राजनीति

केजरीवाल दिल्लीवासियों को भ्रमित करना छोड़ दें : विजेन्द्र गुप्ता

नई दिल्ली। नेता विपक्ष विजेन्द्र गुप्ता ने आज कहा कि आम आदमी पार्टी ने दिल्ली को पूर्ण राज्य दिलाने के लिए नए सिरे से अभियान चलाने का जो निर्णय लिया है वह मुर्दे में जान डालने की नौटंकी मात्र है। दिल्लीवासी मुख्यमंत्री केजरीवाल के इस दिशा में किये जा रहे बार-बार के प्रयासों को पहले ही पूरी तरह नकार चुके हैं। आम चुनाव से पहले उन्हें भ्रमित करने के प्रयासों को जनता पुनः अस्वीकार कर देगी। केजरीवाल को पता है कि दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया जाना संवैधानिक रूप से संभव नहीं है। परंतु उसके बावजूद भी वास्तव में केजरीवाल इन मुद्दों को उठाकर अपने चार वर्ष के कार्यकाल के दौरान अपने कुशासन और असफलताओं को छिपाना चाहते हैं।
दिल्ली की जनता को पता है कि दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं दिया जा सकता, क्योंकि ऐसा करना संविधान को दृष्टि में रखते हुए संभव नहीं है। केजरीवाल ने बार-बार जनता को भ्रमित करने का प्रयास किया परंतु वे सफल नहीं हुए। उन्होंने 2015 में दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग रखी। वर्ष 2016 में उन्होंने दिल्ली स्टेट बिल तैयार किया और इसके लिए व्यापक अभियान चलाया। जून, 2018 में उन्होंने इसके लिए विधान सभा का विशेष सत्र बुलाया। तत्पश्चात् उन्होंने इसके लिए एक हस्ताक्षर अभियान भी चलाया। उन्होंने कहा कि अब मान्य सर्वोच्च न्यायालय के आदेश तथा जनता द्वारा इस मांग को अस्वीकृत किये जाने के बाद उन्हें दिल्ली की जनता को अपनी असंवैधानिक वायदों के आधार पर भ्रमित करना छोड़ देना चाहिये।
नेता विपक्ष ने कहा कि मान्य सर्वोच्च न्यायालय ने जुलाई, 2018 तथा पुनः अक्टूबर, 2018 में निर्णय दिया कि दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया जाना संभव नहीं है। इसके बावजूद भी केजरीवाल ने गत चार वर्षों के दौरान अपनी असफलताओं को छुपाने के लिए पुनः पूर्ण राज्य का झांसा देने का निर्णय लिया है। यह उनकी अराजकतावादी और असंवैधानिक मानसिकता का प्रतीक है। विजेन्द्र गुप्ता ने कहा कि दिल्ली के पूर्ण राज्य की मांग एक हारे हुए सैनिक की मनोदशा है। दिल्लीवासी केजरीवाल की नौटंकियों से थक चुके हैं। इन सबके बावजूद इस सच्चाई से इंकार नहीं किया जा सकता कि जब से दिल्ली सरकार अपने वर्तमान रूप में आई है तब से उसने इन्हीं सीमाओं में बिना किसी टकराव तथा तकरार के सफलतापूर्वक काम करती रही है। पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने इन्हीं सीमाओं में अपने दायित्वों को निभाया। इस दौरान केन्द्र में वाजपेजी का शासन भी रहा। परंतु जो कड़वाहट केजरीवाल के शासन में दिखती है वह कभी महसूस नहीं हुई थी।

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