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आर्थिक स्वतंत्रता ने दिया आधी दुनिया को नया आयाम

प्रेमा राय
महिलाएं पुरुषों की परछाई होती थीं, लेकिन आज उनका स्वतंत्र अस्तित्व है। समाज में भी उनकी हैसियत बढ़ी है, इसका सबसे प्रमुख कारण आर्थिक स्वतंत्रता है। आज महिलाएं आर्थिक रूप से सक्षम हो गई हैं वो शिक्षा प्राप्त करने लगीं हैं, नौकरियां और व्यवसाय करने लगी हैं। कईं महिलाएं अपने परिवारों का आर्थिक आधार हैं। इसने उनके निजी अस्तित्व को स्थापित किया है। महिलाएं न केवल बड़ी-बड़ी नौकरियां कर रहीं हैं, बल्कि बड़े-बड़े बिजनेस भी चला रहीं हैं। आज की महिलाएं कल की महिलाओं से अधिक सशक्त और स्वतंत्र हैं।
– आर्थिक स्वतंत्रता ने दिया जीवन को नया आयाम
एक महिला के लिए घर की चारदीवारी से बाहर निकलकर काम करना और समाज में अपनी एक निजी पहचान बनाना आसान नहीं है। लेकिन जीवन की हर चुनौती का डटकर सामना करना उन्हें मानसिक रूप से अधिक मजबूत और दृढ़-निश्चयी बना देता है। आर्थिक आत्मनिर्भरता उन्हें जीवन को एक नया आयाम और एक नई दिशा देती है।
– आत्मविश्वास
जो महिलाएं अपने परिवार के लिए ब्रेड अर्नर होती हैं, वो उन महिलाओं की तुलना में अधिक आत्मविश्वासी होती हैं, जो अपनी आर्थिक जरूरतों के लिए पिता, पति या पुत्र पर निर्भर रहती हैं। जब अपनी कमाई से वो अपनी ही नहीं परिवार की भी जरूरतें पूरी करती हैं, तो उनमें अपनी जिंदगी को अपनी शर्तों पर जीने का साहस उत्पन्न होता है। वो अपनी जिंदगी में उन समझौतों को करने से मना कर देती हैं जो उनके परिवार की दूसरी महिलाओं को पुरुषों पर आर्थिक निर्भरता के कारण करने पड़े थे, आर्थिक स्वतंत्रता से मिला आत्मविश्वास उन्हें अपने जीवन को उस दिशा में आगे बढ़ाने में सहायता करता है जो वो चाहती हैं।
– आत्म सम्मान की भावना
परिवार को आर्थिक रूप से सहायता देना महिलाओं के सम्मान को बढ़ा देता है। न केवल परिवार और समाज के लोग उन्हें सम्मान देते हैं, बल्कि उनमें आत्मसम्मान की भावना भी विकसित होती है।
– स्वतंत्र अस्तित्व
आर्थिक स्वतंत्रता अन्य स्वतंत्रताओं का आधार है। आर्थिक रूप से स्वतंत्र महिलाओं का स्वतंत्र अस्तित्व होता है। यह अस्तित्व उनके जीवन में मौजूद पुरुषों पर निर्भर नहीं होता बल्कि उनकी स्वतंत्र पहचान से पोषित होता है, जो महिलाएं आर्थिक रूप से स्वतंत्र होती हैं वो अपने जीवन के फैसले अपनी प्राथमिकताओं के आधार पर लेती हैं।
– सुरक्षित भविष्य
इन महिलाओं को अपने भविष्य की चिंता नहीं रहती कि कल को अगर माता-पिता नहीं रहे, उनकी शादी नहीं हुई या तलाक हो गया या पति की मृत्यु हो गई तो वो क्या करेंगी। अगर उनके अपने बच्चे हैं तो उनके भविष्य का क्या होगा। अगर उनके जीवन में कोई दुर्घटना घटती है तो भी वो आर्थिक रूप से इतनी सक्षम हैं कि वो अपने जीवन को पटरी पर ला सकती हैं। भविष्य को लेकर सुरक्षा का भाव उनके व्यक्तित्व को मजबूत बनाता है।
– निर्णय लेने की स्वतंत्रता
सदियों से यही परंपरा रही है कि एक औरत की जिंदगी के फैसले उसकी जिंदगी के पुरुष लेते हैं। पिछले दो-तीन दशकों में महिलाओं की स्थिति में काफी बदलाव आया है, जिन महिलाओं ने खुद को आर्थिक रूप से सक्षम बनाया है उन्होंने अपने जीवन के फैसले लेने का हक पुरुषों से छीन लिया है। ये महिलाएं अपने जीवन के निर्णय खुद लेती हैं कि इन्हें शादी करना है या नहीं, कब करना है, किससे करना है या एक असफल शादी के बंधन से अपने आपको मुक्त करके समाज में अपने स्वतंत्र अस्तित्व को स्थापित करना है।
