सामाजिक

“मनुष्य के चित्त और प्रकृति के उतराव-चढ़ाव की गायकी है कुमार गंधर्व की गायकी”

नई दिल्ली। रजा फाउन्डेशन और इंडिया हैबिटाट सेंटर के संयुक्त तत्वावधान में ‘कुमार गंधर्व स्मृति व्याख्यान’ श्रृंखला का पाँचवां व्याख्यान ‘हिस्ट्री, मेमोरी एंड इमोशन इन अंडरस्टैंडिंग म्यूजिक एज पॉलिटिक्स’ अर्थात ‘राजनीति के रूप में संगीत को समझने में इतिहास, स्मृति और भावना’ विषय पर चर्चित लेखिका एवं गायिका सुमंगला दामोदरन का 29 अक्टूबर 2018 को इंडिया हैबिटाट सेंटर के गुलमोहर सभागार में संपन्न हुआ। रजा फाउन्डेशन नियमित रूप से साहित्य, संस्कृति और कला माध्यमों में अपनी विविध गतिविधियों से विद्वत समाज का ध्यान आकृष्ट करता रहा है। रजा फाउन्डेशन द्वारा आयोजित आठ व्याख्यान श्रृंखला अज्ञेय, कुमार गंधर्व, मणिकौल, हबीब तनवीर, वी.एस. गायतोंडे, केलुचरण महापात्र, चार्ल्स कोरिया और दयाकृष्ण स्मृति व्याख्यानमाला है, कुमार गन्धर्व व्याख्यान की प्रस्तुति में अब तक मुकुन्द लाठ, टी.एम. कृष्णा, विजय किछलू और दीपक एस. राजा का व्याख्यान संपन्न हुआ है। इस क्रम में सुमंगला दामोदरन का यह पाँचवां कुमार गन्धर्व स्मृति व्याख्यान था। कार्यक्रम की शुरुआत रजा फाउन्डेशन के प्रबंध न्यासी एवं हिंदी के सुप्रसिद्ध कवि अशोक वाजपेयी के स्वागत वक्तव्य एवं अतिथि वक्ता सुमंगला दामोदरन को गुलदस्ता भेंट कर के हुई। श्री अशोक वाजपेयी ने कुमार गंधर्व का परिचय देते हुए कुमार गंधर्व को भारतीय शास्त्रीय संगीत का विशिष्ट और प्रमुख गायक बताया। इस अवसर पर अविनाश पशरीचा द्वारा कुमार गंधर्व के जीवन पर बनाया गया लघु वृत्तचित्र का प्रदर्शन भी किया गया। मुख्य वक्तव्य देते हुए लेखिका सुमंगला दामोदरन ने कहा कि प्रकृति और मनुष्य के चित्त के उतराव चढ़ाव की गायकी कुमार गंधर्व की गायकी है। कुमार गंधर्व का संगीत, घराने की अवधारणा से अलग एक विशिष्ट संगीत है, जबकि यह घराने की परंपरा के साथ विकसित हुई संगीत है। शिक्षक के रूप में कुमार गंधर्व ने किराना और आगरा घराने के तरीके से अपने संगीत को फैलाने का प्रयास किया। संगीत की महान विरासत और बड़े प्रतिमानों को छोड़कर उन्होंने (कुमार गन्धर्व ने) परम्परा, शास्त्रीयता और लोक के बारीकियों को संगीत की बहसों के केंद्र में ला दिया। संगीत में प्रतिरोध के तत्वों को बताते हुए सुमंगला दामोदरन ने अमृता प्रीतम के हीर का उदाहरण दिया कि कैसे उसे बहुत से संगीतकारों ने भैरवी और अहीर भैरवी में गाया। उन्होंने बताया कि भारतीय संगीत परम्परा में संगीत अक्सर भैरवी या भैरव परिवार के रागों द्वारा विस्थापन, अलगाव, शरणार्थी समस्या, उत्पीड़न और गहरी यादें (नाॅस्टेल्जिया के संदर्भ में) और नास्तिकता को विभिन्न तरीकों एवं संयोजनों के माध्यम से रेखांकित करता है। सुमंगला जी ने संगीत में कोमल स्वरों के इस्तेमाल होने वाले स्वरों की राजनीति को रेखांकित करते हुए कहा कि जो आमतौर पर भिन्नता के साथ कोमल स्वरों का प्रयोग है वह संगीत के क्षेत्र में एक दिलचस्प मामला पेश करते हैं, भले ही वह जानबूझ कर राजनीति नहीं कर रहा हो लेकिन वह एक किस्म की राजनीति बन सकता है। सुमंगला दामोदरन ने इप्टा का संदर्भ देते हुए संगीत में शब्दों एवं बंदिशों के चयन के मामले को संगीत के राजनीति का हिस्सा बताया। संगीत में स्वरों के उठान, गति, समझ इत्यादि सभी तत्वों को उन्होंने संगीत के राजनीति का साझेदार बताया। उन्होंने संगीत के अभिजात्यता, परम्परा, लोकग्राह्यता, प्रमाणिकता इत्यादि के बारे में बात करते हुए संगीतकारों के दायित्व की बात की। उन्होंने कहा कि संगीत एवं प्रदर्शनकारी माध्यमों का राजनीतिक रुपान्तरण इप्टा के रूप में हुआ। इप्टा के माध्यम से संगीत में एक राजनैतिक प्रतिपक्ष का निर्माण किया। अपने राजनैतिक गीतों के माध्यम से इप्टा ने अनेक राजनैतिक आन्दोलन को बढ़ावा देने का काम किया। संगीत और इतिहास के संदर्भ में अपनी बात रखते हुए उन्होंने कहा कि यह (संगीत) राजनीति में इतिहास और परम्परा का एक नया दृश्य लाता है, संगीत के माध्यम से इतिहास को संगीत और उसकी साहित्यिक सामग्री का उपयोग करके राष्ट्र और परम्परा के प्रश्नों पर विचार किया जा सकता है। सुमंगला दामोदरन ने अपने वक्तव्य को समटते हुए कहा कि मेरा मानना है कि हमें विस्तारित, रूपांतरित, क्रांतिकारी, और राजनैतिक रूप से संगीत को समझने के लिए संगीत की एक अनिवार्य समझ की आवश्यकता है। इस कार्यक्रम में शहर के विद्वतजन एवं संगीत-प्रेमी उपस्थित रहे।

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