संपादकीय

चुनौतीपूर्ण रहा साल 2019

-डा. जयंतीलाल भंडारी
यदि हम बीते हुए वर्ष 2019 की ओर देखें तो पाते हैं कि जनवरी 2019 की शुरुआत से देश में आर्थिक सुस्ती का जो परिदृश्य था उस परिदृश्य में प्रत्येक माह सरकार के द्वारा आर्थिक सुस्ती रोकने के प्रयासों के बाद भी आर्थिक सुस्ती बढ़ती गई। यही कारण है कि वर्ष 2019 में आर्थिक सुस्ती बढ़ने के साथ-साथ देश की आर्थिक मुश्किलें बढ़ती गई और दिसंबर 2019 में यह पाया गया कि वर्ष 2019 में देश की विकास दर 5 फीसदी के निम्न स्तर पर पहुंच गई, लेकिन साल भर चलती रही आर्थिक सुस्ती की हवाओं के बीच भी देश ने कई उल्लेखनीय आर्थिक सफलताएं भी अपनी मुट्ठियों में की हैं। गौरतलब है कि 24 दिसंबर को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ‘आईएमएफ’ ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि भारतीय अर्थव्यवस्था गहरी सुस्ती के दौर में है। रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2019 में विकास दर कमजोर रही।
रोजगार के अवसर नहीं बढ़े। निःसंदेह वर्ष 2019 भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए आर्थिक चुनौतियों का वर्ष रहा। वर्ष 2019 में देश की अर्थव्यवस्था का हर क्षेत्र मांग की कमी का सामना करते हुए दिखाई दिया। रीयल एस्टेट, मैन्युफेक्चरिंग सेक्टर, ऑटोमोबाइल सेक्टर में सुस्ती के हालात रहे। भारतीय टेलीकॉम सेक्टर में गहरी गिरावट, निर्यात में कमी, खपत में गिरावट, निवेश में कमी और अर्थव्यवस्था के उत्पादन एवं सेवा क्षेत्रों में गिरावट से भारतीय अर्थव्यवस्था संकटग्रस्त दिखाई दी। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2019-20 में विकास दर संबंधी विभिन्न अध्ययन रिपोर्टों में देश की विकास दर घटने और आर्थिक संकट के विश्लेषण प्रस्तुत किए गए। ख्याति प्राप्त रेंटिग एजेंसी मूडीज ने कहा कि सरकार का राजकोषीय घाटा ‘फिजिकल डेफिसिट’ सकल घरेलू उत्पाद ‘जीडीपी’ के 3.3 फीसदी के निर्धारित लक्ष्य से बढ़कर 3.7 फीसदी के स्तर पर पहुंच सकता है।
यद्यपि वर्ष 2019 में आर्थिक सुस्ती से मुश्किलें बनी रही, लेकिन बीते हुए वर्ष में कुछ जोरदार आर्थिक उपलब्धियां भी भारत के खाते में आई। खासतौर से वर्ष 2019 में महंगाई नियंत्रित रही। वर्ष 2019 के अंत में वैश्विक आर्थिक सुस्ती के बीच भी भारत का विदेशी मुद्रा कोष 455 अरब डॉलर के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया। वर्ष 2019 में वर्ष 2018 की तुलना में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश ‘एफडीआई’ भी बढ़ा। वर्ष 2019 में विदेशी पोर्टफोलियो निवेश ‘एफपीआई’ भी तेजी से बढ़ा। विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों ने वर्ष 2019 में करीब 1.31 लाख करोड़ रुपए का निवेश भारतीय पूंजी बाजार में किया। दिसंबर 2019 में आर्थिक सुस्ती के बीच भी मुंबई शेयर बाजार का सेंसेक्स 41,600 अंकों से अधिक की रिकॉर्ड ऊंचाई पर दिखाई दिया।
वर्ष 2019 में सेंसेक्स ने 15 फीसदी रिटर्न देकर निवेशकों को मालामाल किया। आर्थिक सुस्ती के बीच शेयर बाजार के बढ़ने का खास कारण यह रहा कि वर्ष 2019 में कंपनी कर में कटौती की गई, दिवाला कानून तथा जीएसटी में सुधार किए गए और बैंकिंग सेक्टर को मजबूत करने के लिए सरकार ने फंड उपलब्ध कराए। म्युचुअल फंड निवेश के हिसाब से भी 2019 शानदार रहा। इस साल म्युचुअल फंड इंडस्ट्री के असेट बेस में 4 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा का इजाफा हुआ। ऐसे में म्युचुअल फंड में निवेश बढ़ना भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए सुकून भरा संकेत भी रहा। संयुक्त राष्ट्रसंघ की रिपोर्ट 2019 के मुताबिक भारतीय प्रवासी विदेशों से सबसे अधिक धन स्वदेश भेजने के मामले में पहले क्रम पर रहे।
प्रवासियों ने वर्ष 2019 में 79 अरब डालर भारत भेजे। यह बात भी महत्त्वपूर्ण है कि वर्ष 2019 में देश में भ्रष्टाचार में कुछ कमी आई। ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की रिपोर्ट 2019 में 180 देशों में भारत की रैंक 78 रही। पिछले वर्ष यह रैंक 81वीं थी। देश के सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का कार्य प्रस्तुतीकरण वर्ष 2018 की तुलना में वर्ष 2019 में संतोषप्रद दिखाई दिया। वर्ष 2019 में विदेशी पोर्टफोलियो निवेश ‘एफपीआई’ भी तेजी से बढ़ा। खास बात यह भी रही कि वर्ल्ड बैंक द्वारा जारी ईज ऑफ डूइंग बिजनेस रिपोर्ट 2020 में भारत 190 देशों की सूची में 14 स्थान की छलांग लगाकर 63वें स्थान पर पहुंच गया। निश्चित रूप से देश की अर्थव्यवस्था की सुस्ती दूर करने के लिए सरकार ने वर्ष 2019 में एक के बाद एक कई कदम उठाए। 26 अगस्त को अपने 84 साल के इतिहास में पहली बार रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ‘आरबीआई’ के द्वारा लाभांश और अधिशेष कोष के मद से 1.76 लाख करोड़ रुपए केंद्र सरकार को ट्रांसफर करने का निर्णय लिया गया।
आरबीआई के पास संरक्षित 9.6 लाख करोड़ रुपए का अधिशेष कोष है, फिर 14 सितंबर को वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने निर्यात क्षेत्र में तेजी लाने के लिए कई अहम घोषणाएं कीं। निर्यात बढ़ाने के लिए 50 हजार करोड़ रुपए का फंड बनाया गया। बढ़ते आर्थिक संकट को थामने के लिए 20 सितंबर को वित्तमंत्री सीतारमण ने कॉरपोरेट टैक्स 30 फीसदी से घटाकर 22 फीसदी कर दिया। 20 नवंबर को सरकार ने राजकोषीय घाटे की चुनौती के मद्देनजर विनिवेश ‘डिसइन्वेस्टमेंट’ का बड़ा कदम उठाते हुए सार्वजनिक क्षेत्र के पांच बड़े उपक्रमों के विनिवेश की घोषणा की गई। ताकि वर्ष 2019-20 के लिए बजट के तहत निर्धारित 1.05 लाख करोड़ रुपए के विनिवेश लक्ष्य की पूर्ति हो सके।
निश्चित रूप से सरकार को नए वर्ष 2020 में वैश्विक सुस्ती के बीच निर्यात मौकों को मुट्ठियों में लेने के लिए रणनीति के साथ आगे बढ़ना होगा। सरकार के द्वारा वर्ष 2020 में चारों श्रम संहिताओं को लागू करना होगा। सरकार को वर्ष 2020 में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर, बैंकिंग सेक्टर, कारपोरेट सेक्टर, ई-कॉमर्स, ग्रामीण विकास, भूमि एवं कालेधन पर नियंत्रण से लेकर रोजगार को बढ़ावा देने के लिए प्रभावी और कठोर कदम उठाने होंगे। जरूरी है कि बैंकों की बैलेंस शीट में गड़बड़ियों को दूर किया जाए और सरकारी बैंकों का संचालन बेहतर बनाया जाए। इसके अतिरिक्त गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों की निगरानी बेहतर की जाए। सरकार ने सरकारी बैंकों में काफी पूंजी डाली है, लेकिन संचालन सुधारों के मामले में सरकार को सुदृढ़ीकरण के अलावा कई कदम उठाने होंगे।
जरूरी है कि राजकोषीय जवाबदेही एवं बजट प्रबंधन अधिनियम की समीक्षा समिति की अनुशंसाओं का ध्यान रखा जाए। वस्तु एवं सेवा कर प्रणाली की दिक्कतों को व्यापक तौर पर हल करने से न केवल राजस्व में सुधार होगा बल्कि कारोबारी सुगमता में भी सुधार आएगा। वृद्धि और रोजगार बढ़ाने में व्यापारिक उदारीकरण की भूमिका अहम बनाना होगी। ऐसा होने पर ही वर्ष 2020 में आर्थिक सुस्ती के दुष्परिणामों से बचा जा सकेगा और देश विकास की डगर पर आगे बढ़ सकेगा।

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