संपादकीय

भारत की वैश्विक आतंकवाद पर करारी चोट !

सुनील कुमार महला
फ्रीलांस राइटर, कालमिस्ट व युवा साहित्यकार (उत्तराखंड)

आतंकवाद आज संपूर्ण विश्व के लिए नासूर बन चुका है और आज विश्व के अनेक देश आतंकवाद से पीड़ित हैं। हाल ही में शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की वर्चुअल(आभासी) बैठक में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि एससीओ को आतंकवाद से लड़ने के लिए साथ आना चाहिए। उन्होंने यह भी बात कही है कि ऐसे देशों की भी निंदा करने से नहीं हिचकना चाहिए जो आतंकवाद व आतंकियों का समर्थन करते हैं। जानकारी देना चाहूंगा कि हाल ही में भारत ने 4 जुलाई 2023 यानी कि मंगलवार को शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के काउंसिल ऑफ हेड्स ऑफ स्टेट्स (सीएचएस) की 23 वीं बैठक की मेजबानी करते हुए भारत ने सीमा पार आतंकवाद से लड़ने की आवश्यकता पर जोर दिया जो कि हमारे पड़ोसी व आतंकवाद का घर कहलाने वाले पाकिस्तान को एक कड़ा संदेश था। वास्तव में भारत द्वारा यह पाकिस्तान समेत वैश्विक आतंकवाद पर करारी चोट है। वास्तव में आज विश्व के सभी देश यह बात अच्छी तरह से जानते हैं कि पाकिस्तान आतंकवाद व आतंकियों की असली पनाहगाह है और चीन पाकिस्तान को सपोर्ट करता है। सच तो यह है कि चीन पाकिस्तान का सरपरस्त है। यहां यह भी जानकारी देना चाहूंगा कि इस आभासी या यूं कहें कि वर्चुअल बैठक में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ सहित अन्य सदस्य देशों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। वास्तव में, यह एससीओ सम्मेलन उस वक्त आयोजित किया जा रहा है जब भारत के इसके दो पड़ोसी देशों पाकिस्तान और चीन के साथ रिश्ते तनावपूर्ण चल रहे हैं। वहीं, रूस अपनी वैगनर के अल्पकालिक विद्रोह से उभरने की कोशिश कर रहा है। पाठकों को बताता चलूं कि वैगनआर रूस की निजी सेना है। यहां पाठकों को यह भी जानना जरूरी है कि वास्तव में एससीओ है क्या ? तो इसके बारे में जानकारी देना चाहूंगा कि एससीओ(शंघाई सहयोग संगठन) की स्थापना रूस, चीन, किर्गिज गणराज्य, कजाकिस्तान, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान के राष्ट्रपतियों द्वारा वर्ष 2001 में शंघाई में एक शिखर सम्मेलन के दौरान की गई थी और भारत को वर्ष 2005 में एससीओ का पर्यवेक्षक बनाया गया था। वर्ष 2017 में अस्ताना शिखर सम्मेलन में भारत एससीओ(शंघाई सहयोग संगठन) का पूर्ण सदस्य देश बन गया। भारत के साथ पाकिस्तान भी 2017 में इसका स्थायी सदस्य बना। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि भारत ने पिछले साल सितंबर में उज्बेकिस्तान के समरकंद शिखर सम्मेलन में एससीओ की अध्यक्षता ग्रहण की थी।आज एससीओ एक प्रभावशाली आर्थिक और सुरक्षा ब्लॉक है और पिछले कुछ वर्षों में यह सबसे बड़े अंतर-क्षेत्रीय अंतरराष्ट्रीय संगठनों में से एक के रूप में उभरा है। कहना ग़लत नहीं होगा कि शंघाई सहयोग संगठन, पिछले दो दशकों में सम्‍पूर्ण एशिया क्षेत्र में शांति, खुशहाली तथा विकास के लिए महत्‍वपूर्ण मंच के रूप में उभरा है। इतना ही नहीं शंघाई सहयोग संगठन के जितने भी देश हैं, उनमें दुनिया की लगभग चालीस प्रतिशत आबादी निवास करती है और दुनिया के व्यापार का लगभग एक चौथाई व्यापार इन्हीं देशों के बीच किया जाता है। देखा जाए तो शंघाई सहयोग संगठन के सभी देश मिलकर न केवल व्यापार के क्षेत्र में बल्कि अन्य वैश्विक मुद्दों पर भी मिलकर काम कर सकते हैं और पश्चिमी देशों को अर्थव्यवस्था के मामले में टक्कर दे सकते हैं लेकिन चीन और पाकिस्तान का रवैया कुछ अलग थलग सा ही नजर आता है। वास्तव में चीन एक ऐसा देश है जिसकी नीति सदा सदा से विस्तारवादी रही है और इसी नीति के तहत वह पाकिस्तान को अपना मोहरा बनाए हुए है। यहां पाठकों को बता दूं कि चीन की दूसरे देशों के क्षेत्र पर कब्जा जमाने की नीति को विस्तारवादी नीति कहा जाता है। चीन दूसरे देशों को कर्ज उपलब्ध कराता है और बाद में कर्ज न चुकाने की एवज में दूसरे देशों की जमीन और उनके संसाधनों पर अपना कब्जा जमाता है। चीन कभी नहीं चाहता है कि कोई भी देश उसकी तुलना में किसी भी क्षेत्र में आगे बढ़े। वह भारत को बात बात पर आंख दिखाता रहा है और हिंदी चीनी भाई भाई का राग भी समय समय पर अलापता रहा है। सच तो यह है कि चीन की नीति दोगली है और वह अपने हितों को साधने के लिए पाकिस्तान को अप्रत्यक्ष प्रत्यक्ष रूप से कहीं न कहीं सपोर्ट करता है और पाकिस्तान को अपना मोहरा भी बनाता है। यहां तक कि चीन तो संयुक्त राष्ट्र संघ में अंतरराष्ट्रीय आतंकियों को सपोर्ट तक करता रहा है। बहरहाल, यह अत्यंत काबिलेतारिफ है कि भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आतंकवाद के लिए वित्‍तीय संसाधनों की उपलब्‍धता की समस्‍या से निपटने में भी आपसी सहयोग की जरूरत पर बल दिया है। आतंकवाद को क्षेत्रीय और वैश्विक शांति के लिए बडा खतरा बताते हुए उन्‍होंने कहा है कि इस चुनौती से निपटने के लिए वर्तमान में निर्णायक कार्रवाई की जरूरत है। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि शंघाई सहयोग संगठन के देशों को आतंकवाद से मिलकर लड़ना होगा।उन्‍होंने यह भी कहा कि अफगानिस्‍तान की जमीन का उपयोग पडोसी देशों में अस्थिरता फैलाने या कट्टरपंथी विचारधाराओं को प्रोत्‍साहन देने के लिए नहीं होने देना चाहिए। भारत के प्रधानमंत्री ने कहा है कि संघर्ष, तनाव और वैश्विक महामारी से घिरे विश्‍व में खाद्य, ईंधन तथा उर्वरक संकट से निपटना सभी देशों के लिए महत्‍वपूर्ण चुनौती है। उन्‍होंने इस पर मिलकर विचार करने को कहा कि क्‍या एससीओ, संगठन के रूप में लोगों की आकांक्षाओं और अपेक्षाओं को पूरा करने में समर्थ है ? बहरहाल, आज आतंकवाद से न केवल भारत, पाकिस्तान जैसे देश प्रभावित हैं बल्कि अफगानिस्तान और रूस जैसे देश भी प्रभावित हैं। आतंकवाद न केवल विश्व शांति के लिए एक बड़ा खतरा है बल्कि यह विकास के लिए भी एक बड़ा खतरा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का शंघाई सहयोग संगठन के मंच से दुनिया को आतंकवाद के विरुद्ध सामूहिक लड़ाई लड़ने का संदेश यह दर्शाता है कि भारत किसी भी हाल और परिस्थितियों में आतंकवाद को बर्दाश्त नहीं करेगा। वास्तव में, आतंकवाद और आतंकियों का खात्मा करके ही कोई भी राष्ट्र प्रगति,उन्नयन, शांति, सौहार्द, आपसी भाईचारे और विकास की कल्पना को साकार कर सकता है।

(आर्टिकल का उद्देश्य किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं है।)

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