संपादकीयसामाजिक

हाड़ोती संस्कृति : परिधान और श्रृंगार

-डॉ.प्रभात कुमार सिंघल, कोटा
विभिन्नता में एकता के दर्शन हमारे देश की विशेषता है। इन्हीं विभिन्नताओं में हर राज्य, क्षेत्र और जाति की अपनी वेशभूषा और श्रृंगार परंपराएं हैं। राजस्थान में भी हर क्षेत्र में इन परंपराओं की विभिन्नता देखने को मिलती हैं। हम चर्चा करते हैं हाड़ोती क्षेत्र की परम्पराओं की। हाड़ोती की चित्रकला और प्राचीन मूर्तियों में हमें परंपरागत परिधान और श्रृंगार के दर्शन खूब होते हैं।

  • वेश-भूषा :

हाड़ोती के ग्रामीण क्षेत्रों में एक व्यस्क पुरूष की वेश-भूषा धोती, एक विशेष शैली की बदलबन्दी, सिर पर साफा या पगड़ी है। इसके अलावा कुर्त्ता, कमीज, अंगरखी भी पहने जाते हैं। पैरों में जूतियां पहनी जाती हैं। नगरीय क्षेत्रों में ट्राउजर्स (पेन्ट, पायजामा आदि) बुशर्ट, सूट्स आधुनिक फैशन अपनाने वाले लोगों द्वारा पहने जाते हैं। गांवों में युवक – युवतियां आधुनिक फैशन के परिधान भी पहनते हैं।
ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं द्वारा घाघरा, लंहगा, ओढ़नी, कांचली, कब्जा एवं ब्लाउज पहने जाते हैं जबकि नगरीय क्षेत्र में साड़ी, ब्लाउज, सलवार सूट व आधुनिक युवतियों द्वारा जीन्स, टी-शर्ट, स्कर्ट, ब्लाउज, कुर्ती, एवं अन्य फैशन के परिधान पहने जाते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में पैरों का पहनावा रबड़ की चप्पल या जूती है। ग्रामीण क्षेत्रों में अधिकतर बच्चे अधनंगे दिखाई देते हैं और धीर-धीरे बड़े होने पर लड़कों की अपेक्षा लड़कियाँ जल्दी ही अंगिया व घाघरा पहनने लगती है। वेशभूषा का आधुनिक फैशन गांव में भी पहुँच गया है।

  • श्रृंगार :

महिलाएं और पुरुष दोनों आभूषण धारण करते हैं। महिलाएं माथे पर बिंदिया सजाती हैं और मांग में सिंदूर भरती हैं। होठों पर विभिन्न रंगों की लिपिस्टिक और हाथ के नाखूनों पर नेलपॉलिश का इस्तेमाल करती हैं। सुंदर दिखने के लिए तरह – तरह की क्रीम और पावडर का उपयोग करती हैं। कई प्रकार के श्रृंगार के सामान बाजारों में उपलब्ध हैं। विशेष अवसर पर हाथियों और पैरों को मेंहदी और आलते से सजाती हैं। प्राचीन काल की प्रसाधिकाओं की भूमिका अब ब्यूटी पार्लर निभा रहें हैं। सजने – संवरने के लिए खासतौर पर विवाह के समय ब्यूटी पार्लर जाने का प्रचलन बढ़ गया है। ग्रामीण क्षेत्र भी इस सुविधा ने पेठ बनाली है।

  • गोदना – टैटू :

कई जातियों की स्त्रियों (विशेषतः सहरिया, मीणा, गाडोलिया लुहार) आदि में शरीर के विभिन्न अंगों पर गोदना, गुदवाने का प्रचलन भी है। इसे सौन्दर्य का प्रतीक माना जाता है। देखा गया है कि वे बाहों पर आगे की ओर छोटे-छोटे बिन्दुओं का समूह गुदवाती हैं। अपना या अपने पति का नाम भी गुदवाती है। ठोड़ी, गालों व बाहों पर भी बिन्दु लगवाती है। पैरों एवं जांघों पर वे मछली, कोबरा, बिच्छु अथवा फूलों के चित्र गुदवाती है। शहरों में शरीर के अंगों पर गोदने की जगह टेटू बनवाने का प्रचलन बढ़ा है जबकि गाँवों में आज भी गोदने गुदवाये जाते हैं।

  • आभूषण :

श्रृंगार के लिए आभूषणों का प्रचलन प्राचीन काल से रहा है। महिलाएं और पुरुष दोनों ही आभूषण धारण करते हैं। यहां ग्रामीण क्षेत्रों में पुरूष हंसली, मोती की माला, चैन तोड़ा (कलाई में पहनने वाला) रम्मनी (गले में पहनने वाला) कुंडल, मुकरी झेला, बालौर आदि धारण करते हैं। जबकि शहरी क्षेत्रों में पुरूष चैन, अंगूठी, घड़ी, व कड़ा पहनते हैं।
महिलायें बोर, रखड़ी, झूमर और टीकला मस्तक पर, नथ, फूली, अदग्या, लोंग और बाली नाक पर, गुट्टिया, कर्णफूल, टॉप्स, झेला और झुमका कान पर, खंगुली, हंसली, कंठी, कठला, तगलौर, हार, बैजन्ती, सतफूली, सांकलोर, गले पर बजरी, पाँच कड़े, मदालिया, पाँची, बंगारी, कंगन, संकारा, चूड़ियाँ और गजरा कलाईयों पर बाजूबन्द, चूड़ा कड़ी पाँचा और ढड्डा बाहों पर, अंगुठियां व छल्ले अंगुलियों पर, कड़ी अनवाले नेवारी, जोड़, झांझर, टांके टोड, पायजेब एवं रोजरी पैरों में, बिछिया पैरों की अंगुलियों पर में पहने जाते हैं। आभूषण सोने,चांदी,कांच एवं विभिन्न प्रकार के नगीनों से आकर्षक डिजाइनों में मिलते हैं।भिन्नता एवं डिजाइन पहनने वाले की रूचि एवं आर्थिक स्थिति पर निर्भर करता है।

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