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प्रसिद्ध कथक कलाकार का गीत गोविंद प्रलेखन पूरा होने के करीब

नई दिल्ली । कथक गीत गोविंद के पूर्ण चित्रण के साथ प्रस्तुत होने के लिए अपने आरंभिक चरण में है। कथक कला में निपुण पाली चंद्रा वर्तमान में 12 वीं शताब्दी की संस्कृत कविता के सभी 24 गीतों की संगीत रचना और कोरियोग्राफी कर रही हैं ताकि उन्हें शास्त्रीय उत्तर भारतीय नृत्य में प्रदर्शन के रूप में रिकॉर्ड किया जा सके।
स्विट्जरलैंड में रहने वाली चंद्रा अपने मूल देश की विरासत के इस अग्रणी प्रयास पर पिछले पांच सालों से काम कर रही हैं। उनका लक्ष्य अगले सितंबर तक अपने इस मिशन को पूरा करना है। 150 लोगों के साथ, कलाकार की इस योजना को केरल में उनके गुरुकुलके शिष्यों जो भारत के साथ-साथ विदेशों में भी हैं, के सहयोग से साकार रूप दिया जा रहा है।
आईसीटी सलाहकार और सेवा प्रदाता इनविस कल्चर-डॉक्यूमेंटिंग मल्टीमीडिया कंपनी के सहयोग से की जाने वाली इस अनूठी पहल का एक मुख्य आकर्षण इसका विशिष्टमंच है। इसे जापानी वनस्पतिशास्त्री-पारिस्थितिकीविद् अकीरा मियावाकी (1928-2021) के प्रसिद्ध मॉडल का उपयोग करके तिरुवनंतपुरम से दूर एक वन स्थान पर बनाया गया है। इस बात का ध्यान रखते हुए कि जयदेव की गीत गोविंदा में लगभग 40 पौधों का उल्लेख किया गया है, इसकी रिकॉर्डिंग उपनगरीय पुलियाराकोणम में 120 वर्ग मीटर के हरे भरे भूखंड पर फिल्माया जा रहा है।
लखनऊ में जन्मी डॉ. चंद्रा, जो अब ज्यूरिख में बस गई हैं, कहती हैं, ”इनमें से अधिकांश वनस्पतियां हमारे मंच के आसपास ही उगी हुई हैं। मात्र छह साल पहले, यह पूरा इलाका बंजर था। आज हमने इसमें 400 से अधिक प्रजातियों को उपजाया है।”
विक्रम सिंह और कपिला मिश्रा के तहत प्रशिक्षण प्राप्त करने वाली डॉ. चंद्रा के इस कार्य में छात्रों के लिए विस्तृत ऑनलाइन शिक्षण सत्र लिए जाएंगे। क्रिएटिव डायरेक्टर के रूप में केरल स्थित इनविस के संस्थापक प्रबंध निदेशक एम.आर. हरि के साथ 2017 में शुरू की गई श्रृंखला के साथ वह कहती हैं, ” Natyasutraonline नामक एक मंच के माध्यम से गुरु-शिष्य परंपरा को हम जारी रखना चाहते हैं।”
NatyaSutraOnline.com1995 में स्थापित इनविस का शास्त्रीय नृत्य मंच है, जिसका मुख्यालय केरल में है।
जयदेव, जो माना जाता है पूर्वी भारत के वर्तमान ओडिशा से थे, उपमहाद्वीप के दक्षिणी प्रायद्वीप में उनकी लोकप्रियता बढ़ी थी। कथकली और बाद में मोहिनीअट्टम के अलावा भरतनाट्यम और कुचिपुड़ी जैसे नृत्य गीत गोविंदा की संगीत रचनाओं का प्रयोग करते हैं। आठ-पंक्ति वाली अष्टपदी के प्रारूप में जो इस कार्य की एक प्रमुख विशेषता है, में आमतौर पर इनका प्रयोग किया जाता है।
पिछले तीन दशकों से प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय समारोहों से जुड़ी 55 वर्षीय डॉ चंद्रा कहती हैं, “हमारे देश में किसी भी नृत्य ने गीत गोविंदा के सभी छंदों और गीतों को प्रस्तुत नहीं किया है। यही कारण है कि कथक में इस कार्य को करने को इनविस को प्रेरित किया।” उनके गुरुकुल ने तीन महाद्वीपों में अनुसंधान, नृत्यकला और प्रशिक्षण के लिए कार्यशालाओं का आयोजन किया है।
डॉ. चंद्रा का मानना है कि कथक में गीत गोविंदा को कोरियोग्राफ और रचना करना कठिन था।वह नृत्य, जिसे मुगल काल (1526-1857) की 16 वीं शताब्दी के दौरान बहुत प्रोत्साहन मिला, के सौंदर्यशास्त्र के बारे में कल्पना करते हुए कहती हैं, “सबसे पहले तो हमें इस ग्रंथ कामूल पाठ कौन-सा है, उससे पहचानने में कठिनाई का सामना करना पड़ा। भारतीय और विदेशी, कई लेखक हैं, जिन्होंने कविता को संकलित, उसकी व्याख्या या अनुवाद किया है, जिसके परिणामस्वरूप भिन्नताएं देखने को मिलती हैं, हालांकि वे मामूली हैं। इसलिए, हमने मूल पाठ से उनकी प्रामाणिकता का अनुमान लगाते हुए, विभिन्न पुस्तकों से अलग-अलग गीतों को लेने का निर्णय किया।”
संगीतकार बी. शिवरामकृष्ण राव के निर्देशन में भारत के विभिन्न हिस्सों के गायकों की एक टीम के साथ संगीत रिकॉर्ड किया जा रहा है। कीबोर्ड और रिदम अरेंजर वेंकी डी.सी. हैं। इनविस की 100 सदस्यों की एक टीम द्वारा निर्माण और रिकॉर्डिंग के बाद के काम किए जा रहे हैं। NatyaSutraOnline.comकी सीईओ अनीथा जयकुमार इस प्रोजेक्ट की कॉऑर्डिनेटर हैं।
डॉ. चंद्रा कहती हैं, “इस कार्य की विषय-वस्तु की संरचना भी दिलचस्प है।शास्त्रीय नृत्य प्रदर्शन के अलावा, कलाकार भाषा के रूप में नृत्य का उपयोग करते हुए दर्शकों के लिए गीतों के मूल विचार को प्रस्तुत करता है। गुरु छात्रों को विषय और कोरियोग्राफी सिखाता है और प्रदर्शन में उनका मार्गदर्शन भी करता है। पूरी योजना का उद्देश्य शास्त्रीय रचना, इसकी विषय-वस्तु की सुंदरता और काव्य सौंदर्य प्रस्तुत करना है।”
यह कार्य विस्तृत रूप से राधा को चित्रित करेगा, जो इस कालजयी कविता के कारण भारतीय पौराणिक कथाओं के सबसे लोकप्रिय पात्रों में से एक है।
आयोजक गीत गोविंदा पर कॉफी टेबल बुक भी तैयार कर रहे हैं। उसमें दो अलग-अलग शैलियों में वी.एस. सुधीर और के के बैजू जैसे चित्रकारों के भित्ति चित्र हैं और उसको लिखा है डॉ. राधिका मेनन ने।

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