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युवा भी हो रहे है रीढ़ के विकारों से ग्रस्त

आज महानगरों की अरामपसंद जीवनशैली, गलत रहन-सहन, शारीरिक श्रम की कमी, बैठने व सोने के बेतुके ढंग, भीड़ भरी सड़कों पर अधिक समय तक गाड़ी चलाने आदि के कारण युवाओं में रीढ़ (स्पाइन) संबंधी बीमारी महामारी की तरह फैल रही है। आज बड़ी संख्या में युवा भी रीढ़ के विकारों से ग्रस्त हैं। रीढ़ की हड्डी में खराबी के कारण या तो पीठ या कमर में असहाय दर्द होता है या स्थिति बिगड़ने पर मरीज के पैर बेकार हो सकते हैं। आज यह बड़ी आम समस्या हो गई है।
स्लिप्ड डिस्क समस्या से हर व्यक्ति अपने जीवन काल में कभी ना कभी ग्रसित अवश्य होता है लेकिन पहली बार स्लिप्ड डिस्क होने वाले 10 लोगों में से केवल एक व्यक्ति को सर्जरी की जरूरत पडती है और नौ लोग बेडरेस्ट व दवाओं से ठीक हो जाते हैं। नई दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल के न्यूरो एंड स्पाइन डिपाटमेंट के डायरेक्टर डाॅ. सतनाम सिंह छाबड़ा के अनुसार वास्तव में डिस्क रीढ़ की हड्डी में लगे हुए ऐसे पैड के समान होते हैं, जो कि उन्हें किसी प्रकार के झटके या दबाव से बचाते हैं। शोधों से यह पता चलता है कि कई लोग सिर्फ स्लिप्ड डिस्क के कारण ही भयानक दर्द व तकलीफ का सामना करते हैं। हमारी रीढ़ की हड्डी के कारण ही हम सीधा चल पाते हैं। शरीर को अत्याधिक मोड़ने या गलत तरीक से झुकने से भी यह समस्या शरीर पर हावी होती है। कभी-कभी अपने सामर्थ्य से अधिक बोझ उठाने के कारण भी हम स्लिप्ड डिस्क को न्यौता दे बैठते हैं, इससे हमारी कमर, गर्दन व हिप्स पर बुरा प्रभाव पड़ता है। शरीर में सुन्नपन या पैरालिसिस भी इसके दुष्प्रभाव हो सकते हैं।
रीढ़ की हड्डी, जो कि शरीर के संदेश दिमाग तक पहुंचाती है या यूं कहिए कि शरीर का संप्रेशक होती है। रीढ़ की हड्डी शरीर में कमर की हड्डियों लिगामेंट, मांसपेशियों व नस के माध्यम से शरीर में मोबिलिटी और सेंसेशन प्रदान करती है। वैसे भी रीढ़ की हड्डी को शरीर का पावर हाउस माना जाता है जो कि शरीर को स्थिर कर सिर, बांह व पैरों को सहयोग कर चलायमान बनाती है। डाॅ. सतनाम सिंह छाबड़ा के अनुसार दरअसल स्प्लिड डिस्क ऐसी बीमारी है जिसे समझने के लिए रीढ़ के बनावट के बारे में जानना जरूरी है। हमारी रीढ़ की हड्डी प्रायः 33 हड्डियों के जोड़ से बनती है और प्रत्येक दो हड्डियां आगे की तरफ एक डिस्क के द्वारा और पीछे की तरफ दो जोड़ों के द्वारा जुड़ी रहती है। यह डिस्क प्रायः रबड़ की तरह होती है जो इन हड्डियों को जोड़ने के साथ-साथ उनको लचीलापन प्रदान करती है, तो इन्हीं डिस्क में उत्पन्न हुए विकारों को कहते हैं स्प्लिड डिस्क और कमर दर्द से जुड़ी बीमारियों की पहचान है। कमर से लेकर पैरों में जाता हुआ दर्द जिसके साथ ही साथ पैरों का सुन्न या भारी होना या चीटियां चलने जैसा एहसास भी हो सकता है। आगे चलकर दर्द के मारे चलने में असमर्थ और कई बार लेटे-लेटे भी कमर से पैर तक असहनीय दर्द होता रहता है।
इस समस्या से निजात पाने के लिए चार से छः सप्ताह का समय लगता है। कई बार व्यायाम व दवाइयां भी बहुत मददगार साबित होती हैं। यदि मरीज को अत्यधिक पीड़ा हो तो 2-3 दिन तक बेड रेस्ट करने की सलाह दी जाती है, इस तरह स्लिप्ड डिस्क से जूझने के कई तरीके उपलब्ध हैं। ऐसी अवस्था तब उत्पन्न होती है जब डिस्क का अंदरूनी भाग बाहर की तरफ झुकने लगता है। स्लिप्ड डिस्क के लक्षण और इसमें होने वाला नुकसान इस पर निर्भर करता है कि डिस्क का झुकाव कितना हुआ है। डाॅ. सतनाम सिंह छाबड़ा के अनुसार नसों में एक अजीब प्रकार का खिंचाव व झनझनाहट स्लिप्ड डिस्क का एक बड़ा लक्षण है। यह झनझनाहट पूरी नस में दर्द उत्पन्न करती है जो कि अति कष्टदायक होता है। इसके अलावा प्रभावित जगह पर सूजन होना भी इस दर्द को और अधिक जटिल बना देता है।

