टीबी का करें मिलकर खात्मा
इस बार विश्व ट्यूबरक्लोसिस (टीबी) दिवस जो कि 24 मार्च को है, की थीम ‘‘वॉन्टेड : लीडर्स फॉर टीबी-फ्री वर्ल्ड” रखी गई है। इससे अभिप्राय है कि टीबी का खात्मा करने के लिए सभी लोगों को अपनी अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी। ना केवल राजनीतिक स्तर पर स्वास्थ्य मंत्री और राज्य के प्रमुखों के सहारे इस बीमारी को छोड़ना है बल्कि मेयर, गवर्नर, सांसदों और समुदाय के नेताओं से लेकर टीबी प्रभावित लोगों, सिविल सोसायटी के वकीलों, स्वास्थ्य कर्मचारियों, डाॅक्टरों, नर्सों, गैर सरकारी संगठनों आदि सभी स्तरों पर सामूहिक प्रयास की जरूरत है। ट्यूबरक्लोसिस (टीबी) एक ऐसी बीमारी है जो माइक्रोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस रोगाणु द्वारा होती है और यह भारत के सभी सामाजिक-आर्थिक क्षेत्र में फैल चुकी है। हालांकि यह संक्रमण मुख्य रूप से फेफड़ों को नुकसान पहुंचाता है, लेकिन यह शरीर के रीढ़ (स्पाइनल ट्यूबरक्लोसिस या पाॅट्स स्पाइन भी कहा जाता है) जैसे अन्य हिस्सों को भी प्रभावित करता है। टीबी छूत की बीमारी है और यह हवा के जरिये अन्य लोगों में फैल जाती है। महज एक छींक 40,000 छोटी बूंदें छोड़ती है। प्रत्येक बूंद बीमारी का शिकार बना सकती है। 10 संक्रमण में से 1 संक्रमण टीबी के प्रसार के लिए काफी है। यदि इसका उपचार नहीं किया जाए तो यह संक्रमित लोगों में से 50 प्रतिशत को मौत का शिकार बना सकती है।
श्री बालाजी एक्शन मेडिकल इंस्टिट्यूट के रेस्पीरेटरी मेडिसिन में वरिष्ठ कंसल्टेंट डॉ. ज्ञान दीप मंगल कहते हैं, ‘टीबी के संदर्भ में बात की जाए तो भारत दुनिया में सर्वाधिक प्रभावित देशों में शामिल है। वर्ष 2014 के डब्ल्यूएचओ के आंकड़ों से पता चला कि वैश्विक रूप से 90 लाख में से भारत में टीबी के 22 लाख मामले सामने आए। पांच साल से कम उम्र के बच्चे इस संक्रमण से अधिक प्रभावित हो जाते हैं। हालांकि बच्चों में टीबी के मामले पूरी तरह सामने नहीं आ पाते हैं क्योंकि जांच सुविधाओं का अभाव है, लेकिन फिर भी वयस्कों में टीबी के मामलों में इनका योगदान 10 प्रतिशत का है। टीबी जिंदगी को खतरनाक रूप से नुकसान पहुंचाने वाली बीमारी है और भारत में तेजी से बढ़ रही मृत्यु दर में इसका अहम योगदान है। यह स्थिति हर साल बदतर होती जा रही है क्योंकि कई मरीज इस खतरनाक बीमारी की वजह से मौत का शिकार हो जाते हैं। देर से बीमारी के लक्षणों का पता चलने और उचित तरीके से उपचार नहीं होने से यह स्थिति और जटिल हो गई है। टीबी के लक्षण वाले मरीजों को जल्द से जल्द डाॅक्टर के पास जाना चाहिए क्योंकि टीबी के लिए शुरुआती उपचार से इसकी अच्छी तरह से रोकथाम की जा सकती है।’
डॉ. मंगल का कहना है कि, ‘यदि टीबी का समय पर उपचार नहीं किया जाए तो कई जटिलताएं पैदा हो सकती हैं जिनमें एमडीआर (मल्टी-ड्रग रेसिस्टेंट) ट्यूबरक्लोसिस, मेनिंजाइटिस या सीएनएस टीबी, क्रोनिक या सुपरेटिव लंग डिजीज, हड्डी और जोड़ों की समस्याएं, लिवर और किडनी से संबंधित बीमारियां आदि शामिल हैं। अन्य कारक कमजोर प्रतिरक्षा और स्वच्छता का अभाव हो सकता है जिससे इस बीमारी को बढ़ावा मिलता है। इसलिए मजबूत प्रतिरक्षा बनाए रखने और टीबी के शिकार लोगों के संपर्क में आने से बचने की सलाह दी जाती है। स्वच्छता संबंधी कुछ सामान्य तरीकों जैसे खांसते वक्त अपने मुंह को ढकना, भीड़-भाड़ वाली जगहों में थूकने से परहेज करना और उचित ढंग से चिकित्सा कराना आदि को अपनाया जाना चाहिए।
किस वजह से होती है टीबी?
