हलचल

ई-सिगरेट पर प्रतिबंध से दिल्ली में और बदतर हो जाएगी स्मोकिंग की समस्या

नई दिल्ली। हाल में हुए एक सर्वे में खुलासा हुआ है कि दिल्ली-एनसीआर में 15-50 वर्ष आयु वर्ग के हर तीन में से एक व्यक्ति धूम्रपान (स्मोकिंग) का आदी है और इससे भी ज्यादा चिंताजनक बात यह है कि धूम्रपान करने वालों में ज्यादातर 20 से 30 वर्ष के बीच की आयु के हैं। तम्बाकू के सेवन होने वाले नुकसान को कम करने का समर्थन करने वालों का कहना है कि दिल्ली सरकार को ऐसे मुश्किल वक्त में स्मोकर्स को इस जानलेवा आदत से छुटकारा दिलाने के लिए दूसरे विकल्पों पर विचार करना चाहिए और ई-सिगरेट जैसे कम नुकसानदेह विकल्पों पर प्रतिबंध लगाने से तम्बाकू से स्वास्थ्य के प्रति संकट बढ़ जाएगा।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने आम आदमी पार्टी (आप) सरकार को ई-सिगरेट की बिक्री और सेवन को विनियमित करने के मुद्दे पर तत्काल विचार करने के निर्देश दिए हैं। दिल्ली सरकार ने बीते साल अदालत में एक शपथ पत्र जमा करके संकेत दिए थे कि वह ई-सिगरेट की बिक्री पर प्रतिबंध लगाने पर विचार कर रही है।
नेशनल चेस्ट सेंटर, नारायणा, नई दिल्ली में सीनियर पल्मोनोलॉजिस्ट और डायरेक्टर डॉ. भरत गोपाल ने कहा, ‘सीओपीडी (क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिसीज) और अन्य धूम्रपान से संबंधित बीमारियां इतनी तेजी से बढ़ रही हैं कि जल्द ही सबसे ज्यादा मौत के मामले इन्हीं बीमारियों से सामने आएंगे। एक विकल्प चुनना और फिर पीछे मुड़कर नहीं देखना सही नहीं है, हालांकि इसे रोका जा सकता है।’ उन्होंने कहा, ‘मेरे कई मरीज इसे छोड़ना चाहते हैं, लेकिन धूम्रपान बंद करने के स्टैंडर्ड टूल्स के साथ ऐसा करने में नाकाम हो जाते हैं। क्या मेरे पास कम से कम उसके नुकसान को कम करने के लिए कोई विकल्प है?’
डॉ. गोपाल ने कहा, ‘ई-सिगरेट और नुकसान कम करने के दूसरे विकल्प वर्ष 2003 से ही उपलब्ध हैं और इनसे लाखों लोगों को धूम्रपान छोड़ने में मदद मिली है। ये उत्पाद तम्बाकू की लत के शारीरिक, मनोवैज्ञानिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और पहचान संबंधी पहलुओं को ध्यान में रखते हुए पुराने स्मोकर्स की जरूरतों को पूरा करते हैं। उनके लिए कई वैज्ञानिक प्रमाण उपलब्ध हैं, लेकिन हैरत की बात है कि हमारे भारतीय मरीजों को मौजूदा कानूनों के चलते इनसे दूर रखा गया है।’
डॉ. गोपाल ने कहा कि इसका सबसे अहम पहलू इसके सिगरेट जैसे होने के मिथक को तोड़ना है। यह ज्वलन की पीड़ा को दूर करता है, जो अहम बात है। उन्होंने कहा कि हमारे मरीजों के लिए जोखिम रने और स्वस्थ जीवन की ओर ले जाने के लिए सभी स्टेकहोल्डर्स को साथ बैठकर नीतियां बनानी चाहिए।
दिल्ली उच्च न्यायालय के एक वरिष्ठ वकील फार्रुख खान ने कहा, ‘ई-सिगरेट पर कोई भी नीति बनाने या किसी निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले सरकार को कंज्यूमर्स, डॉक्टर्स, हार्म रिडक्शन एडवोकेट्स आदि स्टेकहोल्डर्स से बात करनी चाहिए। सुरक्षित विकल्पों पर प्रतिबंध लगाने से नागरिक अपनी गरिमा के साथ जीने के मौलिक अधिकार से वंचित हो जाएंगे, जिसका उल्लेख संविधान के अनुच्छेद 21 में किया गया है। नियमों से सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि ये उत्पाद नाबालिगों की पहुंच से दूर हों।’
उन्होंने कहा, ‘प्रतिबंध अनुच्छेद 14 (जिसमें कानून के लिए सभी के समान होने का वर्णन करता है) के भी विरुद्ध है जो सिगरेट को छूट देता है, जबकि सिगरेट स्वास्थ्य के लिए ज्यादा हानिकारक है और यह दुनिया भर में तम्बाकू से संबंधित मौतों की सबसे बड़ी वजह है। प्रतिबंध से तम्बाकू उद्योग को ही मदद मिलेगी, न कि जनता के स्वास्थ्य को।’
तम्बाकू के सुरक्षित विकल्पों की वकालत करने वाली कंज्यूमर बॉडी एसोसिएशन ऑफ वैपर्स इंडिया के डायरेक्टर सम्राट चैधरी ने कहा, ‘इस बात के कई वैज्ञानिक प्रमाण हैं कि मामूली जोखिम के साथ ई-सिगरेट स्मोकिंग की तुलना में 95 प्रतिशत कम नुकसानदेह है। अमेरिका, सभी 28 यूरोपीय देशों, कनाडा, यूएई और न्यूजीलैंड सहित दुनिया के 65 देशों में इसके इस्तेमाल को वैध करार दिया जा चुका है। वहीं यूके अपने पब्लिक हैल्थ नेटवर्क के माध्यम से इसके प्रति जागरूकता बढ़ा रहा है। हमें उम्मीद है कि दिल्ली सरकार कंज्यूमर की पसंद और नागरिकों के स्वास्थ्य के प्रति जोखिम करने के अधिकार को देखते हुए प्रमाण पर आधारित विचारों को स्वीकार करेगी।’
चैधरी ने कहा कि इन विकल्पों पर प्रतिबंध से स्मोकिंग का संकट और बढ़ जाएगा। साथ ही इस जानलेवा लत को दूर करने के विकल्प खासे कम हो जाएंगे, जिससे दुनिया में हर साल 80 लाख और भारत में 10 लाख से ज्यादा लोग अपनी जान गंवा देते हैं।

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