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आज छोटे निर्माता तबाह होते जा रहे है लेकिन इस पर कोई विशेष ध्यान नहीं दे रहा : निर्देशक समीर आई पटेल

बहुमुखी प्रतिभाशाली निर्देशक समीर आई पटेल ने स्टेज, टेलीविजन और फिल्म सभी झेत्र में अपनी प्रतिभा का लोहा सभी को मनवा चुके है। बतौर एक्टर धारावाहिक ‘एहसास’, ‘मिस्टर और मिसेस वर्मा की रसोईं, नूरजहां इत्यादि में काम कर चुके है। इसके अलावा हिंदी के सुपरहिट कॉमेडी नाटक बात ‘बात में बिगड़े हालात’, ‘जो खाये सो पछताए और जो ना खाये सो पछताए’ में भी काम किया किया था। इसके बाद कई म्यूजिक वीडियो, वेब सीरीज विज्ञापन इत्यादि का निर्देशन किया। उनका वेब चैनल ‘सिप डिजिटल’ काफी अच्छा चल रहा है,जिस पर ‘झप्पी जेट’ सुपरहिट रहा है। पिछले साल बतौर निर्देशक उनकी हिंदी कॉमेडी फिल्म ‘होटल ब्यूटीफूल’ रिलीज हुई थी, जोकि काफी सराहनीय रही। हिंदी और अंग्रेजी में बनी उनकी शाॅर्ट फिल्म ‘पी एफ ए: लव मॉम एंड डैड’ काफी चर्चित हुई।
अब वे जल्द ही एक ब्लैक कॉमेडी फिल्म, ‘कबर से पहले खबर’ का निर्देशन करने जा रहे है। जिसमे ज्यादातर मार्केट के नामी कलाकार होंगे। इसके बारे में समीर पटेल कहते है, ‘इसके बारे में ज्यादा बता नहीं सकता हूँ। यह बहुत ही अच्छी कॉमेडी फिल्म है, दर्शक हंसते-हंसते आँखे नम हो जाएगी। इसमें एक साथ इसमें एक मैसेज है कि मौत अंत नहीं होता है बल्कि नई शुरुवात की आगाज होती है। यह मैसेज लोगों तक ठीक से पहुंचे। इसलिए ये फिल्म एक बड़ी कार्पोरेट कंपनी के साथ कर रहा हूँ।’
अभी समीर एक रोमांटिक कॉमेडी फिल्म ‘योर्स ट्रूली रूहानी’ फिल्म डिजिटियली रिलीज किया और कई फिल्म फेस्टिवल में भी दिखाई गई, इसे लोगों ने बहुत पसंद किया, जोकि ४२ मिनिट की फिल्म है।इसमें ऋषि सक्सेना और विभा आनंद है। पूरी फिल्म की शूटिंग एक गाने के साथ एक दिन में और एक लोकेशन पर की गयी है,जोकि एक रिकॉर्ड है। इसकी कहानी में एक प्रेमी घर पर प्रेमिका के आने का इंतजार कर रहा होता है और अकेले में बहुत कुछ करने की सोचता है और इस चक्कर में कुछ जोश भरी दवाई खा लेता है लेकिन उसकी प्रेमिका के बदले घर में एक इंशोरेंस एजेंट लड़की आ जाती है। और वह उससे सम्बन्ध बनाने के लिये चक्कर चलाने लगता है। दोनों के ऊपर यह कहानी है। फिल्म को थिएटर में रिलीज करने के बारे में पूछे जाने पर समीर पटेल कहते है, ‘यह फिल्म डिजिटियली रिलीज करने के हिसाब से ही बनाया था। वैसे आजकल कोई भी छोटी फिल्म रिलीज करना बहुत मुश्किल है। डिस्ट्रीब्यूटर नेटवर्क तक पहुंचना बहुत मुश्किल है। अच्छी फिल्में भी अच्छे थिएटर नहीं मिलने के कारण दम तोड़ देती हैं। इसके लिए हमारे सभी निर्माता यूनियन को डिस्ट्रीब्यूटर यूनियन के साथ बैठकर इसका हल निकालना चाहिए। आज छोटे निर्माता तबाह होते जा रहे है लेकिन ना ही निर्माताओं की यूनियने और ना ही सरकार इस पर कोई विशेष ध्यान दे रही है।’

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