राजनीति

धारीवाल की पहल पर निखरेगा पांच दरवाजों का रूप

-डॉ. प्रभात कुमार सिंघल, कोटा
कोटा को पर्यटन की दृष्टि से उभारने में लगे नगरीय विकास मंत्री शांति धारीवाल के प्रयासों से अब परकोटे के पांच दरवाजों के रूप निखारने की योजना बनी है,जो स्वागत योग्य है। उन्होंने इसके लिए आज मौका मुआयना कर अधिकारियों को निर्देश दिए। क्या ही अच्छा हो इसके साथ ही परकोटे का स्वरूप भी निखारा जाए।
कोटा के महल, गढ़ एवं परकोटा भी किसी आकर्षण से कम नहीं हैं। विडम्बना ही कही जा सकती हैं कि आजादी के बाद वर्तमान समय तक कोटा की इस धरोहर के साथ खिलवाड ही होता रहा। जगह-जगह पराकोटा तोड कर जरूरत के अनसार रास्ते बना दिये गये। परकोटे पर बस्तियां बस गयी। परकोटे के आकर्शक विषाल दरवाजे दम तोडते नजर आते हैं।
आज भी अनेक स्थानों से परकोटा नजर आता हैं। काफी कुछ सुरक्षित भी हैं पर उसके सामने बडे पैमाने पर अतिक्रमण और पक्के निर्माण होकर दुकाने लगी हैं। सूरजपोल से लेकर नहर के सामने फूटा कोट तक का परकोटा आज भी सलामत हैं। इसे सुरक्षित रखकर कोटा में आने वाले पर्यटकों को यहां की ऐतिहासिक धरोहर से साक्षात दर्शन कराये जा सकते हैं। पुराने यातायात कार्यालय के बुर्ज से लेकर क्षारबाग स्थित बुर्ज एवं परकोटे, सूरजपोल, पाटनपोल, किशोरपुरा दरवाजा, लालबुर्ज एवं इससे लगा परकोटा, लाडपुरा दरवाजें, नयापुरा चम्बल पुल से बैराज की ओर दिखाई देने वाला परकोटे को संरक्षित कर धरोहर को अभी भी संभाला जा सकता है। कुछ समय पूर्व एक कलेक्टर ने चम्बल पुलिया से नजर आने वाले परकोटे को सुन्दर बना कर रात्रि में भी दिखाई देने के लिए फ्लड लाइटे लगाकर पर्यटकों को लुभाने का प्रयास किया था। उनके जाने के बाद वही ढाक के तीन पात हो गये और इसके सौन्दर्यकरण पर किया गया खर्च व्यर्थ चला गया।
परकोटे और इससे जुडे दरवाजों का रखरखाव कर धरोहर को सामने लाने का कार्य स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत प्राथमिकता से लिया जाना चाहिए या फिर इसके संरक्षण के लिये अलग से प्रोजेक्ट बना कर काम किया जाये तो कोटा के महल और परकोटा पर्यटकों के लिये आकर्शण का बडा केन्द्र बन सकते हैं।
कोटा नगर के परकोटे के दरवाजे प्रस्तर शिल्प और स्थापत्य कला के उत्कृष्ठ नमूने हैं। कोटा नगर के शासकों ने समय-समय पर परकोटे का विस्तार किया, साथ ही दरवाजों का निर्माण भी हुआ। आजादी के बाद जहां परकोटे में विभिन्न स्थानों पर तोडफोड हुई वहीं दरवाजों को भी नहीं छोड़ा गया। कोटा के परकोटे के साथ कुल ११ दरवाजे भी बने थे। इनमें से सात दरवाजे अब सुरक्षित रह पाये हैं। जो कोटा राज्य के इतिहास के साक्षी हैं।
कोटा राज्य के संस्थापक राव माधोसिंह ने ही गढ के साथ पहली बार परकोटे का निर्माण कराया। इसके अन्तर्गत पाटलपोल, भीलवाडी पोल और कैथूनीपोल दरवाजे बनाये गय। इसे षहर पनाह कहा जाता था। यदि गढ को एक कोण माना जाये तो उस समय कोटा नगर की बसावट त्रिभुजाकार थी। राव किषोर सिंह के कार्यकाल के दौरान भीलवाडीपोल के पास बस्ती बनी। इसका नाम किषोरपुरा रखा गया। भीलवाडी पोल का नाम भी बदलकर किषोरपुरा दरवाजा रखा गया।
