लाइफस्टाइलस्वास्थ्य

एक सर्वे के मुताबिक भारतीयों को कोरोनरी आर्टरी डिजीज (सीएडी) होने का सबसे ज्यादा आनुवांशिक जोखिम है

नई दिल्ली। विश्व डीएनए दिवस 25 अप्रैल 2023 को मनाया जाता है और इस अवसर पर इंडस हेल्थ प्‍लस की जेनेटिक टेस्टिंग पर आधारित एक स्‍टडी में सामने आया है कि इंडस से जेनेटिक टेस्टिंग (आनुवांशिक परीक्षण) कराने वाले कुल लोगों में से 24% को कोरोनेरी आर्टरी डिजीज (सीएडी) होने का उच्च जोखिम है। जबकि 29.5% लोगों में अपने जीन्स की बनावट के आधार पर उच्च एलडीए लेवल का ज्यादा जोखिम पाया गया है। इससे किसी व्यक्ति के सीएडी की चपेट में आने के जोखिम को प्रभावित करने में जेनेटिक तत्वों का महत्व पता चलता है और व्यक्तिगत रूप से जोखिम के आकलन के साथ बचाव की रणनीति बनाने की जरूरत उभरती है। इस स्टडी के सैंपल के लिए जेनेटिक टेस्टिंग की प्रक्रिया से गुजर चुके करीब 10,000 लोगों से बातचीत की गई।
इंडस हेल्थ प्लस की स्‍टडी से यह सामने आया कि 90% लोगों को विटामिन डी की कमी होने का आनुवांशिक जोखिम रहता है और 57.55% लोगों को अपने जीन्स की बनावट के आधार पर विटामिन बी12 की कमी होने का काफी आनुवांशिक जोखिम होता है। ये सब स्थितियां किसी व्यक्ति के हृदय के स्‍वास्‍थ्‍य में भी योगदान दे सकती हैं।
इंडस हेल्थ केयर विभाग में प्रिटेंटिव हेल्थ केयर स्पेशलिस्ट श्री अमोल नाइकवाड़ी ने बताया, “स्‍वास्‍थ्‍य से जुड़ी कई दूसरी जांचों के अलावा अलग-अलग लाइफस्टाइल को समझने के लिए लिए जेनेटिक टेस्टिंग काफी लोकप्रिय होती जा रही है। इससे खासतौर पर सीएडी की फैमिली हिस्ट्री वाले लोगों के स्वास्थ्य का बेहतर ढंग से आकलन करने और जोखिम के दूसरे कारकों को समझने में काफी मदद मिलती है। इसके अलावा यह लोगों को डाइट और फिटनेस की प्रभावी योजना बनाने के लिए भी मार्गदर्शन देने में सहायता कर सकता है। यह लोगों को डॉक्टरों से सलाह लेकर उनके इलाज की जरूरत के अनुसार दवाइयां लेने के लिए गाइड करेगा। इससे मरीज अपने लिए अनुकूल जीवनशैली को अपना सकते हैं।”
भारत जैसे देश के संदर्भ में, जहां अलग-अलग लोगों में अलग-अलग जीन्स पाए जाते हैं और उन्हें स्वास्थ्य रक्षा के क्षेत्र में काफी अनोखी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। यहां जेनेटिक टेस्टिंग के उल्लेखनीय प्रभाव पड़ सकते हैं। भारत में जीवनशैली में गड़बड़ी से होने वाले रोगों जैसे डायबिटीज और कार्डियोवैस्‍कुलर रोगों से पीड़ित लोगों की संख्‍या बढ़ती जा रही है। इसके साथ ही यहां जेनेटिक गड़बड़ी से प्रभावित लोगों की आबादी भी ज्यादा है। जेनेटिक टेस्टिंग से किसी व्यक्ति में इन बीमारियों के होने की आशंका का पता चलता है,जिससे बीमारी का जल्द इलाज कराया जा सकता है और इससे निपटने की रणनीति बनाई जा सकती है। जेनेटिक टेस्टिंग से इन रोगों के जोखिम का प्रबंधन प्रभावी रूप से करने और किसी व्यक्ति की इलाज के लिए व्यक्तिगत रूप से दवा प्रिसक्राइब करने में मूल्यवान जानकारी मिलती है। मरीज को एक अलग लाइफस्टाइल, आहार और सांस्कृतिक रूप से प्रासंगिक फिटनेस के रूटीन को अपनाने की सलाह दी जा सकती है। मुंह के लार (सलाइवा) से की जाने वाली जेनेटिक टेस्टिंग में किसी तरह की चीर-फाड़ नहीं की जाती,यह दर्दरहित होती है और इसे आसानी से घर पर किया जा सकता है। इससे जेनेटिक टेस्टिंग की प्रक्रिया उन लोगों के लिए आसान बन जाती है, जो यह चाहते हैं कि उनके डीनए सैंपल उनके घरों से एकत्रित किए जाएं।

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