संपादकीय

एकांकी वृद्धों की सुध कौन लेगा?

-अविनाश राय खन्ना,
उपसभापति (रेडक्रास सोसाईटी)

किसी भी माता-पिता के लिए सन्तान सबसे बड़ी सम्पत्ति मानी जाती है। इसी प्रकार बच्चों के लिए माता-पिता की सेवा ईश्वर की सेवा मानी गई है। परन्तु आज के भागते युग में बच्चे अपने कैरियर को लक्ष्य बनाकर माता-पिता सहित शेष परिवार को भूलने लगे हैं। हाल ही में पंजाब के होशियारपुर जिले की एक 62 वर्षीय महिला ने अपने स्वर्गीय पति की तीसरी पुण्य तिथि पर स्वयं भी आत्महत्या कर ली। वह होशियारपुर में अकेली रह रही थी, क्योंकि उनकी दो विवाहित बेटियाँ और एक पुत्र कनाडा में जाकर बस गये थे। यह एक अकेला ऐसा परिवार नहीं था जहाँ वृद्धावस्था में माता-पिता दोनों को या एक की मृत्यु होने पर दूसरे को एकांकी जीवन जीने के लिए मजबूर होना पड़ा हो। लाॅकडाउन के प्रथम दौर में ऐसे ही एकांकी वृद्ध लोगों की तरफ जब मेरा ध्यान गया तो मैंने तुरन्त एक लेख के माध्यम से यह आह्वान किया था कि जहाँ कहीं भी ऐसे एकांकी वृद्ध रह रहे हों उनकी सहायता के लिए तत्पर रहना प्रत्येक पड़ोसी का प्रमुख दायित्व होना चाहिए। इस लेख की प्रतिक्रिया के रूप में मेरे पास सैकड़ों ऐसे महानुभावों के फोन आये जिनकी छोटी-मोटी आवश्यकताएँ पूरी करने वाला भी कोई नहीं था। मैंने रेडक्रास सोसाइटी, राजनीतिक तथा सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ-साथ प्रशासन और पुलिस के माध्यम से भी ऐसे सभी लोगों के कष्टों का निवारण करने का हर सम्भव प्रयास किया। किसी का कष्ट था कि दूर बैठे पुत्र या पुत्री को उनके पास आने की अनुमति दिलवाई जाये, किसी को औषधियाँ प्राप्त करने में समस्या थी तो किसी को भोजन की। यहाँ तक कि एक वृद्ध का टूटा हुआ चश्मा ठीक कराने की समस्या का समाधान भी मुझे कार्यकर्ताओं के माध्यम से करवाना पड़ा।
एकांकी बुजुर्गों के प्रति दायित्व का अभिप्राय केवल यह नहीं है कि उनके कहने पर या कोई विशेष आवश्यकता पड़ने पर ही उनकी सहायता के लिए हम आगे आयें, बल्कि वास्तविक जिम्मेदारी यह होनी चाहिए कि हम प्रतिदिन प्रातः-सायं, उठते-बैठते किसी न किसी बहाने उनको अपने परिवार का अभिन्न अंग बनाकर उन्हें अपने हर सुख-दुःख में शामिल करें और उनके मन में दबे एकांकी भाव को पूरी तरह से समाप्त करने का प्रयास करें। ऐसे वृद्ध पुरुषों के साथ हर समय का उठना-बैठना केवल पड़ोसी ही निभा सकते हैं। यदि हमारा सारा समाज इस प्रकार के पड़ोसीपन के दायित्व को समझने लगें तो उन बच्चों को भी स्वाभाविक रूप से कुछ शर्म अवश्य ही महसूस होगी जो माँ-बाप का त्याग करके अपने कैरियर की उड़ान भरते फिरते हैं। किसी का कैरियर कितना ही महत्त्वपूर्ण और कीमती क्यों न हो, माता-पिता के समान और ईश्वर के तुल्य दो जीवों को अपने साथ रखना कदापि कठिन नहीं हो सकता। ऐसा न करने वाले तथाकथित प्रगतिशील लोग जो माता-पिता को ठुकरा सकते हैं वे तो इस सारी सृष्टि की उत्पत्तिकर्ता अर्थात् परमात्मा की शक्ति को भी कहाँ मानते होंगे। कुल मिलाकर इससे बड़ी कृतघ्नता कोई नहीं हो सकती। 511 धाराओं की भारतीय दण्ड संहिता में सैकड़ों प्रकार के अपराध सूचीबद्ध हैं। किसी को शारीरिक हानि पहुँचाना, आर्थिक हानि का कारण बनना या किसी के मान-सम्मान को ठेस पहुँचाना आदि अपराधों के सामने अपने उस माता-पिता को ठुकरा देना जिनसे हमें यह जीवन मिला है, जिन्होंने बाल्यावस्था की हर सर्दी-गर्मी से बचाकर हमें उंगली पकड़कर चलना सिखाया और युवावस्था की सड़क तक हमें लेकर आये और आज जिनके कारण ही हम कैरियर की दौड़ में अग्रसर हैं, ऐसे उत्पत्तिकर्ता एवं पालनकर्ता माता-पिता को वृद्धावस्था के अनेकों प्रकार के झोंके सहने के लिए अकेले छोड़ देना तो दुनिया का सबसे बड़ा अपराध माना जाना चाहिए। यह सबसे बड़ी हत्या, सबसे बड़ा विश्वासघात और सबसे बड़ी मानहानि के रूप में समझा जाना चाहिए। ऐसे लोगों को पूरे