महाराव रामंसंह के कार्यकाल में संवत् १७५४ में परकोटे का विस्तार हुआ। महाराव रामसिंह ने कोट के साथ सूरजपोल तथा रामपुरा दरवाजा बनवाया। रामपुरा दरवाजे की प्राचीर आर्य समाज भवन से होकर वर्तमान यातायात पुलिस के पास स्थित एक अन्य दरवाजे से मिलती थी। इसी दरवाजे की प्राचीर शुरू होकर सूरजपोल दरवाजे पर मिलती थी। लाडपुरा दरवाजा और इसका परकोटा महाराव उम्मेदंसंह प्रथम के काल में कोटा रियासत के प्रधानमंत्री झाला जालिम ंसंह ने अपने मित्र सरदार दलेलखां पठान की देखरेख में करवाया।
नगर के दरवाजों में सूरजपोल दरवाजा तत्कालीन समय के शिल्प और स्थापत्य की गूढता को दर्षाता है। इस दरवाजे की पोल की दीवारें इतनी चैडी है कि उसमें दोनों और बैठकें बनी हैं। यह बैठकें दुमंजली हैं तथा सम्भवतः नगर प्रहरियों के बैठने के काम आती थी। इन बैठकों की दीवारों को आधा बन्द कर लोगों ने उपयोग में लेना षुरू कर दिया है। इन कोठरीनुमा बैठाकों पर लोगों ने अतिक्रमण कर रखा हैं अथवा इन्हें रहने की अनुमति दी गई है इस बारे में पता नहीं चल पाया। सूरजपोल की ऊपर की कोठरी से धुंआ भी उठता दिखाई दे जाता है। सम्भवतः इसे रसोईघर के रूप में उपयोग में लिया जा रहा है।
सूरजपोल में दो दरवाजे हैं। इनमें पहला दरवाजा महाराव रामसिंह ने संवत् १७५४ में तथा दूसरा दरवाजा रियासत के प्रधानमंत्री जालिम सिंह ने बनवाया था। सूरजपोल में लकडी के विषालकाय और मजबूत दरवाजे हैं। दरवाजों को हमला सह सकने जितना सक्षम बनया गया था। दरवाजों को लगाने के लिए पत्थर के बडे-बडे कुन्दे हैं, गोल पत्थर में बडा छेद कर यह कुन्दे बनाये जाते थे। दरवाजे कलात्मक हैं। सुरक्षा के लिये इन पर कीलें लगी हुई हैं। सूरजपोल के दरवाजे का मुंह पूर्व दिषा की ओर है। सूर्य की पहली किरण इस पर पडती थी इससे इसका नाम सूरजपोल रखा गया।
बताया जाता है कि किषोरपुरा दरवाजा भी सूरजपोल की तरह था। आजादी के बाद इसका एक दरवाजा हटा दिया गया। किषोरपुरा दरवाज में भी बैठके बनी हैं। किषोरपुरा और लाडपुरा दरवाजे में भिक्ति चित्रण भी हैं। बेल बूंटे तथा कृश्ण विशयक चित्र बने हैं। दोनों दरवाजों में यह चित्रण अस्पश्ट हो गया है, चित्रों पर धूल आदि चिपक जाने से कुछ स्पश्ट दिखाई नहीं पडता हैं। लाडपुरा दरवाजे में छत के अन्दरूनी भाग पर बेलबूटें स्पश्ट दिखाई देते हैं यहाँ रंगो की चमक भी बरकरार हैं। दरवाजे में महालक्ष्मी का मंदिर भी बना है।
लाडपुरा में दो दरवाजे बने हुए हैं एक दरवाजे से टकराते हुए नाली का पानी गुजरता है। इससे उसकी लकडी गलने लगी है नाली को साफ सुथरा रखकर दरवाजे को गलने से बचाया जा सकता है किन्तु यह प्रयास भी नहीं किया गया है।
कैथूनीपोल और पाटनपोल अन्य ऐतिहासिक घटनाओं के साथ-साथ १८५७ की क्रान्ति के भी मूक प्रत्यक्षदर्षी रहे। कैथूनीपोल दरवाजा पुलिस थाने के पास था। बताया जाता है कि रावतभाटा परमाणु ऊर्जा संयंत्र की स्थापना के समय भारी भरकम जंगी मषीनें और उपकरण ले जाने के लिये इसे तोडा गया पाटनपोल दरवाजा सुरक्षित है। इसके भी लकडी के दरवाजे नीचे से खराब होने लगे हैं।