अनियमित जीवनशैली और खराब आदतों (शराब पीने और धूम्रपान करने) की वजह से रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो जाती है। प्रतिदिन 15 से अधिक सिगरेट पीने से आपके अंदर टीबी होने का जोखिम 4 गुना तक बढ़ जाता है।
टीबी के सामान्य लक्षण
दो सप्ताह या इससे अधिक समय तक लगातार खांसी, थूक में खून आना, वजन घटना, भूख न लगना, रात में पसीना आना, दो सप्ताह तक लगातार बुखार रहना आदि।
टीबी के प्रकार
टीबी को दो श्रेणियों में विभाजित किया गया है : एक्टिव डिजीज और लेटेंट इन्फेक्शन। एक्टिव टीबी का बेहद सामान्य प्रकार है फेफड़े की बीमारी, लेकिन यह अन्य अंगों को भी प्रभावित कर सकती है जिसे ‘एक्स्ट्रापलमोनरी टीबी’ कहा जाता है।
एक्टिव टीबी
यदि जांच के दौरान आपमें एक्टिव टीबी बीमारी होने का पता चलता है तो सावधान रहें और अपने संपर्क में आने वाले प्रत्येक व्यक्ति पर नजर रखें। चूंकि एक्टिव टीबी छूने से फैल सकती है, इसलिए इन लोगों की भी जांच कराए जाने की जरूरत होगी। एक्टिव टीबी बीमारी के उपचार के लिए मल्टी-ड्रग ट्रीटमेंट होता है। राज्य या स्थानीय स्वास्थ्य नियमों के आधार पर, आपसे अपनी एंटीबायोटिक आपके डाॅक्टर या अन्य स्वास्थ्य पेशेवर की निगरानी में लेने को कहा जा सकता है। इस कार्यक्रम को ‘डायरेक्टली आॅबजव्र्ड थेरेपी’ कहा जाता है और इसे अनियमित उपचार से बचने के लिए पेश किया गया है।
भारत में टीबी
जांच में हर साल 12 लाख भारतीयों के टीबी से ग्रसित (आरएनटीसीपी को दी गई जानकारी के अनुसार) पाए जाते हैं। इसके अलावा कम से कम 2.70 लाख भारतीयों की मौत हो जाती है। कुछ अनुमानों में इन मौतों को दोगुना बताया गया है। टीबी किसी भी उम्र, जाति या वर्ग के व्यक्ति को अपनी चपेट में ले सकती है, लेकिन मामले मुख्य रूप से गरीब लोगों और पुरुषों से जुड़े होते हैं। झुग्गी निवासियों, आदिवासी आबादी, कैदियों और कमजोर प्रतिरोधक क्षमता वाले लोगों में टीबी के अधिक मामले सामने आते हैं।
सिर्फ 58 प्रतिशतत मामलों में ही टीबी की जांच कराई जाती है। एक-तिहाई मामलों की जांच नहीं होती है या उनकी जांच तो होती है, लेकिन उपचार नहीं होता है, या उनकी जांच और उपचार होता है, लेकिन उनकी सूचना आरएनटीसीपी तक नहीं दी जाती है। यह आंकड़ा अधिक हो सकता है और विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुमान के अनुसार टीबी से पीड़ित अन्य 10 लाख लोगों की जानकारी नहीं दी गई है।