  • इलाज

स्लिप्ड डिस्क के इलाज के लिए कई बार सर्जरी भी करनी पड़ती है। कई बार व्यायाम या दवाइयां जहां कारगर नहीं होती हैं वहां सर्जरी करना आवश्यक हो जाता है। डिस्क से जुड़े भाग जो कि बाहर की तरफ आने लगते हैं उन्हें ठीक करना इस सर्जरी का लक्ष्य होता है। इस प्रक्रिया को डिस्केटोमी के नाम से जाना जाता है, लेकिन सर्जरी का भी सर्वश्रेष्ठ विकल्प हैं- इंडोस्कोपिक डिस्केटोमी। इस शल्य चिकित्सा के अंतर्गत स्पाइन तक पहुंच कायम करने के लिए एक बहुत ही छोटा चीरा लगाया जाता है। डिस्क को देखने के लिए इंडोस्कोप की सहायता ली जाती है। यह एक पतली, लंबी ओर लोचदार होती है जिसके एक किनारे पर प्रकाश स्रोत और कैमरा लगा होता है। डा. सतनाम सिंह छाबड़ा के अनुसार एनेस्थिसिया लोकल हो अथवा जनरल यह इस बात पर निर्भर करेगा कि स्लिप्ड डिस्क आपके स्पाइन में कहां है। चीरा लगाकर इंडोस्कोप से देखते हुए उस तंत्रिका को मुक्त कर दिया जाता है जिसके कारण दर्द हो रहा था। एक अन्य अध्ययन के अनुसार औसतन सात सप्ताह बाद लोग अपनी दिनचर्या फिर से शुरू करने लायक हो गए।

  • कमर दर्द से बचने के कुछ टिप्स-

व्यायाम करते समय यह हमेशा याद रखें कि आप जो भी व्यायाम करें वह अधिक जटिल न हो और उसे करने से आप की कमर पर अधिक दबाव न पड़ें। उदाहरण के लिए जब आप तैराकी करते हैं तो आप के घुटनों पर अधिक दबाव पड़ता है और पानी आप के शरीर को सहयोग करता है, लेकिन अधिक समय तक बैठे रहने से आप के कमर दर्द की समस्या बढ़ सकती है। ऐसे में दर्द बढ़कर आप के हिप्स तक पहुंच सकता है। उठने-बैठने के ढंग में परिवर्तन करें। बैठते वक्त सीधे तन कर बैठें। कमर झुकाकर या कूबड़ निकालकर न बैठें और न ही चलें। यदि बैठे-बैठे ही अलमारी की रैक से कुछ उठाना है तो अंगों की ओर झुककर ही वस्तु उठाएं। अपनी क्षमता से अधिक वजन न उठाएं। नरम या गुदगुदे से बिस्तर पर न सोएं बल्कि सपाट पलंग या तख्त पर सोएं। ताकि पीठ की मांसपेशियों को पूर्ण विश्राम मिले। वजन को हरगिज न बढ़ने दें, भले ही इसके लिए आप को डायटिंग या व्यायाम ही क्यों न करना पड़े। तनाव की स्थितियों से बचें। चिंता दूर करने के लिए खुली हवा में टहलें।

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