैन ने कहा कि – रविन्द्रनाथ टेगोर ने मेहनत करने वाले लोगों को सबसे सामर्थ्यवान बताया और कहा कि समुन्द्र के पास खडे होने और उसको निहारने से आप समुन्द्र को पार नही कर सकते । शोधार्थी रिंकी रविकांत ने कहा कि – उनकी काव्यरचना गीतांजलि के लिये उन्हें सन् 1913 में साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिला। कार्यक्रम संयोजिका शशि जैन ने सभी आगंतुको का आभार व्यक्त किया ।

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