रोकथाम
- शराब का सेवन और धूम्रपान नहीं करें।
- व्यायाम से भी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में मदद मिलती है।
- स्वच्छता की आदतें भी टीबी की रोकथाम में अहम भूमिका निभाती हैं।
- संतुलित आहार लें। भोजन में दालें, फली, मौसमी फल, हरी और पत्तेदार सब्जियां लें।
उपचार - यदि सही चिकित्सा उपलब्ध हो और सही सलाह मिले तो टीबी के ज्यादातर मामलों का उपचार किया जा सकता है।
- एंटीबायोटिक उपचार का प्रकार और समय टीबी से ग्रसित व्यक्ति की उम्र, स्वास्थ्य, दवाओं के लिए प्रतिरोधक क्षमता, चाहे टीबी लेटेंट हो या एक्टिव, और संक्रमण का प्रकार (जैसे फेफड़े, दिमाग, गुर्दे) पर निर्भर करता है।
- लेटेंट टीबी के शिकार लोगों को सिर्फ एक तरह के टीबी एंटीबायोटिक लेने की जरूरत होती है जबकि एक्टिव टीबी (खासकर एमडीआर-टीबी) से जूझ रहे लोगों को अक्सर कई दवाएं लेने की जरूरत होगी।
- एंटीबायोटिक को सामान्य तौर पर लंबे समय तक लिए जाने की जरूरत होती है। टीबी एंटीबायोटिक के कोर्स के लिए समय सीमा लगभग 6 महीने है।
टयूबरक्यूयलोसिस एंड फर्टिलिटी
डॉ. श्वेता गुप्ता, क्लीनिकल डायरेक्टर और सीनियर कंसल्टेंट-फर्टिलिटी सॉल्यूशंस, मेडिकवर फर्टिलिटी, नई दिल्ली बताती है कि टयूबरक्यूयलोसिस टयूबल को नुकसान पहुंचाती है जिसके परिणामस्वरूप ये कठोर पाइप जैसी टयूब बन जाती हैं जो आगे चलकर ओवरीज से ओव्यूल के ट्रांसपोर्ट को नाकाम कर देती है। इसके अलावा टी.बी. जेनिटल टयूबरक्यूयलोसिस के 50-75 प्रतिशत मामलों में एंडोमेट्रियल की क्षति (यूटरस की परत जहां भ्रूण प्रत्यारोपण होता है) का कारण भी बनती है। एंडोमेट्रियल रक्त के प्रवाह में कमी आती है जिससे इंट्रयूटरिन ऐडहीशन्स हो जाता है जो आगे चलकर भ्रूण प्रत्यारोपण में बाधा उत्पन्न पैदा करता है। जब टी.बी. के कारण एंडोमेट्रियम क्षतिग्रस्त हो जाता है, तो इसके चलते बार-बार होने वाले भ्रूण प्रत्यारोपण को नाकाम करने, गर्भपात और बार-बार प्रेग्नेंसी लोस की स्थिति पैदा हो सकती है। टी.बी. संक्रमण के कारण ओवेरियन भंडार (अंडों की संख्या और गुणवत्ता में गिरावट) में कमी आ सकती है जो आगे चलकर जेनिटल टयूबरक्यूयलोसिस के साथ महिलाओं में उप-प्रजनन का कारण बन सकता है। हल्का बुखार, अस्वस्थता, वजन घटना, पेट दर्द और मासिक धर्म संबंधी विकार इसके लक्षण है जिसे अनदेखा न करे और तुरंत डॉक्टर से सलाह लें।