संपादकीय

भिखारियों की समस्या और समाधान

-अख्तर खान अकेला
एडवोकेट, कोटा राजस्थान

देश के बच्चों, बूढ़ों, महिलाओं, युवाओं के लिए कितने ही आयोग मंत्रालय बनाकर अरबों रूपये हम हमारे टैक्स की रकम से खर्च करते रहे, लेकिन इनके कल्याण के नाम पर आजादी से आज तक हमारी सरकारों ने ढकोसले के सिवा कुछ नहीं किया है। यही वजह है कि आज देश के हर शहर की रेडलाइट, चैराहे, चाट पकोड़ी की स्ट्रीट में, हर उम्र के बूढ़े, बच्चे, महिलाएं, आदतन रोजगार के रूप में भीख मांग कर पेट भरना अपनी शान समझने लगे हैं। रेड लाइटों पर चाट-पकोड़ी की दुकानों पर कुछ लोग मजबूरी में, कुछ लोग जोर-जबरदस्ती के, डर से और कुछ अनर्थ होने के डर से ऐसे लोगों की हौसला-अफज़ाई कर रहे हैं। देश भर के हालात देश भर के आंकड़े तो देश के अखबार नवीज, न्यूज एडिटर, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े लोग जाने, लेकिन इस तरह की टीम अगर देशभर में, हर गली, हर क्षेत्र में, अपने रोजगार की चाह को छोड़कर, भिक्षावृत्ति भी एक रोजगार के रूप में अपना लें और यह रोजगार पीढ़ी दर पीढ़ी विरासत में मिलती रहे, तो फिर वो चाहे मैं हूँ, चाहे देश के समाजसेवक हों, चाहे देशभर की समस्याओं पर जनहित याचिकाएं, सो मोटो स्वीकार करने वाले न्यायविद हों, चाहे सरकार में बैठे मंत्री हों, केंद्रीय, राज्य स्तरीय बाल कल्याण आयोग, युवा कल्याण बोर्ड, महिला आयोग, बाल विकास मंत्रालय, समाज कल्याण मंत्रालय, महिला कल्याण मंत्रालय हों, समाज सुधारक हों, सभी के लिए आत्मनिर्भर भारत के अभियान में असफल होने की पराकाष्ठा है। हम कोटा की बात करते हैं – कोटा में जिला कलेक्टर हैं, देश की सबसे बढ़ी पंचायत, लोकसभा के अध्यक्ष ओम जी बिरला हैं, राज्य मंत्री हैं, समाजकल्याण विभाग हैं, बालकल्याण समितियां हंै, जुवेनाइल यूनिट है, पुलिस है, समाज सुधारक है, भारत रत्न, हाड़ोती रत्न, समाजसेवक, युवा ह्ृदयसम्राट, गरीबों के मसीहा हैं। हर वर्ग हर धर्म के लोग हैं लेकिन कोटा की हर रेड लाइट, कोटा के हर चैराहे, शॉपिंग सेंटर, छावनी, तलवंडी, अदालत चैराहे, स्टेशन, बस स्टैण्ड, रेलवे स्टेशन, विज्ञाननगर, दादाबाड़ी, उद्योग नगर, कुन्हाड़ी, बोरखेड़ा, कोई ऐसी जगह नहीं है, जहाँ आदतन भीख को रोजगार बनाने वाले, खुद को दरिद्र बताकर रूपये मांगते हैं। कुछ लोग समझदार हो गए हैं, तो वो गुब्बारे, पेन, वगैरह लेकर खुद को रोजगार से जुड़ा होने पर भी दरिद्र साबित कर, प्रसादम के हकदार बनते हैं। कहीं भी पुल के नीचे, वीराने में, खाली पड़ी जगह पर, यह लोग रात गुजारते हैं। योजनाबद्ध तरीके से अपने-अपने इलाके में निकल जाते हैं। विज्ञाननगर चैपाटी, शॉपिंग सेंटर, छावनी, तलवंडी स्टेशन सहित सभी इलाकों में, यह लोग छुटपुट चीजे बेचने के नाम पर मौजूद रहते हैं और इनके बच्चे, प्रशिक्षित