संपादकीय

मतलब का गठबंधन

-रमेश सर्राफ धमोरा
स्वतंत्र पत्रकार
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने केन्द्र की एनडीए नीत भाजपा सरकार का मुकाबला करने के लिये 20 राजनीतिक दलों के नेताओं को भोजन पर आमंत्रित कर केन्द्र सरकार के खिलाफ एक नया राजनीतिक मोर्चा खड़ा करने का प्रयास शुरू किया है। सोनिया गांधी की इस डिनर डिप्लोमेसी के क्या परिणाम निकलेंगें ये तो आगे जाकर ही पता चल पायेगा। मगर 20 पार्टियों के नेताओं का सोनिया गांधी के बुलावे पर उनके घर आने से भाजपा के माथे पर जरूर बल पड़ गया है।
सोनिया गांधी के घर डिनर डिप्लोमेसी में शामिल कई दल व उनके नेता तो ऐसे हैं जो जनता में अपना प्रभाव खो चुके हैं। लोकदल के अजीत सिंह की पार्टी के पास उत्तर प्रदेश में सिर्फ एक विधायक है। लोकदल को 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में 81 सीटो पर चुनाव लडने पर 181704 वोट मिले थे जो कुल मतदान का 0.20 प्रतिशत थे। झारखण्ड विकास मोर्चा के बाबूलाल मरान्डी के पास मात्र दो विधायक हैं। हिन्दुस्तान अवाम मोर्चा के जीतनराम माझी स्वंय भू नेता है। नवगठित भारतीय ट्राईबल पार्टी के नेता शरद यादव अपनी राज्यसभा सीट गंवाने के बाद इस जुगाड़ में लगे रहते हैं कि किसी तरह फिर से राज्यसभा की सदस्यता मिले। देश में हो रहे 58 सीटो पर राज्य सभा चुनाव में शरद यादव को लालूयादव, कांग्रेस सहित किसी दल ने भाव नहीं दिया। वो अन्त तक बुलावे का इन्तजार करते रह गये।
माकपा की तरफ से मोहम्मद सलीम जरूर भोज में शामिल हुये लेकिन उनकी पार्टी में कांग्रेस से गठबंधन करने को लेकर जबरदस्त तनाव चल रहा है। गत दिनो कोलकाता के पार्टी सम्मेलन में कांग्रेस से गठबंधन की वकालत करने वाले पार्टी महासचिव प्रकाश करात गुट को 55 के मुकाबल 31 मत ही मिले थे। वैसे भी बंगाल के बाद त्रिपुरा की हार माकपा के लिये किसी सदमे से कम नहीं हैं। भाकपा जनता में अप्रसांगिक हो चुकी है। भाकपा का देश में कहीे कोई जनाधार नहीं बचा हैं। प्राय ऐसे भोज में शामिल होकर भाकपा नेता मिडिया की सुर्खियों में बने रहकर अपनी पार्टी की सक्रियता का अहसास कराते रहते हैं।
जनता दल सेक्यूलर के नेता पूर्व प्रधानमंत्री देवेगौड़ा ने अपनी पार्टी के नेता डाॅ. कुपेन्द्र रेड्डी को सोनिया गांधी के भोज में जरूर भेजा मगर अगले महिने होने जा रहे कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के सामने वो तालठोक कर खड़े हुये हैं। वहां देवेगौड़ा ने सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी को हराने के लिये मायावती की बहुजन समाज पार्टी से भी गठबंधन किया है। देवेगौड़ा ने प्रण किया है कि वो कर्नाटक में कांग्रेस के मुख्यमंत्री सिद्वैरमैया को हर हाल में हरा कर ही दम लेंगें। केरल कांग्रेस मणी गुट, रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी, इण्डियन यूनियन मुस्लिम लीग केरल तक सीमित हैं। केरल कांग्रेस मणी व इण्डियन यूनियन मुस्लिम लीग का तो केरल में हमेशा कांग्रेस के साथ वामपंथियो के खिलाफ मोर्चा बना रहता है। लालू प्रसाद यादव की राष्ट्रीय जनता दल, बहुजन समाज पार्टी, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, समाजवादी पार्टी, द्रुमक, झारखण्ड मुक्ति मोर्चा, त्रूणमूल कांग्रेस, नेशनल कांफे्रस, आल इन्डिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट भी इस भोज में शामिल हुयी थी।
