संपादकीय

आर्य समाज और श्री अटल बिहारी वाजपेयी

-विमल वधावन योगाचार्य
एडवोकेट सुप्रीम कोर्ट
श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की विचारधारा से ओत-प्रोत भाजपा के नेता थे। परन्तु बहुत कम लोग इस तथ्य से अवगत होंगे कि ग्वालियर की गलियों में जीवन बिताने वाला एक बालक आर्य समाज की सहायक संस्था आर्य कुमार सभा में नियमित भाग लेते हुए समाजसेवा और देशसेवा का प्रशिक्षण लेता रहा। जिसने बाद में देश की राजनीति में प्रधानमंत्री पद तक की यात्रा पूरी की। उन्हें आर्य समाज के किसी भी कार्यक्रम में जब भी हमने बुलाया, वे अक्सर अपने उस बालकपन में आर्य कुमार सभा के माध्यम से प्राप्त संस्कारों का उल्लेख अवश्य किया करते थे। मेरा पहली बार उनसे परिचय दिल्ली के काॅन्सटीट्यूशन क्लब में एक कार्यक्रम के माध्यम से हुआ जिसका संचालन मैं कर रहा था और आर्य समाजों की सर्वोच्च संस्था सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा के प्रधान स्वामी आनन्दबोध सरस्वती जी कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे थे। इसी कार्यक्रम में अटल जी ने खुलकर अपने बाल्यकाल के आर्य समाजी अनुभव सुनाये थे। इसके बाद दूसरी बार 1994 में श्री अटल जी मुझे दिल्ली के बत्रा अस्पताल की लिफ्ट में मिले। वे किसी परिचित का हालचाल जानने के लिए पहुँचे थे। जब मैंने उन्हें स्वामी आनन्द बोध जी की अस्वस्थता के बारे में बताया तो वे लगभग आधे घण्टे बाद उसी अस्पताल में दाखिल स्वामी जी को देखने आ पहुँचे। उनके इस व्यवहार को देखकर मुझे लगा कि देश का यह नेता कितने सरल स्वभाव का है। इसके बाद कई बार उनसे मिलने-जुलने का अवसर प्राप्त होता रहा।
1999 में जब वे प्रधानमंत्री बने तो अगले ही वर्ष आर्य समाज की स्थापना के 125 वर्ष पूर्ण हो रहे थे। स्वामी आनन्दबोध जी का देहावसान हो चुका था। मैं प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी के पास पहुँचा और उन्हें आर्य समाज के 125 वर्ष पूर्ण होने की ऐतिहासिक अवधि स्मरण कराते हुए निवेदन किया कि वर्ष 2000 में इस अवसर पर एक डाक टिकट जारी की जानी चाहिए। प्रधानमंत्री के रूप में उन्होंने मेरे इस सुझाव को पूरी सरलता और सहज भाव से स्वीकार कर लिया। उस समय श्री रामविलास पासवान सूचना प्रसारण मंत्री थे और उन्हीं के अधिकार क्षेत्र में डाक विभाग भी था। प्रधानमंत्री जी ने मुझे पासवान जी के पास भेजा। मैं जब पासवान जी को मिलने गया तो यह जानकार मेरे आश्चर्य का ठिकाना न रहा कि श्री रामविलास पासवान तो महर्षि दयानन्द सरस्वती और आर्य समाज के प्रति इतना सम्मान व्यक्त करते हुए दिखाई दिये जैसे कोई व्यक्ति अपने गुरु के प्रति भाव व्यक्त करता है। मुझे दो-तीन दिन के बाद श्री पासवान ने बताया कि मैंने डाक टिकट जारी करने का आदेश तो कर दिया है, परन्तु इस बात का उल्लेख जब मैंने प्रधानमंत्री जी से किया तो उन्होंने स्वयं ही यह कहा कि आर्य समाज की डाक टिकट वे स्वयं जारी करेंगे और इतना ही नहीं उन्होंने यह भी कहा कि यह सारा कार्यक्रम प्रधानमंत्री निवास पर ही आयोजित करो। अन्ततः आर्य समाज के 125 वर्ष की ऐतिहासिक यात्रा पूर्ण होने की डाक टिकट जारी करने का भव्य कार्यक्रम प्रधानमंत्री आवास पर ही आयोजित हुआ। मैंने ही उस कार्यक्रम का भी संचालन किया। इस कार्यक्रम के सम्बन्ध में मैं एक-दो बार श्री अटल जी से मिला तो मुझे हर बार उनकी आत्मीयता आकर्षित कर जाती थी।
