स्वास्थ्य

चिकित्‍सा विज्ञान के क्षेत्र में उल्‍लेखनीय उपलब्धि – फोर्टिस एस्‍कॉर्ट्स, ओखला ने उत्‍तर भारत में पहली बार ऑटो लिवर ट्रांसप्‍लांट किया

नई दिल्‍ली। फोर्टिस एस्‍कॉर्ट्स, ओखला ने उत्‍तर भारत में पहली बार एक चुनौतीपूर्ण ऑटो लिवर ट्रांसप्‍लांट को सफलतापूर्वक किया है। यह सर्जरी किर्गिस्‍तान की 35 वर्षीय महिला मरीज़ पर की गई। मरीज़ के पेट में पिछले करीब तीन महीनों से दर्द था। डॉ विवेक विज, चेयरमैन, लिवर ट्रांसप्‍लांट, फोर्टिस एस्‍कॉर्ट्स, ओखला, नई दिल्‍ली के नेतृत्‍व में डॉक्‍टरों की टीम ने इस चुनौतीपूर्ण जटिल सर्जरी को अंजाम दिया। सर्जरी करीब 8 घंटे चली। मरीज़ को सर्जरी के बाद 8वें दिन अस्‍पताल से छुट्टी दे दी गई।
मरीज़ की किर्गिस्‍तान में जांच की गई थी और उन्‍हें पैरासाइटिक इंफेक्‍शन एकिनोकॉकिस मल्‍टीलोक्‍युलरिस से पीड़‍ित पाया गया, जिसका मतलब था कि उनके लिवर में धीरे-धीरे ट्यूमर पनप रहा था जो लिवर को क्षतिग्रस्‍त कर रहा था और इसकी वजह से करीब 75 % लिवर को नुकसान पहुंच चुका था। ऐसे मामलों में, लिवर ट्रांसप्‍लांट ही इलाज का एकमात्र विकल्‍प बचता है। फोर्टिस एस्‍कॉर्ट्स, ओखला में मरीज़ का सीटी स्‍कैन किया गया जिसमें उनके लिवर में इंफेक्‍शन और एक्‍यूट लिवर फेल होने की पुष्टि हुई। लिवर और आसपास के अन्‍य अंगों को भी को काफी नुकसान पहुंच चुका था, ऐसे में डॉक्‍टरों ने उनका ऑटो-लिवर ट्रांसप्‍लांट करने का फैसला किया।
इस प्रक्रिया की जानकारी देते हुए डॉ विवेक विज, चेयरमैन, लिवर ट्रांसप्‍लांट, फोर्टिस एस्‍कॉर्ट्स, ओखला, नई दिल्‍ली ने बताया, ”सर्जरी के दौरान, मरीज़ के क्षतिग्रस्‍त लिवर को हटाकर उसके स्‍थान पर उनके लिवर के नॉर्मल भाग को वहां लगाया गया। सर्जरी के बाद मरीज़ ने तेजी से स्‍वास्‍थ्‍य लाभ किया और उनकी स्थिति में सुधार को देखते हुए, ऑपरेशन के 8 दिन बाद उन्‍हें छुट्टी दे दी गई। उन्‍हें किसी प्रकार की इम्‍युनोसप्रेसेंट दवाएं भी नहीं देनी पड़ीं जो कि आमतौर पर अंग प्रत्‍यारोपण (ऑर्गेन ट्रांसप्‍लांटेशन) के मामले में जरूरी होती हैं। उनके क्षतिग्रस्‍त लिवर को हटाना काफी चुनौतीपूर्ण काम था क्‍योंकि लिवर आसपास के अन्‍य महत्‍वपूर्ण ऊतकों/संरचनाओं से जुड़ा था और उसे हटाने पर अन्‍य महत्‍वपूर्ण अंगों को भी नुकसान पहुंचने या अन्‍य जटिलताओं तथा रक्‍तस्राव जैसे खतरे भी थे। एकिनोकॉकिस मल्‍टीलोक्‍युलरिस एक दुर्लभ किस्‍म की मेडिकल कंडीश्‍न है जिसके दोबारा होने की आशंका 10% होती है। अगर समय पर और सही तरीके से इसका इलाज न किया जाए तो इंफेक्‍शन फेफड़ों, गुर्दों, बड़ी रक्‍तवाहिकाओं और यहां तक कि मरीज़ की आंतों तक भी फैलने का खतरा रहता है। एकिनोकॉकिस मल्‍टीलोक्‍युलरिस के ज्‍यादातर मामलों में इलाज के लिए लिवर ट्रांसप्‍लांट किया जाता है। लेकिन इस मामले में हमने एक नई तकनीक यानि ऑटो लिवर ट्रांसप्‍लांट को अपनाया जिसमें मरीज़ के लिवर के क्षतिग्रस्‍त भग को हटाकर उनके ही लिवर के स्‍वस्‍थ भाग को उसके स्‍थान पर लगाा गय। मरीज़ के खुद के लिवर का हिस्‍सा इस्‍तेमाल करने का एक बड़ा फायदा यह हुआ कि सर्जरी के बाद उन्‍हें इम्‍युनोसप्रेसेंट दवाओं पर नहीं रखना पड़ा।”
बिदेश चंद्र पॉल, ज़ोनल डायरेक्‍टर, फोर्टिस एस्‍कॉर्ट्स, ओखला, नई दिल्‍ली ने कहा, ”यह हैल्‍थकेयर और मेडिकल साइंस की दुनिया में एक बड़ी उपलब्धि है और फोर्टिस एस्‍कॉर्ट्स, ओखला के डॉक्‍टरों ने ऑटो-लिवर ट्रांसप्‍लांटेशन प्रक्रिया की मदद से इसे सफलतापूर्व अंजाम दिया। यह भारत में ऑटो लिवर ट्रांसप्‍लांट का दूसरा मामला है, ऐसे मामलों में काफी अनुभव और विशेषज्ञता की आवश्‍यकता होती है। यह काफी चुनौतीपूर्ण मामला था और मरीज़ के लिए काफी जोखिमपूर्ण भी था। लेकिन डॉ विवेक विज के नेतृत्‍व में डॉक्‍टरों की टीम ने सभी मानकों का ध्‍यान रखते हुए इस प्रक्रिया को सफल बनाया। फोर्टिस एस्‍कॉर्ट्स, ओखला अंग प्रत्‍यारोपण करने की विशेषता रखता है, और हम अपने मरीज़ों की सर्वोच्‍च क्‍वालिटी वाली संपूर्ण देखभाल के लिए प्रतिबद्ध हैं।”

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