व्यवस्थित तरीके से मनोवैज्ञानिक दबाव बनाकर लोगों से जिद करके उन्हें लुभाकर, उनके दिल के अंदर मदद के जज़्बे को जगाकर, उनसे रोज़मर्रा रकम हासिल करते हैं। जरूरतमंद लोगों की मदद करने में कोई बुराई नहीं गरीब की मदद, दरिद्र की मदद कोई बुराई नहीं लेकिन अगर इसे पीढ़ी दर पीढ़ी रोजगार बना लिया जाए, और हम समाज कल्याण के हर वर्ग के कल्याण की दुहाई देते रहे, फिर भी यह भिक्षावृत्ति रोजगार के रूप में चलती रहे तो हमारे सभी पर लानत हैै। हिन्दू, मुस्लिम, सिख, क्रिश्चियन चाहे जो भी हो, चाहे जमात इस्लामी हो, चाहे सुन्नी जमातें हों, चाहे आरएसएस हो, चाहे हिन्दू संगठन हों, सभी के लिए यह शर्म की बात है। और सरकारें, उसके मंत्री, विधायक, समाजसेवक तो हम सब की तरह नहीं, हम सबसे भी बड़े बेशर्म हैं। सरकारें इन लोगों को पुर्नवासित करने, व्यस्थित करने, रोजगार, शिक्षा से जोड़ने के लिए, योजनाए बनाती है, वाह-वाही लूटती है, मंत्रालय के नाम पर, आयोगों के नाम पर, कमेटियों के नाम पर, करोड़ों-करोड़ नहीं, अरबों-अरब रूपये खर्च करती है। एयर कंडीशन मीटिंग हॉल में, एयरकंडीशन लाखों की कारों में सफर करने वाले यह लोग, पांच सितारा संस्कृति में, इन लोगों के पुनर्वास, रोजगार, शिक्षा से इन्हे जोड़ने के लिए बैठकें करते हैं। अखबारों में खबरें देते हैंै। अखबारों में खबरें छपती है – बालकल्याण दिवस, महिला दिवस, युवा दिवस, वृद्ध कलयाण दिवस, इनके नाम टी वी, और अखबारों में, अरबों रूपये के विज्ञापन प्रकाशित-प्रसारित होते हैं, लेकिन यह खबरों में नहीं होते, इनके पुनर्वास मामले में, सरकारों की असफलता की खबरें, टी वी चैनल्स, अखबारों में हरगिज-हरगिज नहीं होती। कमेटियां बनती हैं। बाल आयोग बनते हैं। जिला प्रशासन एलर्ट रहता है। ज्वेनाइल यूनिट सजग और सतर्क होने का दावा करती है। हेल्पलाईन नंबर, समाजसेवी संस्थाओं के विज्ञापन, शोर-शराबे बहुत-बहुत दिखते है सुनाई देते हैं। स्काउट, गाइड भी पेश पेश नजर आते है, लेकिन जो बच्चे, मेहनत-मज़दूरी करके रोजगार के जरिये, ईमानदारी से, मेहनत से, अपना पेट पालना चाहते हैं। उन्हें यह लोग पकड़ते हैं, उन्हें यह लोग बाल आश्रय गृह में रखते हैं, क्योंकि यह बच्चे स्वाभिमानी हैं। भीख नहीं मांग सकते, खुद का, खुद के परिजनों का मेहनत-मजदूरी करके, पेट पालना चाहते हैं। इन बच्चों को तुरंत पकड़ा जाता है। नियोजक के खिलाफ मुकदमा होता है, क्योंकि इनको पकड़ने में इनके माँ-बाप भी सेल्यूट मारते हैं। गिड़गिड़ाते है, नियोजक में तो घबराहट होती ही है, उनके खिलाफ मुकदमे भी दर्ज होते हैं। ज्वेनाइल कानून आधा क्यों लागू किया जाता है? आधा क्यों पढ़ा जाता है? जब इस कानून में भीख मांगने वाले उपेक्षित बच्चों को बाल आश्रय गृह में रखने, आदतन रोजगार के रूप में भीख मांगने के लिए बच्चों