वर्ष 2001 में गुजरात में जब भाजपा की जीत हुई तो दिल्ली में कई जगह भाजपा की इस जीत को ‘हिन्दुत्व की जीत’ कहते हुए पोस्टर लगे दिखाई दिये। संसद में प्रधानमंत्री जी से भेंट करने के लिए मुझे अब विशेष मेहनत नहीं करनी पड़ती थी। प्रधानमंत्री आवास और कार्यालय में उनके कई सहायक उनसे मिलने के लिए मुझे शीघ्र ही अवसर प्रदान कर देते थे। मैं संसद में उनसे मिलने गया और मैंने उनसे कहा कि मैं एक छोटी सी बात कहने आया हूँ। भाजपा तो एक राजनीतिक दल है। प्रत्येक राजनीतिक दल को कभी विजय तो कभी पराजय का सामना करना ही पड़ता है। आज भाजपा की जीत को यदि ‘हिन्दुत्व की जीत’ बताया जायेगा तो निकट भविष्य में हिमाचल प्रदेश के चुनावों में भाजपा की हार की संभावनाएँ दिखाई दे रही हैं तो क्या उसे ‘हिन्दुत्व की हार’ बताया जायेगा। मेरी इस बात से अटल जी ने पूरी विचार मुद्रा में मग्न होकर सहमति व्यक्त की।
वर्ष 2002 में गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के 100 वर्ष पूरे हो रहे थे। हमने हरिद्वार में बड़े विशाल स्तर पर इस शताब्दी समारोह का आयोजन किया। इस शताब्दी समारोह में प्रधानमंत्री जी को आमंत्रित किया गया, उन्होंने स्वीकृति भी प्रदान कर दी। अजमेर के लोकसभा सांसद श्री रासा सिंह रावत जी के साथ एक दिन जब मैं प्रधानमंत्री जी के साथ उनके आगमन की योजना पर विचार-विमर्श कर रहा था तो वे पूरी मनोविनोद मुद्रा में हमारे साथ हंसी-मजाक करते हुए बातचीत कर रहे थे। उन्होंने पूछा कि हेलीपैड कितनी दूर है। मैंने कहा वैसे तो लगभग दो किलोमीटर दूर है यदि आप चाहें तो मंच के पिछले हिस्से में कबड्डी का एक बहुत बड़ा मैदान है जहाँ राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताएँ आयोजित होती हैं, वहाँ पर भी अस्थाई हेलीपैड बन सकता है। इस पर अटल जी ने और बढ़िया मजाक करते हुए कहा कि मंच से पीछे क्यों, मंच पर ही हेलीकापटर क्यों नहीं उतार लेते। परन्तु कुछ लोगों के बहकावे में आकर अचानक 3-4 दिन पूर्व उनका कार्यक्रम रद्द होने की सूचना मिली। मन को ठेस तो बहुत पहुँची परन्तु कार्यक्रम की व्यस्तता के कारण ध्यान उसी में लगा रहा। गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय का दीक्षान्त समारोह राज्यसभा सदस्य श्री नरेन्द्र मोहन जी से सम्पन्न करवाया गया। चार दिन के इस कार्यक्रम में उस समय अनेकों मंत्री तथा सांसद हरिद्वार पधारे जिनमें श्रीमती सुषमा स्वराज और श्री पीयूष गोयल जी के पिता श्री वेद प्रकाश गोयल जी भी शामिल थे। श्रीमती सुषमा स्वराज ने लगभग एक महीने के बाद मुझे बुलाया और एक ही दिन पूर्व सम्पन्न हुई कैबिनेट बैठक में गुरुकुल कांगड़ी सम्मेलन पर हुई चर्चा का वृत्तान्त बताते हुए कहा कि अग्निवेश ने श्री अटल बिहारी वाजपेयी और श्री लाल कृष्ण आडवानी जी को निर्वाचन लड़ने से प्रतिबन्धित करने की प्रार्थना सहित एक याचिका दिल्ली उच्च न्यायालय में प्रस्तुत की है। इस विषय पर कैबिनेट बैठक में चर्चा हुई तो प्रधानमंत्री जी हरिद्वार सम्मेलन में भाग लेने का कार्यक्रम रद्द करने पर दुःख व्यक्त कर रहे थे। इन बातों को सुनकर मैंने पुनः प्रधानमंत्री जी से मिलने का मन बनाया। इस बार उनसे मिलते समय मेरे मन में रोष तो था परन्तु फिर भी मैंने विनम्र भाव से उन्हें कहा कि आपके हरिद्वार कार्यक्रम रद्द करने की क्षतिपूर्ति हो सकती है यदि आप गुरुकुल कांगड़ी के शताब्दी वर्ष पर एक डाक टिकट जारी करवा दें। उन्होंने इस प्रार्थना को स्वीकार करने में एक क्षण भी नहीं लगाया और मेरे पत्र पर सूचना प्रसारण मंत्री श्री प्रमोद महाजन को लिखित निर्देश भिजवा दिया। इस बार फिर डाक टिकट का विमोचन पूर्व की भांति प्रधानमंत्री आवास पर ही हुआ जिसमें उन्होंने अपने उन संस्मरणों का विशेष उल्लेख किया जब वे एक सामान्य व्यक्ति की भांति गुरुकुल कांगड़ी जाया करते थे।
दिल्ली के मिण्टो रोड पर लगभग 1940 के दशक से स्थापित आर्य समाज को शहरी विकास मंत्री श्री जगमोहन जी के अवैध निर्माण तोड़ने के अभियान के अन्तर्गत क्षतिग्रस्त कर दिया गया। इस घटना को लेकर समूचे देश और विदेश में आर्य समाज आन्दोलित मुद्रा में आ गया। अगले ही दिन केन्द्रीय मंत्री श्री मदन लाल खुराना ने मुझे संसद में 12 बजे बुलाया। मेरे साथ आर्य समाज के दो-तीन और नेता भी थे। श्री खुराना ने प्रधानमंत्री जी के समक्ष इस विपत्ति को प्रस्तुत करने के लिए श्री विजय कुमार मल्होत्रा, श्री साहब सिंह वर्मा और श्री विजय गोयल को भी बुला लिया था। इन चारों भाजपा नेताओं के साथ जब मैं प्रधानमंत्री जी के सामने पहुँचा तो मुझे देखते ही बोले तुम इन चारों को ले आये हो या ये चारो तुम्हें लाये हैं। इस पर मैंने कहा कि आज तो आर्य समाज के लाखों कार्यकर्ता आपसे मिलने के लिए आन्दोलित हो रहे हैं। आपके राज में यदि आर्य समाज मंदिर टूटेगा तो फिर उसे बचायेगा कौन? इस पर उन्होंने उक्त चारो भाजपा नेताओं को कहा कि आप सब मिलकर जगमोहन जी को समझाते क्यों नहीं। इस पर मैंने कहा कि इनकी जगमोहन जी कहां सुनते हैं, इसीलिए तो ये आपके पास उपस्थित हुए हैं। इतने बड़े आन्दोलित वातावरण का निराकरण करते हुए प्रधानमंत्री जी ने तुरन्त जगमोहन जी को हमारे सामने ही टेलीफोन पर निर्देश दिया कि आर्य समाज मंदिर का पुनर्निर्माण वहीं होना चाहिए। अन्ततः चार दिन में ही मंदिर ध्वस्त होने का यह आन्दोलन सफलता पूर्वक शान्त हुआ। जब उसी स्थल पर चारों वेदों की भूमिगत स्थापना के साथ आर्य समाज मंदिर मिण्टो रोड के पुनर्निर्माण का मार्ग प्रशस्त हुआ। इस प्रकार श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी के साथ हर बार मिलने पर मुझे उनका जीवन अत्यन्त सरल और मनोविनोदी लगता था कि मैंने ऐसा व्यक्तित्व आज तक किसी अन्य राजनेता में नहीं देखा।

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