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अंग दान की मदद से महिला को मिला नया जीवन

नई दिल्ली। स्टेज 4 क्रोनिक किडनी रोग से पीड़ित 40 वर्षीय मीनाक्षी कंबोज ने 2017 को कैडेवर ऑर्गन डोनेशन के माध्यम से सफलतापूर्वक अपना दूसरा किडनी ट्रांसप्लांट करवाया और मैक्स अस्पताल शालीमार बाग में उन्हें नया जीवन प्राप्त हुआ। जब मैक्स अस्पताल मरीज के लिए डोनर की तलाश कर रहा था, तभी एक मरीज, जिसे 2017 को ब्रेन डेड घोषित किया गया था के परिवार को ऑर्गन डोनेशन की संभावना के बारे में काउंसलिंग दी गई और बताया कि इस तरह वे कितनों की जान बचा सकते हैं। परिवार ने दया और उदारता के साथ कॉर्निया, किडनी और लीवर के अंगों को दान करने का फैसला किया, जिसके कारण न केवल मीनाक्षी को नया जीवन मिला बल्कि 5 अन्य लोगों की जान भी बचाई गई।
अंग दान विशेष रूप से उत्तरी भारत में एक बड़ा मुद्दा बना हुआ है, जो कई दृष्टिकोणों और मिथकों से ग्रस्त है। यहां दानदाताओं की सख्त कमी है। दाता के परिवार के इस नेक काम से लोगों की जान बचाने में मदद मिलती है।
कंबोज के जीवन ने एक घातक मोड़ लिया जब 1999 में किया गया उनका पहला किडनी ट्रांसप्लान्टट 2014 में विफल हो गया और 2015 में उन्हें डायलिसिस प्रक्रिया से गुजरना पड़ा। पहले किडनी प्रत्यारोपण में विफलता के बाद, जहाँ डोनर उनकी माँ थीं, उन्होंने अपनी सारी आशाएँ खो दीं। उनके परिवार में कोई अन्य उपयुक्त दाता नहीं था। उन्होंने 16 जनवरी, 2016 को कैडवर प्रत्यारोपण के लिए मैक्स शालीमार बाग में अपना रजिस्ट्रेशन कराया।
नई दिल्ली स्थित शालीमार बाग के मैक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल में यूरोलॉजी एंड रीनल ट्रांसप्लांटेशन के प्रमुख सलाहकार, डॉ. वहीद जमा ने अंग दान पर बात करते कहा कि, “जब सेवर डोनर का मामला हमारे पास आया, जिसे ब्रेन डेड घोषित किया गया था, तो अंग दान की अंतिम प्रक्रिया को शुरु किया गया। पूरे निदान के बाद, मरीज की किडनी मीनाक्षी के प्रत्यारोपण के लिए सबसे उपयुक्त थीं। मीनाक्षी न केवल स्टेज 4 क्रोनिक किडनी रोग से पीड़ित थीं, बल्कि उच्च रक्तचाप, एनीमिया और ईएसआरडी की समस्याओं से भी ग्रसित थीं। इसलिए, कार्डियक मूल्यांकन, रक्त परीक्षण सहित कैडेवर डोनर के साथ एचएलए का गहन परीक्षण किया गया, जो नकारात्मक था। आईवी तरल पदार्थ, आईवी एंटीबायोटिक्स और अन्य सहायक दवाओं और हेमोडायलिसिस के साथ उपचार शुरू किया गया। एनेस्थीसिया क्लीयरेंस के बाद उन्हें कैडेवर ट्रांसप्लांट सर्जरी के लिए ले जाया गया और एक घंटे में किडनी प्रत्यारोपण पूरा किया गया। उपचार के बाद रोगी को जल्द ही अस्पताल से छुट्टी दे दी गई। दो से अधिक सालों के प्रत्यारोपण के बाद से वे वर्तमान में अच्छा कर रही हैं और उन्होंने अपना जीवन भी सामान्य रूप से शुरू कर दिया है।”
यूरोलॉजी विभाग के सलाहकार, डॉ. रजत अरोड़ा ने बताया कि, “’ट्रांसप्लान्ट इम्यूनोलॉजी, सर्जिकल मैनेजमेंट और दाता रखरखाव के क्षेत्र में चिकित्सा प्रगति ने मृतक दाताओं की मदद से महत्वपूर्ण अंगों के प्रत्यारोपण को संभव और प्रभावी बनाया है। अभी इस क्षेत्र में लंबा सफल तैयार करना है, लेकिन कम से कम, इस तरह के दान समाज के लिए एक अच्छा उदाहरण पेश करते हैं। हम अतीत से अपने सभी दानदाताओं की प्रशंसा करना चाहते हैं और साथ ही साथ उन परिवारों के भी आभारी हैं, जो किसी अपने को खोने के इतने बड़े नुकसान के बाद भी किसी और की जिंदगी को बचाने का फैसला कर पाते हैं। यह वाकई बहुत मुश्किल और प्रशंसाजनक बात है।“

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