को नियोजित करने, या दबाव बनाने पर, उनके अभिभावक, नियोजकों के खिलाफ, मुकदमा दर्ज करने का प्रावधान है, फिर भी ऐसे माता-पिता जो अपने बच्चों से आदतन तरीके से भीख मंगवा रहे है, उनके खिलाफ कोटा में एक भी मुकदमा प्रावधानों के तहत दर्ज हुआ हो। ऐसा उदाहरण मिला नहीं है, ऐसे लोगों को पकड़ो, आश्रय गृह में रखो, काउन्सिलिंग करके, उनसे भिक्षावृत्ति की जगह, स्वरोजगार-योजनाओं, साक्षरता की तरफ उनका रूहझान बनाओ। ऐसी व्यस्थाएं बनाओं, वृद्धांे को वृद्धाश्रम में, महिलाओं को नारीशाला में, बच्चों को बाल आश्रय गृह में, मुफ्त खाने की व्यवस्था के साथ, उनसे काम करवाने, उन्हें सिलाई, कढ़ाई, बुनाई सहित अन्य स्वरोजगार योननाओं के प्रति प्रेरित कर, साक्षरता के साथ प्रबंधन दीजिये। लोन दिलवाइये, कोटा में एक मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, अशोक जैन, के कार्यकाल में, हर गली-चैराहे, अदालत, बस स्टैण्ड सभी स्थानों पर, छापामार कार्यवाहियां हुई। ऐसे आदतन भिक्षा व्यवसाय में लगे, बच्चों, औरतों, बुजुर्गों को, अलग-अलग आश्रय स्थल में रखवाया गया, उन्हें मनचाहा खाना, मनचाहे कपड़ों की व्यवस्थाएं की गयीं। सड़कों चैराहों से आदतन भीख मांगने वाले गिरोह, गायब थे, या तो वो आश्रय स्थलों में थे, या फिर कोटा छोड़ भागे थे, लेकिन मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट का ट्रांसफर हुआ, फिर वही ढाक के तीन पात हालात जस के तस, दुःखदायी है। बाल आयोग से जुड़े लोग, सरकारों से जुड़े लोग, समाजकल्याण से जुड़े लोग, समाजसेवा क्षेत्र से जुड़े लोग, कामकाज कर रहे नाबालिग बच्चों को रेस्क्यू करने वाले लोग, इस व्यवस्था में कल्याणकारी योजनाओं के नाम पर लगे लोग, जन प्रतिनिधि, मंत्री, सांसद, विधायक, केंद्र, राज्यों के मुख्याओं, मुझे-आपको-सभी को, इस व्यवस्था को बदलने के प्रयास तेज करना होंगे। हमें इन व्यवस्थाओं पर अरबों अरब रूपये खर्च करने के बाद भी स्थिति वही की वही बनी रहने के कारणों को अपनी नाकामयाबी को, बिना आरोप-प्रत्यारोप, बिना कांग्रेस, भाजपा, बिना अमीरी, गरीबी, हिन्दू, मुस्लिम, आरोपों के बगैर इस व्यवस्था में हम कहाँ है, अपने गिरेहबान में जरूर झांकना चाहिए, मुझे यह सब लिखने के लिए, मेरे कई मित्रों ने, छह महीने से लगातार प्रेरित किया है। कई जोर जबरदस्ती वाले, विडिओ, फोटोग्राफ भी डाले हैं। लेकिन ज्वेनाइल कानून की बंदिशों की वजह से इन तस्वीरों, विडिओ, को में शेयर करने में असमर्थ हूँ। आओ हम सब मिलकर, कोटा सहित, देश के हर जिले में, इस तरह के बच्चों, बूढ़ों, महिलाओं को, इस गंदगी से निकालकर, स्वाभिमानी, स्वावलंबन, स्वरोजगार व्यवस्थाओं की तरफ ले जाने के, लिए मिलकर संघर्ष करे, सरकारों पर दबाव बनाये।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *