संपादकीयसैर सपाटा

भारत मेें सबसे ऊंची कुतुबमीनार स्थापत्य कला का सुंदर नमूना

-डॉ. प्रभात कुमार सिंघल, कोटा
लेखक एवं पत्रकार

कुतुबमीनार इस्लामिक-मुगल काल के मध्य में बनी सल्तनत समय की स्थापत्य कला का सुंदर नमूना और भारत में स्लामिक शक्ति और प्रतिष्ठा का प्रतिनिधि स्मारक है। विश्व विरासत में शामिल कुतुबमीनार भारत की खूबसूरत मीनारों की सिरमौर कुतुबमीनार दिल्ली के महरौली में स्थित है और परिसर में मस्जिद आदि भवन बने हैं। जिस प्रकार विभिन्न धर्मों के मंदिरों के बाहर स्तम्भ बनाने की परंपरा रही है, शायद इसी से प्रेरित हो कर कुतुबुद्दीन ऐबक ने जब 1195 ई. में यहाँ कुतुब मस्जिद बनवाई तो 1199 ई.में मस्जिद के सामने स्तम्भ के रूप में कुतुबमीनार के निर्माण का कार्य प्रारम्भ कराया। मीनार के कार्य को पूर्ण कराने में उसके उत्तराधिकारियों इल्तुतमिश एवं फिरोजशाह तुगल्लक का महत्वपूर्ण योगदान रहा और 1368 ई. में इसका निर्माण कार्य पूर्ण हुआ। इस प्रकार कुतुबमीनार को पूर्ण होने में 169 वर्षों का लम्बा समय लगा। कुतुब मस्जिद से जुड़ी कुतुबमीनार भारत की ही नहीं विश्व की भी अपने ढंग की अनोखी वास्तु संरचना है। पृथ्वीराज चौहान एवं मोहमद गौरी के मध्य 1192 ई. में हुए तराइन के द्वितीय युद्ध के परिणामस्वरूप दिल्ली में गुलाम वंश की स्थापना हुई और इस वंश की यह मीनार प्रथम उल्लेखनीय इमारत थी।
कुतुबमीनार गोलाकार संरचना है जिसकी की ऊंचाई 72.5 मीटर (237.86 फीट) और व्यास 14.3 मीटर है। मीनार का आधार 46 फीट है जो ऊपर पहुँचते-पहुँचते 10 फीट रह जाता है। मीनार के अन्दर 7 घुमावदार 379 सीढ़ियां हैं। अब इसे केवल बाहर से ही देख सकते हैं। मीनार के अन्दर जाने पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया है। कुतुबुद्दीन ऐबक इसका आधार ही बनवा पाया था। इलतुतमिश (1211-36) ने इसकी तीन मंजिलें बनवाई और फिरोज शाह ने इनके ऊपर चौथी मंजिल और बनवाई। अलग-अलग समय में बनवाये जाने से हर मंजिल की कारीगरी भी भिन्न-भिन्न है। मीनार अब 5 मंजिल है। मीनार का स्थापत्य शिल्प तथा मीनार पर लिखी गई आयतें देखते ही बनती हैं। प्रत्येक मंजिल पर छज्जे बने हैं जो मीनार को घेरते हैं तथा इन पर ब्रेकेट से सहारा दिया गया हैं, जिन पर मधुमक्खी के छत्ते के सम्नां सज्जा की गई हैं, यह पहली मंजिल पर ज्यादा स्पस्ट नजर आती हैं। चैथी मंजिल में खिड़की युक्त गोलाकार छतरी बनाई गई थी।आगे की मंजिल बनाये जाने से इसकी ऊँचाई बढ़ गई। यह मीनार लाल और बफ सेंडस्टोन से बनी भारत की सबसे ऊंची मीनार है। सितंबर 1803 में गढ़वाल कुमायूं हिमालय में आये भूकम्प में कुतुबमीनार को भी क्षति हुई जिसकी मरमत 1828 ई. में भारतीय ब्रिटिश सेना के मेजर रॉबर्ट स्मिथ ने करवाई थी।
कुतुब मीनार के समीप ही चौथी शताब्दी का 7 मीटर ऊँचा लोह स्तम्भ स्थित है। इसकी विशेषता है कि किसी भी मौसम का इस पर कोई असर नहीं होता है। आज तक इस लोह स्तम्भ पर जरा सा भी जंग नहीं लगना आश्चर्य उत्पन्न करता है।
कुतुब मीनार के उत्तर-पूर्व में स्थित सल्तनत काल में बनी भारत की पहली मस्जिद कुब्बत-उल-इस्लाम मस्जिद है, जिसका निर्माण 1198 ई. में कुतुबुद्दीन ऐबक ने करवाया था। इसकी मेहराब पर सर्प, बेल के अंकन हिन्दू शैली से प्रभावित हैं। यह मस्जिद अब ढह चुकी है एवं अवशेष ही रह गये हैं। इसमें नक्काशी दार खंबों पर उठे आकर से घिरा हुआ एक आयताकार आंगन है। पूर्वी मुख्य प्रवेश द्वार पर खुदे हुये शिलालेख से पता चलता है कि इनका निर्माण 27 हिन्दू एवं जैन मंदिरों की सामग्री से किया गया जिन्हें ऐबक ने नष्ट कर दिया था। इलतुतमिश एवं अल्लाउद्दीन ने भी इसमें विस्तार कार्य कराए थे। इस मीनार के बारे में अनेक मत हैं पर सभी इस बात से सहमत हैं कि यह भारत की ही नहीं विश्व की सुंदरतम मीनार है।
परिसर में ही शमसुद्दीन इलतुतमिश का मकबरा भी है जिसे 1235 ई. में बनवाया गया था। लाल सेंड स्टोन से बना सदा चकोर कक्ष है जिसके बाहरी एवं भीतरी हिस्से में अनेक शिलालेख, ज्यामितीय रचनाएं और अरबी पद्दति में सरसेनिक शैली की लिखावटें दिखाई देती हैं। कुछ हिन्दू चिन्ह भी देखने को मिलते हैं।
परिसर के अन्य स्मारक अलाइ मीनार, अलाइ दरवाजा और मस्जिद के दक्षिणी द्वार का निर्माण अल्लाउद्दीन खिलजी द्वारा 1311 ई. में करवाया था। यहां एक शिलालेख भी लगा है। कुतुब मीनार के उत्तर में 25 मीटर ऊँचाई की अलाइ मीनार दिखाई देती है। अलाउद्दीन ने कुतुबमीनार से भी ऊंची मिनार बनाने के इरादे से इसका कार्य शुरू किया परंतु वह पहली मंजिल ही बना सका। यहाँ मदरसे, कब्र, मकबरे आदि के अवशेष भी मिटे हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *