संपादकीय

फिर निकला ईवीएम का जिन्न

-सुरेश हिन्दुस्तानी
लोकसभा चुनाव के लिए अभी दो चरण का ही मतदान हुआ है, लेकिन इन दोनों चरणों के मतदान के बाद विपक्ष ने फिर से ईवीएम पर भड़ास निकालने का उपक्रम प्रारंभ कर दिया है। पिछले कई चुनावों में प्रायः यही दिखाई दिया कि जो भी राजनीतिक दल चुनावों में विजयश्री का वरण करता है, उसके लिए ईवीएम सत्यवादी हरिश्चन्द्र की तरह सौ प्रतिशत खरी होती हैं। लेकिन यदि किसी राजनीतिक दल के विरोध में परिणाम आए तो यही ईवीएम खराब हो जाती है।
हालांकि अबकी बार जो मामला प्रकाश में लाया जा रहा है, वह ईवीएम की खराबी या हैक कर देने जैसी नहीं है। इस बार विपक्षी राजनीतिक दलों ने यह मांग की है कि ईवीएम से वीवीपैट मशीनों का मिलान किया जाए। उल्लेखनीय है कि चुनाव आयोग यह पूर्व में भी स्पष्ट कर चुका है कि यदि ईवीएम में गड़बड़ी की आशंका होती है तो फिर वीवीपैट की मशीन की पर्चियों से मिलान भी किया जा सकता है। लेकिन सभी स्थानों पर ऐसा करना संभव नहीं होगा, क्योंकि एक तो इससे मतगणना प्रक्रिया सुस्त होगी, दूसरे परिणाम आने में भी देर लगेगी। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने भी निर्वाचन आयोग से सहमति जताते हुए प्रत्येक विधानसभा के पांच बूथों पर ईवीएम का वीवीपैट से मिलान कराने का आदेश दिया है।
ईवीएम पर आरोप लगाने वाले राजनीतिक दल भले ही इसे जायज मांग उच्चारित कर रहे हैं, लेकिन इसके पीछे के निहितार्थ कुछ अलग ही कहानी बयां करते हैं। पहले चरण के मतदान के बाद ही विपक्ष को लगने लगा है कि देश में फिर से राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार बनने जा रही है। विपक्ष के बयानों से ऐसा परिलक्षित होने लगा है कि विद्युतीय मतदान यंत्र (ईवीएम) का जिन्न फिर से निकल आया है। इसके पीछे का कारण यही है कि राष्ट्रीय राजनीति में विपक्षी राजनीतिक दलों की भूमिका का निर्वाह करने वाले दल इस बात की आशंका जता रहे हैं कि विद्युतीय मतदान यंत्र और वीवीपैट मशीन में समानता नहीं है। विपक्ष विद्युतीय मतदान यंत्र को लेकर फिर से सर्वोच्च न्यायालय जाने का मन बनाने लगा है।
विद्युतीय मतदान यंत्र को लेकर दिल्ली में विपक्षी राजनीतिक दलों की एक बैठक के बाद आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने एक पत्रकार वार्ता में कहा कि हम विद्युतीय मतदान यंत्र वाले मुद्दे पर फिर से सर्वोच्च न्यायालय जाएंगे। इस पत्रकार वार्ता में नायडू के अलावा अरविंद केजरीवाल, कपिल सिब्बल, अभिषेक मनु सिंघवी ने भी विद्युतीय मतदान यंत्र पर सवाल उठाते हुए सर्वोच्च न्यायालय जाने की बात कही है। इससे पूर्व, पहले चरण के मतदान के तुरंत बाद ही बसपा नेता मायावती ने भी विद्युतीय मतदान यंत्र पर सवाल खड़े किए थे।
पिछले लोकसभा चुनाव और उत्तरप्रदेश के विधानसभा चुनाव के बाद भी मायावती ने ईवीएम के विरोध में ऐसा राग अलापना शुरु किया था कि उनकी पार्टी की पराजय केवल ईवीएम के कारण ही हुई है। इसी प्रकार की भाषा का प्रयोग दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के नेता अरविन्द केजरीवाल ने भी की थी। केजरीवाल ने तो यहां तक दावा किया था कि वे ईवीएम को हैक करके दिखाएंगे, लेकिन परिणाम क्या निकला, वही ढाक के तीन पात। यह बात तर्कसंगत है कि जो भी दल चुनाव में पराजय की आशंका से ग्रस्त होता है, वह किसी न किसी प्रकार से हार के बहाने तलाश करता है। विद्युतीय मतदान यंत्र पर सवाल खड़े करना भी एक बहाना ही प्रतीत होता है।
बहाना इसलिए भी है, क्योंकि चुनाव आयोग ने पहले भी कई बार विपक्ष की इस आशंका को निर्मूल करके दिखाया है। चुनाव आयोग ने उन सभी 17 राजनीतिक दलों को चुनौती देते हुए कहा था कि जो नेता ईवीएम पर हैक करने का सवाल खड़ा कर रहे हैं, वे ईवीएम को हैक करके दिखाएं। कहते हैं कि सच बहुत ही कड़वा होता है, लेकिन इस कड़वे सच को आज स्वीकार करने की मानसिकता में कोई भी दिखाई नहीं देता। जिस दिन राजनीतिक दलों के नेता सच को स्वीकार करने की स्थिति में आ जाएंगे, तब उन्हें यह पता चल जाएगा कि गड़बड़ी वास्तव में कहां हो रही है। यह सर्वविदित है कि पिछले लोकसभा चुनाव में जनता के दिलों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रति दीवानगी का वातावरण उत्पन्न हो गया था। इस वातावरण के चलते ही विरोधी पक्ष को विपक्ष का नेता चुनने लायक भी सीटें नहीं मिल सकी थी।
भाजपा को सरकार बनाने के लिए स्पष्ट बहुमत मिल गया था। इस बार भी लगभग वैसा ही वातावरण है। इस बार विपक्ष के समक्ष एक बड़ी विसंगति यह भी कही जा सकती है कि जिस प्रकार से एकता के सूत्र में बंधने की तैयारियां की जा रही थीं, स्वार्थ की रेत पर वह तैयारियां एक झटके में धराशायी हो गईं। पश्चिम बंगाल में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और उत्तरप्रदेश में सपा-बसपा ने कांग्रेस को कोई भाव नहीं दिया। यह सत्य है कि आज कांग्रेस का अखिल भारतीय स्वरुप संकुचित दायरे में आ चुका है। इस बात को कांग्रेस को स्वीकार करना चाहिए, लेकिन वह आज भी ऐसी मानसिकता में जी रहे हैं कि देश में सबसे बड़ा राजनीतिक दल कांग्रेस ही है। आज विद्युतीय मतदान यंत्र पर सवाल खड़े करना मात्र इस बात का परिचायक है कि विपक्ष को अपनी पराजय की आशंका हो चुकी है। इससे ज्यादा कुछ भी नहीं।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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