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माउंट एवरेस्ट फतह करने वाली पर्वतारोही बलजीत कौर को उनके एवेरेस्ट विजय के लिए रॉडिक कंसल्टेंट ने किया सम्मानित

नई दिल्ली। कोई इंसान जब सपने देखता है तो उसे पूरा करने के लिए जुट जाता है और ऐसा कहा जाता है कि यदि आप सच्चे मन से कोशिश कर रहे हैं तो सपने भी पुरे होते हैं। यह उपरोक्त कथन सभी के लिए है लेकिन एक ऐसे समाज में जहाँ स्त्री-पुरुष में भेद किया जाता हो और वहां एक लड़की एक ऐसा सपना देखे जो असंभव लगे, फिर भी उसको पूरा करने के लिए वो पूरे मन से लग जाये और अपने सपने को जी ले तो इसे चमत्कार ही कहते हैं। जी हाँ, हिमाचल के एक ऐसे ही गाँव की लड़की बलजीत कौर, जिसका परिवार खेती पर निर्भर है और आर्थिक स्थिति ऐसी है की दो वक़्त की रोटी का जुगाड़ हो सके, यदि ऐसे परिवार की लड़की एवेरेस्ट जैसे विश्व की सबसे ऊँची चोटी को फतह करने का ख्वाब देखे और यूज़ पूरा करे तो इसे एक चमत्कार ही कहेंगे। पर्वतारोही और एथलीट बलजीत कौर जब दुनिया की सबसे ऊँची चोटी पर 21 मई 2022 को तिरंगा झंडा लहराया तो उस माइनस डिग्री मौसम में उनके आँखों में ख़ुशी के गर्म आंशु थे और खुद पर भरोसा ही नहीं कर पा रही थीं की उन्होंने यह कर दिखाया। कॉलेज टाइम में एनसीसी के ग्रुप सिलेक्शन के बाद पर्वतारोही बनने का सपना और हजारों रिजेक्शन के बाद भी एवरेस्ट पर विजय पाना किसी सपने के सच होने जैसा ही है।
एवरेस्ट पर तिरंगा झंडा फहराने के बाद रॉडिक कंसलटेंट ने पर्वतारोही बलजीत कौर को उनके एवेरेस्ट विजय के लिए सम्मानित किया। रॉडिक ने उनके पर्वतारोही बनने के सपने को पंख दिया, मिस कौर ने उनके सभी कर्मचारियों से अपने अनुभव साझा करते हुए कहा की उन्हें आम लड़कियों की तरह पढ़ना और किसी नौकरी, विशेष रूप से सेना में जाना ही था, और ऐसा इसलिए भी है की निम्न मध्यमवर्गीय परिवार में पढ़ना और अपने घर को चलाने में सहयोग करना उद्देश्य होता है और इसके लिए नौकरी पहली प्राथमिकता भी होती है। बलजीत ने भी यही किया लेकिन नौकरी के कई प्रयासों में वो असफल रहीं एवं ट्यूशन इत्यादि के माध्यम से अपने खर्च उठाने की कोशिश करती रहीं। इसी बीच उन्हें कॉलेज में एनसीसी के माध्यम से एक ऐसे ग्रुप में चुना गया जिसमें पर्वतारोहण के बारे में जानना और चढ़ाई करना था। यही वह समय था जब बलजीत ने बड़ा सपना देखना शुरू किया और खुद को पहाड़ों के लिए तैयार करना शुरू कर दिया। चूँकि पर्वत की चढ़ाई किसी भी तरीके से आसान नहीं है, ना शारीरिक रूप से और ना ही आर्थिक रूप से। उन्होंने यहाँ वहां कई लोगों से मदद मांगी, हजारों लोगों को ख़त लिखे लेकिन किसी ने उनके ख़त का कोई जबाव नहीं दिया। एक दिन अचानक उनके पास रॉडिक कंसल्टेंट के राजकुमार जी