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पारस हॉस्पिटल गुडगांव ने किया विश्व रुमटॉलजी फोरम का आयोजन-5वाँ इंडो-यूके रुमेटॉलजी सम्मिट

गुडगांव। विश्व रुमेटिक फोरम में भारत सहित दुनिया भर के 400 से भी अधिक प्रतिनिधि एकत्र शामिल हुए- यह इंडो-यूके रुमेटोलॉजी सम्मिट (2019), डॉक्टरोँ, ट्रेनी और फैकल्टी सदस्यों के लिए आयोजित हुआ दो दिवसीय वैज्ञानिक कार्यक्रम था, जहाँ ऐसी बीमारियों पर चर्चा की गइजो बेहद आम होने के बावजूद सामने नहीं आ पाती हैं, जैसे कि स्जोग्रेन सिंड्रोम, स्पॉन्डिलोआर्थराइटिस (एसपीए), इंटेस्टाइनल लंग डिजीज (आईएलडी) और मायोसाइटिस। इसके साथ ही, विशेषज्ञ एक चार्ट रोडमैप भी तैयार करेंगे जिसके जरिए आम लोगों कोबेहतर ढंग से इन बीमारियों के बारे मे जागरूक किया जा सके।
जिन प्रमुख लोगोँ के इस कॉन्फ्रेंस में हिस्सा लिया, उनमें शामिल हैं डॉ एलिजाबेथ प्राइस, प्रेसिडेंट, द ब्रिटिश सोसायटी फॉर रुमेटॉलजी (बीएसआर), प्रो. जर्गेन ब्राउन, मेडिकल डायरेक्टर, रुमाजेंट्रम, रुहार्जेबिट, हेर्न, जर्मनीय प्रोफेसर कार्ल जेफनी, कंसल्टेंटरुमेटॉलॉजिस्ट एवम रिसर्च लीड, नॉर्फोक एंड नॉर्विक यूनिवर्सिटी टीचिंग हॉस्पिटल, यूके और डॉ. हर्षा गुनावर्देना, कंसल्टेंट रुमेटोलॉजिस्ट एवम ऑनरेरी सीनियर लेक्चरर, नॉर्थ ब्रिस्टल एनएचएस ट्रस्ट एंड यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिस्टल।
पारस हॉस्पिटल, गुडगांव के (डेजिग्नेशन) डॉ. इंद्रजीत अग्रवाल ने कहा कि, “आमतौर पर भारत में रुमेटिक बीमारियोँ को लेकर जागरूकता का अभाव है और यहाँ प्रशिक्षित रुमेटोलॉजिस्ट की संख्या भी काफी कम है। इनमेँ से अधिकतर बीमारियाँ दीर्घकालिक होती हैं, जिसके परिणाम काफी खतरनाक होते हैं और वक्त के साथ यह जानलेवा भी बन जाती हैं। इस कार्यक्रम के दौरान हम दुनिया भर के विशेषज्ञोँ के जरिए उन जटिलताओँ के बारे में अधिक जान पाएं, जिनके सम्बंध में कम जानकारी उपलब्ध है और साथ ही इनके इलाज के बेहतरीन तरीकों से भी अवगतहुए “
स्जोग्रेन डिजीज भी उन प्रमुख बीमारियोँ में शामिल है जिस पर कार्यक्रम में चर्चाहुईयह एक ऐसी समस्या है जिसकी जांच अक्सर नहीं हो पाती है। इस बीमारी के असर से मरीज को मुँह व आंख में रूखापन, त्वचा पर रैशेज, जोडोँ में दर्द, फेफडे, किडनी और नर्व सम्बंधी समस्याएँ महसूस होती हैं। सम्मिट के पहले दिन युनाइटेड किंगडम से आए डॉ. मिशेल बॉम्बरडियरी और डॉ. एलिजाबेथ प्राइस स्जोग्रेन डिजीज के विभिन्न पहलुओँ पर चर्चा हुई, विशेषज्ञ स्पॉन्डिलोआर्थराइटिस (एसपीए) के बारे में भी चर्चाहुईजो कि अपेक्षाकृत एक आम बीमारी है जिससे आमतौर पर युवा पुरुष प्रभावित होते हैं जिन्हेँ कमर के निचले हिस्से में दर्द और पैरोँ के जोडोँ में दर्द का एहसास होता है। ये बीमारियाँ शरीर के अन्य हिस्सोँ जैसे कि आंख, आंतोँ और त्वचा आदि को भी प्रभावित कर सकती हैं और एसपीए के साथ सोरायसिस जैसी त्वचा की बीमारियाँ और इंफ्लेमेटरी बाउल डिजीज भी प्रभावित कर सकती है। जर्मनी से आए डॉ. जर्गन ब्राउन और यूके के डॉ. कार्ल जेफनी नेइस बीमारी के विभिन्न पहलुओँ पर चर्चा करी।
अधिकतर रुमेटिक बीमारियाँ अपने प्रभाव के दौरान फेफडों को भी प्रभावित कर सकती हैं, जिसे इंटरस्टीशियल लंग डिजीज (आईएलडी) के नाम से जाना जाता है, जिसमेँ फेफडोँ को नुकसान पहुंचता है। सम्मिट के दूसरे दिन, यूके के डॉ. हर्षा गुनावर्देना आईएलडी मरीजों की जांच और प्रबंधन के बारे में चर्चा हुई, जिसमेँ मरीज के फेफडोँ को स्थायी नुकसान और उसे मृत्यु के खतरे से बचाने के लिए शुरुआती दौर में जांच और इलाज बेहद जरूरी होता है। इंफ्लेमेटरी मायोसाइटिस, जो कि एक ऐसी स्थिति है जिसमेँ शरीर की सभी मांसपेशियाँ प्रभावित होती हैं, मांसपेशियोँ की कमजोरी का कारण बन सकता है जिससे मरीज की गतिशीलता प्रभावित होती है और कई बार तो यह श्वसन सम्बंधी मांसपेशियोँ को भी प्रभाव में ले लेती है और ऐसे में मरीज को कृत्रिम विभिन्न प्रकार के जांच और इलाज के विकल्पोँ के बारे में चर्चा करेंगे। भारत के सीनियर रुमेटोलॉजिस्ट भी रुमेटिक बीमारियोँ के सम्बंध में अपने अनुभव बांटें।
पारस हॉस्पिटल गुडगांव देश के उन अग्रणी स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओँ में शामिल है जहाँ न्युरोसाइंसेज, कार्डियोलॉजी, ऑर्थोपेडिक्स, नेफ्रोलॉजी, गैस्ट्रोइंटेरोलॉजी और क्रिटिकल केयर की बेहतरीन सुविधाएँ उपलब्ध हैं।

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