समाज की तरफ से एक स्वर में प्रताड़ना मिलनी चाहिए। ऐसे लोगों का पूर्ण सामाजिक बहिष्कार होना चाहिए। परन्तु जब तक हमारा समाज इस बड़े आन्दोलनात्मक विचार के लिए तैयार न हो तब तक न्यूनतम इतना तो सुनिश्चित करना ही चाहिए कि जहाँ कहीं भी एकांकी वृद्ध रह रहे हों उन्हें आस-पड़ोस से बिल्कुल सन्तानवत संरक्षण, सेवा और सहायता प्राप्त होनी चाहिए। कुछ समय पूर्व मुझे ज्वाला देवी मंदिर के नजदीक एक गाँव के लोगों से मिलने का अवसर मिला तो पता लगा कि उस गाँव के किसी भी घर में जब कोई बाहर से मेहमान आता है तो गाँव के सभी परिवार एक-एक कटोरी सब्जी लेकर उस मेहमान के सामने प्रस्तुत करते हैं। यह गाँव के अन्दर भाईचारे की एक अनूठी मिसाल है। किसी भी गाँव या शहर में एकांकी वृद्धों के साथ हम इसी भावना को दिखा सकते हैं जिससे उन्हें कभी भी एकांकीपन का एहसास ही नहीं होगा।
सामाजिक दायित्व के साथ-साथ सरकारी तथा गैर-सरकारी संस्थाओं के द्वारा भी इस क्षेत्र में बहुत बड़ी पहल की जा सकती है। वैसे इस सम्बन्ध में वरिष्ठ नागरिकों की सुरक्षा के लिए भारत की संसद द्वारा भी एक कानून बनाकर पुलिस और प्रशासन को यह विशेष जिम्मेदारी सौंपी है कि अपने-अपने क्षेत्र में रहने वाले वरिष्ठ नागरिकों को सूचीबद्ध करें तथा आवश्यकता पड़ने पर उनकी सहायता का प्रयास करें। परन्तु धरातल पर इस कानून का कोई विशेष प्रभाव देखने को नहीं मिल रहा है। स्थानीय पुलिस स्टेशनों का यह सख्त दायित्व निर्धारित होना चाहिए कि वे पूरी सहानुभूति के साथ समाज के सभी वरिष्ठ नागरिकों और विशेष रूप से एकांकी वृद्धों के साथ निरन्तर मेल-जोल के भिन्न-भिन्न कार्यक्रम निर्धारित करें। पुलिस की इस पहल से आस-पड़ोस के लोगों में भी एकांकी वृद्धों के प्रति सहानुभूति की एक विशेष लहर पैदा की जा सकेगी। पुलिस की सहायता के लिए हर क्षेत्र के सभी गैर-सरकारी संस्थाओं और विशेष रूप से मंदिरों और गुरुद्वारों जैसे धार्मिक संस्थाओं को भी इस विषय में आगे बढ़कर दायित्व संभालना चाहिए। सरकारों द्वारा सभी वरिष्ठ नागरिकों को वृद्धावस्था पेंशन का अधिकार दिया गया है, परन्तु केवल पेंशन राशि भावनात्मक कमियों को पूरा नहीं कर सकती। इस प्रकार तो देश-विदेश में दूर बसे पुत्र-पुत्रियाँ भी अपने एकांकी माता-पिता को कुछ न कुछ धनराशि भेजते ही होंगे, परन्तु केवल धनराशि से एकांकीपन दूर नहीं हो जाता। यदि ऐसा होता तो होशियारपुर की इस 62 वर्षीय माँ को आत्महत्या जैसा कदम न उठाना पड़ता। एकांकीपन को दूर करने के लिए सरकारों को गैर-सरकारी संस्थाओं की सहायता से विशेष प्रयास प्रारम्भ करने चाहिए। इसमें निःसंदेह पड़ोसियों की विशेष भूमिका हो सकती है। यह भूमिका भारतीय संस्कृति के मूल्यों के अनुरूप ही होगी। इस घटना को लेकर मैंने केन्द्रीय सामाजिक कल्याण मंत्रालय तथा पंजाब के मुख्यमंत्री को पत्र के द्वारा यह निवेदन किया है कि एकांकी वृद्ध नागरिकों के लिए कोई ठोस उपाय करने चाहिए।
भारतीय रेडक्रास सोसाइटी की तरफ से भी मैने यह विशेष प्रयास किया है कि केन्द्र सरकार के सामाजिक कल्याण मंत्रालय के सहयोग से एकांकी वृद्ध नागरिकों के संरक्षण एवं हर सम्भव सहायता के लिए एक राष्ट्रव्यापी नेटवर्क स्थापित किया जाये। रेडक्रास सोसाइटी की इकाईयाँ भारत के प्रत्येक राज्य में स्थापित हैं। यह राज्य इकाईयाँ आगे जिला स्तरीय इकाईयाँ भी स्थापित करती हैं। मानवीय सेवा कार्यों में जुटे इस संस्थान की क्षमताओं का लाभ उठाकर एकांकी वृद्ध नागरिकों के लिए एक आशा की किरण पैदा की जा सकती है। मेरा प्रयास यह भी होगा कि केन्द्र सरकार को आग्रह करके भारत के प्रत्येक जिले में एकांकी वृद्ध नागरिकों की सहायता के लिए एक विशेष टोल फ्री (हेल्पलाइन) नम्बर निर्धारित करवाया जाये जो ऐसे महानुभावों को एक परिवार रूप में तत्कार सहायता उपलब्ध करवा सके।

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