का फ़ोन गया और उन्होंने उनके सपनों को पूरा करने के लिए सहयोग करने की बात कही। जब कोई इंसान बहुत अपनी आशाएं छोड़ देता है और अचानक उन्हें कहीं से कोई आश्वासन मिले तो एक बार फिर उम्मीद जगती है। बलजीत कौर को रॉडिक ने एक उम्मीद दी और उसको पूरा करने के लिए सहयोग किया जिससे बलजीत कौर न सिर्फ एवेरेस्ट बल्कि धौलागिरी, अन्नपूर्णा, कंचनजंघा और ऐसे कई पर्वत पर चढ़ाई करके अपने सपनों को जीया।
अपने चढ़ाई के अनुभव में उन्होंने यह भी बताया की जब आप आगे बढ़ते हैं तो उसके पीछे कई लोगों का सहयोग होता है जिसे आप नहीं जानते लेकिन सबको धन्यवाद करते चलिए। अपने साथ के लोगों को उत्साहित करते रहिये और उनके काम की सराहना करते रहिये क्योंकि आप भले नेतृत्व कर रहे हैं लेकिन कोई भी काम अकेले नहीं होता।
बलजीत कौर के सपनों को उड़ान देने के लिए रॉडिक कंसल्टेंट्स ने सपोर्ट किया। माउंट एवेरेस्ट, हिमालय पर्वतमाला की दुनिया की सबसे ऊँची चोटी है, जिसकी ऊँचाई 8848.86 मीटर है। दुनियां के सभी पर्वतारोहियों का यह सपना होता है की वह अपने जीवनकाल में एक बार एवरेस्ट पर जरुर चढ़ें। बलजीत कौर ने यह चढ़ाई मिन्गमा शेरपा की देखरेख में पूरी कीं।
इस अवसर पर रॉडिक कंसल्टेंट्स के चेयरमैन एवं मैनेजिंग डायरेक्टर श्री राजकुमार ने कहा कि “बलजीत के अन्दर एक जुनून दिखा, उनके अन्दर कुछ अलग और बड़ा करने की एक सोच रही। अपनी पारिवारिक परिस्थिति को भी उन्होंने अपने सपनों के बीच नहीं आने दिया। उनकी यात्रा और उनके मिशन का हिस्सा बनकर हमें गर्व है। उन्होंने जो सपना देखा वह पूरा किया और उनके उस सपने को साकार करने के लिए रॉडिक कंसल्टेंट सहयोगी बना। बलजीत का दृढ़ संकल्प और सफलता युवाओं को एडवेंचर स्पोर्ट्स में करियर बनाने के लिए प्रोत्साहित करेगी। हमारा मानना है कि उनकी उपलब्धियां भारतीय युवाओं को एडवेंचर स्पोर्ट्स में आगे बढ़ने के लिए भी प्रेरित करेंगी।“
बलजीत हिमाचल प्रदेश के एक छोटे से पहाड़ी गांव सोलन से हैं। ग्रामीण परिवेश के बावजूद, वह अपने शानदार करियर में दुनिया के 7वें सबसे ऊंचे पर्वत, माउंट धौलागिरी (8167 मीटर), माउंट पुमोरी (7161 मीटर) और उत्तरी हिमालय के कई पहाड़ों को फतह करने वाली पहली भारतीय महिला बन गई हैं। उनके पिता सरदार अमरीक सिंह, हिमाचल राज्य परिवहन निगम के एक सेवानिवृत्त बस चालक हैं और वर्तमान में माइक्रो खेती में लगे हुए हैं और उनकी माँ शांति देवी एक गृहिणी हैं। कई असफलताओं के बावजूद, वह लगातार पहाड़ों की चढ़ाई पूरी करने पर ध्यान केंद्रित कर रही हैं, जिसके लिए वह अपने कौशल के लिए अच्छी-खासी लोकप्रियता हासिल कर रही है। अपने कौशल से वह लोकप्रियता भी प्राप्त कर रही हैं।

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