– माता-पिता का संबल
अक्सर कईं लोगों को आपने कहते सुना होगा कि बेटी तो पराई होकर भी पराई नहीं होती लेकिन बेटा अपना होकर भी पराया हो जाता है। कईं ऐसे बेटे होते हैं जो शादी के बाद अपने माता-पिता से अलग हो जाते हैं, लेकिन बेटियां ससुराल जाकर भी अपने माता-पिता से दूर नहीं होतीं। किसी और परिवार की बहु बन चुकी बेटी के लिए अपने माता-पिता को आर्थिक सहारा देना कठिन हो सकता है लेकिन जब वो आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर है तो उसके लिए अपने माता-पिता की जरूरतें पूरी करना आसान हो जाता है वो अपने पैसे अपनी इच्छा के अनुसार खर्च कर सकती है। पति और ससुराल पक्ष को भी आपत्ति नहीं होती और वो अपने दोनों परिवारों के साथ बेहतर तालमेल बना सकती है।
– परिवार का आर्थिक आधार
जब पति-पत्नी दोनों कमाते हैं तो परिवार आर्थिक रूप से बहुत मजबूत होता है। उनकी आर्थिक स्थिति न केवल उनके जीवन की गुणवत्ता को सुधारती है बल्कि विपरीत परिस्थितियों में उनका जीवन प्रभावित नहीं होता है, जो महिलाएं कमाती हैं वो अपने परिवार का पालन पोषण करने और अपने बच्चों को बेहतर शिक्षा प्राप्त करने में सहायता करती हैं। ऐसी महिलाएं पति पर निर्भर नहीं होती बल्कि पति के साथ कंधे से कंधा मिलाकर जीवन की हर कठिनाई का सामना करती हैं। कईं अध्यननों में यह बात सामने आई है कि परिवार की खराब आर्थिक स्थिति का बच्चों की मानसिकता पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। लेकिन अगर माता-पिता दोनों कमाते हैं तो बच्चों को विकट आर्थिक स्थितियों का सामना नहीं करना पड़ता है।
– चुनौतियों का सामना करने के टिप्स
किसी महिला के लिए घर से बाहर निकलकर कमाना आज भी किसी चुनौती से कम नहीं है। उसे समाज और कार्य स्थल पर कईं चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। जब महिला सिंगल हो तब यह चुनौतियां और बढ़ जाती हैं। अपने दृष्टिकोण को सकारात्मक और आशावादी रखें। मानसिक शांति के लिये ध्यान करें, अपनी भावनाओं को नियंत्रित रखना सीखें, रोज कम से कम 30 मिनिट एक्सरसाइज करें इससे न सिर्फ शारीरिक रूप से स्वस्थ रहने में सहायता मिलती है, बल्कि मानसिक शांति भी प्राप्त होती है। मानसिक और भावनात्म क स्वास्थ्य के लिये शरीर को आराम देना भी बहुत जरूरी है। अपने शरीर की आवश्यकता के अनुसार 6-8 घंटे की नींद लें। सामाजिक रूप से सक्रिय रहें।
– बेटियां बेटों से अधिक जिम्मेदार होती हैं
एक बेटी पांच बेटों से बेहतर होती है। वैज्ञानिक रूप से भी यह प्रमाणित हो चुका है कि बेटियां अपने मां-बाप से भावनात्मक रूप से अधिक जुड़ी रहती हैं और उनकी देखभाल करने में बेटों से अधिक रूचि लेती हैं। बेटियां बड़ी होकर मां-बाप की अच्छी दोस्त बन जाती हैं, मां-बाप भी अपने दिल की बात बेटियों से ही अधिक शेयर करते हैं. बेटा तभी तक बेटा होता है जब तक उसकी शादी नहीं हुई होती है, बेटियां हमेशा बेटियां रहती हैं। बेटियां मां-बाप को भावनात्मक सहारा देती हैं, उन्हें खुश रखती हैं, इस तरह से उन्हें लंबा जीवन जीने में सहायता करती हैं। शादी से पहले तो वो अपने मां-बाप की देखभाल करती ही हैं। शादी के बाद दोनों परिवारों की देखभाल करती हैं, वो अपने उत्तरदायित्व से कभी मुंह नहीं मोड़ती हैं।

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