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वोडाफोन आइडिया के एंप्लॉयीज के सामने जॉब सिक्यॉरिटी की चिंता

नई दिल्ली/मुंबई। कस्टमर्स की संख्या के लिहाज से देश की सबसे बड़ी टेलिकॉम कंपनी वोडाफोन आइडिया को मर्जर के बाद एक बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। यह चुनौती एंप्लॉयीज का मनोबल बरकरार रखने से जुड़ी है। वोडाफोन और आइडिया के मर्जर से बनी वोडाफोन आइडिया के एक सीनियर एंप्लॉयी ने बताया, ‘मनोबल काफी कमजोर है। हमें यह संदेश मिल रहा है कि प्रत्येक व्यक्ति की नौकरी खतरे में है, जिससे परफॉर्मेंस पर असर पड़ रहा है।’
ईटी ने वोडाफोन आइडिया के 14 एंप्लॉयीज और कंसल्टेंट्स से कंपनी के माहौल के बारे में बात की। इन सभी ने अपना नाम जाहिर न करने की शर्त पर जानकारी दी। अगस्त 2018 में मर्जर से पहले वोडाफोन आइडिया ने 4,000-5,000 एंप्लॉयीज की छंटनी की थी। कंपनी के मौजूदा एंप्लॉयीज की संख्या लगभग 12,500 है। मर्जर से पहले दोनों कंपनियों के एंप्लॉयीज की संयुक्त संख्या 17,000 से अधिक थी। मर्जर के बाद अपनी जॉब बरकरार रखने में सफल रहे एक मिड-लेवल एंप्लॉयी ने कहा, श्प्रत्येक दिन हम ऑफिस और पिंक स्लिप के बारे में सुनने के लिए आते हैं।श् वोडाफोन आइडिया के सीईओ बालेश शर्मा ने कंपनी के मौजूदा एंप्लॉयीज की संख्या और छंटनी के बारे में कुछ नहीं बताया। हालांकि, उनका कहना था कि दोनों कंपनियों का इंटीग्रेशन ठीक चल रहा है।
शर्मा ने कहा कि कंपनी ने मर्जर की घोषणा के साथ ही हायरिंग रोक दी थी। इस महीने से हायरिंग दोबारा शुरू की गई है, लेकिन यह केवल इंटरनल एंप्लॉयीज के लिए है। उन्होंने बताया, ‘पहले दिन से हम इसे लेकर स्पष्ट थे कि इस मर्जर और इंटीग्रेशन की सफलता एंप्लॉयीज पर निर्भर करेगी। हमें यह पता था कि दोनों कंपनियों की संस्कृति में अंतर हो सकते हैं।’
हालांकि, वोडाफोन आइडिया के एंप्लॉयीज और कंसल्टेंट्स से ईटी की बातचीत में यह संकेत मिला कि एंप्लॉयीज के लिए इंटीग्रेशन का प्रोसेस तनावपूर्ण है। इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस, हैदराबाद में प्रोफेसर कविल रामचंद्रन ने कहा कि दोनों कंपनियों समान मार्केट में बिजनस के लिए प्रतिस्पर्धा कर रही थी और उनकी संस्कृतियां भी अलग थी। उनका कहना था, ‘एंप्लॉयीज अपनी पैरेंट कंपनी या जिस टीम के साथ उन्होंने कार्य किया है उसके करीब महसूस करेंगे।’
कंपनी के एक सीनियर एंप्लॉयी का कहना था, ‘एंप्लॉयीज की वफादारी अपनी पैरेंट कंपनियों के साथ बरकरार है। वे ऐसे स्तर पर नहीं पहुंचे हैं जहां वे नए बॉस को वास्तव में अपने बॉस मानें।’ हालांकि, शर्मा ने कहा कि एंप्लॉयीज एक साथ अच्छा कार्य कर रहे हैं। दोनों कंपनियों के सैलरी लेवल में भी अंतर था। इन कंपनियों के खर्च करने के तरीके भी अलग थे। वोडाफोन मल्टीनैशनल कंपनी होने के कारण अधिक खर्च करती थी, जबकि आइडिया खर्च पर नियंत्रण रखने पर ध्यान देती थी।

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