धर्मसैर सपाटा

भालका तीर्थ : जहां श्रीकृष्ण के पैर में तीर लगा था और उन्होंने देहोत्सर्ग किया था

-डॉ. प्रभात कुमार सिंघल, कोटा
हमारा देश धार्मिक तीर्थों का देश है। विभिन्नता में एकता की विशेषता वाले देश में सभी धर्मों के तीर्थ वंदनीय हैं। हिंदुओं के अनेक पावन तीर्थों में एक है भालका तीर्थ जो गुजरात राज्य के सोमनाथ और वेरावल के मध्य नदी के किनारे स्थित है और भगवान श्रीकृष्ण के जीवन के प्रसंग से जुड़ा है। देव कृपा से दिसम्बर 2021 की 28 तारीख को हमें इस मोक्षदायिनी तीर्थ को देखने का अवसर प्राप्त हुआ।
भालका तीर्थ का भव्य मंदिर और इसका ऊंचा शिखर दूर से दिखाई देता हैं। मन्दिर कारीगरी का अनुपम उदाहरण है। मन्दिर में एक चौकी पर श्रीकृष्ण विश्राम मुद्रा में पेड़ से कमर को टिका कर दायां धुटना मोड़ के बाएं पैर को उस पर टिकाए हैं। बाएं पैर के तलवे पर लाल रंग दिखाई देता है। चौकी के समीप ही भील की मूर्ति बनाई गई है। मन्दिर में ही एक पीपल वृक्ष के नीचे भालेश्वर शिव का स्थान है। भालकुण्ड के पास दुर्गकूट में गणेश जी का मंदिर है। मन्दिर का सम्पूर्ण परिसर दर्शनीय है। सूचनापट्ट पर इस तीर्थ की कथा और महिमा का विवरण हिंदी और गुजराती भाषाओं में अंकित किया गया हैं।
यह तीर्थ नदी किनारे है। मन्दिर में दर्शन कर हम जा पहुंचे मन्दिर के बराबर पत्थर की उस दीवार के समीप जिसे दूसरी तरफ नदी थी। अभिराम दृश्य प्रस्तुत करती नदी
का प्राकृतिक दृश्य अद्भुत प्रतीत होता हैं। शीतल मन्द पवन के झोंकों के बीच नदी के दृश्यों को निहारने का मज़ा ही कुछ और है।
प्रचलित कथानक के अनुसार महाभारत युद्ध खत्म होने के 36 साल बाद तक यादव कुल मद में आ गए। आपस में लड़ने लगे। इसी कलह से परेशान होकर श्रीकृष्ण सोमनाथ मंदिर से करीब 4 किलोमीटर दूर वैरावल की इस जगह पर विश्राम करने आ गए। वे विश्राम मुद्दा में लेटे हुए थे तभी जरा नाम के भील को कुछ चमकता हुआ नजर आया। उसे लगा कि यह किसी मृग की आंख है और उसने उस ओर तीर छोड़ दिया, जो सीधे कृष्ण के बाएं पैर में जा धंसा। जब जरा करीब पहुंचा तो देखकर भगवान से इसकी क्षमा मांगने लगा। जिसे उसने मृग की आंख समझा था, वह कृष्ण के बाएं पैर का पदम था जो चमक रहा था। भील जरा को समझाते हुए कृष्ण ने कहा कि क्यों व्यर्थ ही विलाप कर रहे हो जो भी हुआ वो नियति है। कृष्ण ने जारा से कहा, ष्हे जरा, आप अपने पिछले जन्म में वली थे, त्रेता युग में राम के रूप में खुद ही मारे गए थे ।. यहां आपको इसका भी मौका मिला और चूंकि इस दुनिया में सभी कार्य मेरी इच्छा के अनुसार किए जाते हैं, आपको इसके लिए चिंता करने की आवश्यकता नहीं है। बाण या तीर को भल्ल भी कहा जाता है, अतः इस तीर्थ स्थल को भालका तीर्थ के नाम से जाना गया है।
तीर लगने से घायल भगवान कृष्ण भालका से कुछ ही दूरी पर स्थित हिरण नदी के किनारे पहुंचे। कहा जाता है कि उसी जगह पर भगवान पंचतत्व में ही विलीन हो गए। हिरण नदी सोमनाथ से महज डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर है। यहां नदी के किनारे आज भी भगवान के चरणों के निशान मौजूद हैं। इस जगह को आज दुनिया भर में देहोत्सर्ग तीर्थ के नाम से जाना जाता है।
यहीं पर भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित गीता मन्दिर के दर्शन किए। माना जाता है जरा भील के तीर से घायल होने पर कृष्ण यहां तक घायल स्थिति में पैदल चल कर आए थे। इस मन्दिर का निर्माण बिरला परिवार ने 1970 ई. में करवाया था। मंदिर के गर्भ में भगवान कृष्ण की एक मूर्ति है। मंदिर के आंतरिक भाग की दीवारों को भगवान कृष्ण के जीवन के विभिन्न भागों को दर्शाती कई चित्रों से सजाया गया है। मन्दिर संगमरमर के पत्थर की आकर्षक वास्तुकला में निर्मित है। मंदिर के स्तंभों पर संगमरमर के पत्थर पर गीता के 18 अध्याय स्लोकों के रूप में अंकित हैं। यह मंदिर बद्रीनाथ के लक्ष्मीनारायण मंदिर की प्रतिकृति है। मन्दिर अत्यंत कलात्मक है। मन्दिर के परिसर में ही लक्ष्मीनारायण मन्दिर, बलराम गुफा, महाप्रभु जी की बैठक, काशी विश्वनाथ मंदिर और कृष्ण का देहोत्सर्गस्थान के दर्शन भी किए।
यह तीर्थ स्थान रेल, सड़क, वायु मार्गों से जुड़ा हुआ है। यहां का नजदीकी रेलवे स्टेशन वेरावल है। हवाई मार्ग के लिए राजकोट /केशोद हवाई अड्डा हैं। भालका गुजरात के बड़े शहरों से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है।

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