ठाकुरगंज की रंगबाज़ फैमिली का क्या है राज और कैसा है उनका अंदाज़?
फिल्म के कलाकार : जिमी शेरगिल, सौरभ शुक्ला, माही गिल, सुप्रिया पिलगांवकर, नंदीश सिंह, प्रणति राय, पवन मल्होत्रा, सुधीर पांडे, यशपाल शर्मा, मुकेश तिवारी,
फिल्म के निर्देशक : मनोज के. झा
फिल्म के निर्माता : अजय कुमार सिंह
रेटिंग : 2/5
मनोज के.झा के निर्देशन में बनी फिल्म ‘फैमिली आफ ठाकुरगंज’ आज से सिनेमाघरों में लग चुकी है। यह एक पारिवारिक ड्रामा थ्रिलर है जो उत्तर भारत की पृष्ठभूमि पर आधारित है। जानते हैं कैसी है फिल्म…
फिल्म की कहानी :
फिल्म की शुरूआत उ.प्र. के ठाकुरगंज से होती है। यहां एक परिवार को दिखाया जाता है जिसमें मां-बाप और उनके दो बेटे हैं, परिवार बहुत ही गरीब है। परिवार में बड़ा बेटा नन्नू (जिम्मी शेरगिल) है जो बचपन से ही बहुत बदमाश है और छोटा बेटा मन्नू (नंदीश सिंह) है जो समझदार व सुलझा हुआ लड़का है। पिता की मौत के बाद मां (सुप्रिया पाठक) और भाई मन्नू की जिम्मेदारी नन्नू पर आ जाती है और वो गलत कामों में पड़ जाता है, एक दिन उसके हाथों से बड़ा अपराध हो जाता है तथा धीरे-धीरे वो कई अपराध करता है और देखते ही देखते वो छोटे शहर ठाकुरगंज का बाहुबली उर्फ नन्नू भैयाजी बन जाता है। वहीं छोटा भाई मन्नू पढ़-लिखकर प्रोफेसर बन जाता है और सच्चाई के रास्ते पर चलता है। दोनों भाइयों कि विचारधारा अलग होने के बावजूद दोनों में बहुत प्यार है और साथ ही साथ परिवार में एकता है। नन्नू की मां और पत्नी शरबती (माही गिल) रंगबाजी में नन्नू का साथ देते हैं यहां तक कि उनकी 8 साल कि बेटी भी स्कूल में दंबगई दिखाती है। नन्नू भइया के गुरु हैं सौरभ शुक्ला (बाबा साहिब) जो हमेशा नन्नू को अपराध जगत में बने रहने के लिए बढ़ावा और मार्गदर्शन देते रहते हैं। बाबा साहिब की छत्रछाया में ही वो अपने सारे गलत कामों को अंजमा देता है। एक दिन नन्नू के की ईमानदारी वाली सोच मन्नू को बदलकर रख देती है और उसे उसकी कीमत चुकानी पड़ती है। एक दिन कुछ ऐसा होता है कि मन्नू कि बात सुनकर जिससे नन्नू भइया का मन बदल जाता है और वो धीरे-धीरे अपने द्वारा किए गए गलत कामों को सुधारने लगता है उसमें आए इस बदलाव को बाबा साहिब और उनके जैसे लोगों को पसंद नहीं आती। इस बदलाव कि बड़ी भारी कीमत नन्नू भइया को चुकानी पड़ती है। आगे क्या होता है यह जानने के लिए आपको फिल्म देखनी पड़ेगी।
दबंग नन्नू भैया के किरदार में जिम्मी शेरगिल अच्छे लगे हैं लेकिन उनके किरदार को और अच्छे से लिखा जा सकता था। माही गिल बंदूक उठाकर दंबगई करती हुई अच्छी लगी हैं करती नजर आई हैं। छोटे पर्दे पर नंदीश को पहले देखा गया है इस फिल्म में हीरो के रूप में उन्हें दिखाया गया है लेकिन एक मंझे हुए हीरो के किरदार में जमने के लिए उन्हें थोड़ी और मेहनत करनी होती तभी वो छोटे पर्दे कि तरह बड़े पर्दे पर भी अपनी छाप छोड़ पाएंगे। प्रणति राय कि भूमिका बहुत ज़्यादा बड़ी नहीं है पर ठीकठाक है। सौरभ शुक्ला का किरदार काफी दमदार है, हमेशा कि तरह आप इस बार भी वो अपने अभिनय से दर्शकों पर अपनी छाप छोड़ते हैं। सुप्रिया पिलगांवकर का अंदाज़ काफी मनोरंजक लगा। मनोज पाहवा के पास फिल्म करने लायक कुछ खास नहीं था। अन्य किरदारों में मनोज तिवारी, यशपाल शर्मा, पवन मल्होत्रा, सुधीर पांडे, राज जुत्शी आदि सभी अपने-अपने किरदारों के हिसाब से ठीक है।
फिल्म की कहानी में कुछ दम नहीं है क्योंकि इसमें कुछ नयापन नहीं है। स्क्रीनप्ले भी काफी कमज़ोर है। कहीं-कहीं सीन अच्छे लिखे गए हैं जिसे देखने में मज़ा आता है। फिल्म के गाने कुछ खास नहीं है जिसे आप लम्बे समय तक गुनगुना पाएं।
फिल्म क्यों देखें :
यह टाइम पास फिल्म है इसे देखना न देखना आपके हाथ में है।