आल इण्डिया अन्नाद्रुमक, तेलंगाना राष्ट्रसमिति, बीजू जनतादल, आप, वाईएसआर कांग्रेस, हरियाणा के चैटाला का लोकदल जैसे दलो के नेताओ ने सोनिया गांधी के भोज से दूरी बनायी रखी। वामपंथियो के सहयोगी दल फारवर्ड ब्लाक के नेता भी इस भोज में शामिल नहीं हुये। सोनिया गांधी के डिनर में शामिल कई नेता तो ऐसे है जो यहां तो शामिल हो गये मगर अपने- अपने प्रान्तो में एक दूसरे के खिलाफ तने खड़े रहते हैं। बंगाल में ममता बनर्जी की त्रूणमल कांग्रेस की वामपंथियो से सीधी टक्कर रहती है। वहां त्रूणमल कांग्रेस व वामदल कभी एक साथ नहीं आ सकते हैं। उत्तर प्रदेश में सपा, बसपा का लम्बा साथ बना रहना मुश्किल लगता है। हाल ही के उपचुनावो में दोना दल जरूर एक साथ आये हैं मगर यह साथ कितने दिन निभता है इसको लेकर अभी से कयास लगाये जाने लगे हैं।
झारखण्ड में हेमेन्त सोरेन व बाबूलाल मराण्डी के दलो की दूरी से सभी वाफिक हैं। जहां हेमेन्त सोरेन होंगे वहां से बाबूलाल मराण्डी दूरी बनाकर रखेंगें। केरल, बंगाल में तो कांग्रेस की वामपंथी दलो से ही लड़ाई होती है। असम में आल इन्डिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट के नेता बदरूदीन अजमल ने गत विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से गठबंधन करने से इन्कार कर दिया था। महाराष्ट्र विधानसभा के पिछले चुनाव में शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ने कांग्रेस से गठबंधन नहीं कर अपने बूते चुनाव लड़ा था। शरद पवार स्वंय प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं व अपनी इच्छा का वो अक्सर इजहार भी करते रहते हैं। इसी आशय को लेकर कुछ दिनो पूर्व शरद पवार ने भी विपक्षी दलो के नेताओं की एक ऐसी ही मिटिंग का आयोजन किया था। जिसमें भी इनमें से अधिकांश दलो के नेता शामिल हुये थे।
बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की नजर भी प्रधानमंत्री की कुर्सी पर है। वो कभी शरद पवार को हवा देती है तो कभी तेलंगाना के मुख्यमंत्री के.चन्द्रशेखर राव की पीठ थपथपाती है। ममता बनर्जी राहुल गांधी को नेता कभी नहीं मानेगी। राहुल गांधी की तुलना में ममता बनर्जी शरद पवार या अन्य किसी के साथ जाने से गुरेज नहीं करेगी। बसपा सुप्रिमो मायावती का सपना है कि एकबार कोई दलित देश के प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठे। मायावती का मानना है कि वो दलित महिला है इस कारण प्रधानमंत्री की कुर्सी पर पहला हक उसी का है।
सोनिया गांधी को इस बात की चिन्ता सताती रहती है कि उन्होने राहुल गांधी को कांग्रेस अध्यक्ष तो बना दिया है मगर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के मुकाबल वे कहीं नहीं ठहरते हैं। राहुल गांधी अपने काम करने का तरीका बदल रहें है, उसके उपरान्त भी देश की जनता उनको गम्भीरता से नहीं ले रही है। 2019 के लोकसभा चुनाव में मात्र एक साल का समय बच गया है मगर कांग्रेस को कहीं से अपनी वापसी की सम्भावना नजर नहीं आ रही है। ऐसे में सोनिया गांधी चाहती है कि यूपीए एक व दो की तरह एक बार फिर नये सिरे से भाजपा विरोधी दलो को साथ लेकर काग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के नेतृत्व में यूपीए तीन की सरकार वनायी जाये।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को हटाकर 2019 में राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाने की सोनिया गांधी की सोच सफल होती है या नहीं यह तो समय ही बतायेगा। बहरहाल दिल्ली में अभी कई ऐसे मोर्चे बनेगें व टूटेगें। मोदी विरोधी अधिकांश नेताओं की नजर उनकी कुर्सी पर टिकी हुयी है। इस कारण ऐसे मतलब के गठबंधन शायद ही सफल हो पाये फिलहाल तो ऐसी ही सम्भावना नजर आ रही है।

 

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