इतिहासकार डॉ. मथुरालाल षर्मा की पुस्तक “कोटा राज्य का इतिहास” के अनुसार महाराव रामसिंह के षासनकाल में १८५७ की क्रान्ति हुई। इसमें छह माह तक गतिविधियों के केन्द्र कैथूनीपोल और पाटनपोल रहे। दोनों दरवाजों पर छह माह तक क्रान्तिकारियों का ही कब्जा रहा। मेजर बर्टन के वध के बाद क्रान्तिकारियों का उत्साह बढ गया और उन्होंने पूरे षहर पनाह पर कब्जा कर लिया। दरवाजों पर भी क्रान्तिकारियों के जाब्ते तैनात कर दिये गये। तब कोटा के महाराव का षासन सिमट कर गढ में रह गया। दरवाजे बन्द होने से दूसरे राजपूत दूसरे राजपूत सरकार भी उनकी सहायता नहीं कर सकते थे। कोटा नरेष का गढ में काफी अर्सा हो जाने के बाद १५०० राजपूत सैनिकों ने ”षहर पनाह“ को मुक्त कराने का संकल्प लिया और दो हिस्सों में बंटकर आगे बढे। एक हिस्सा कैथूनीपोल तथा एक ने पाटनपोल की ओर कूच किया। एक दिन की लडाई में राजपूतों ने पाटनपोल और कैथूनीपोल से क्रान्तिकारियों को हटा दिया। कैथूनीपोल पर भीशण संघर्श हुआ आखिरकार क्रान्तिकारियों को भगाकर दरवाजे बन्द कर दिये गये।
इसके बावजूद क्रान्तिकारियों का जोर बना रहा। क्योंकि बारूदखाना और तोपखाना उनके कब्जे में था। उन्होंने बुर्जों पर लगी तोप का रूख गढ की ओर कर गोले बरसाने षुरू कर दिया। पाटनपोल और कैथूनीपोल को मुक्त कराने में पांच सैनिक मारे गये थे। गोलो की वर्शा से सैनिकों को गढ की स्थिती नाजुक लगी अतः उन्होंने दोनों मोर्चे छोड दिये। राजपूत वापस गढ में चले गये तथा क्रान्तिकारियों का पुनः कब्जा हो गया।
कोटा की रक्षा के लिये अंग्रेजो ने जनरल राबर्ट्स के नेतृत्व में सेना भेजी। अंग्रेजी सेना चम्बल नदी पार कर चार भागों में गढ की ओर से कोटा में प्रवेष किया। राबट््र्स और साथियों ने गढ से क्रान्तिकारियों का बारूदखाना उडा दिया गया। इससे उनकी स्थिति कमजोर हुई। अंग्रेजों सेना में इंजीनियर थे उन्होंने परकोटे की दीवार का निरीक्षण किया तथा कहा कि कैथूनीपोल दरवाजे में बारूद के थेले में भरकर आग लगादी गई। दरवाजा उड गया तथा अंग्रजी सेना की एक टुकडी वहां से सूरजपोल की ओर बढी। दो टुकडियां कोटा दीवार तोडकर रवाना हुई। एक दिन के संघर्श के बाद अंगेजी सेना कैथूनीपोल पाटनपोल के अलावा सूरजपोल और रापमुरा दरवाजा भी मक्त करा लिया।
रामपुरा का दरवाजा वर्तमान में खादी भवन के पास था। वहीं गणेष मंदिर अब भी हैं। रामपुरा दरवाजा तोडने के कारणों की जानकारी नहीं मिलती। सम्भवतः यह भी यातायात व्यवस्था सुधारने के प्रयास में तोडा गया। रामपरा गणेष मंदिर की दीवार से लगा आधा टूटा हुआ कुन्दा इस बात की गवाही देता है। यहां दरवाजा लगा हुआ था। यातायात पुलिस के कार्यालय के पास स्थित दरवाजे को तोडकर तिराहा बनाया गया।
लक्खी बुर्ज से नीचे भी दरवाजा है। मैंग्नीज स्कूल का मैदान पार कर इस दरवाजे से क्षार बाग तक पहुंचा जा सकता है। यह दरवाजा बहुत छोटा है तथा आम रास्ता नहीं रहा। इस समय लोग इसे “खोडला” दरवाजे के नाम पुकारत हैं। इस समय दरवाजे को बन्द कर रखा हैं उधर से कोई नहीं जाता। बताया जाता है कि इस दरवाजे से होकर षव ले जाये जाते थे इसलिये इसे खोडला दरवाजा कहा जाने लगा।

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