संपादकीय

नशा मुक्ति के लिए उठे बड़े कदम

26 जून नशा मुक्ति दिवस पर विशेष

-रमेश सर्राफ धमोरा
झुंझुनू,राजस्थान (मान्यता प्राप्त स्वतंत्र पत्रकार)

आज पूरी दुनिया नशे के चंगुल में फंसी हुई है। दुनिया का कोई भी ऐसा देश नहीं है जहां के लोगों को नशे कि लत नहीं लगी हो। भारत में तो स्थिति और भी बदतर हो रही है। यहां की बहुत बड़ी आबादी नशे की गिरफ्त में आ चुकी है। विशेषकर युवा वर्ग में बढ़ती नशाखोरी की प्रवृत्ति समाज व राष्ट्र के लिए एक बड़ी चिंता का विषय है। नशे की लत के कारण बहुत से नौजवानों का भविष्य बर्बाद हो चुका है।
हमारे देश में नशा करने वाले युवा पीढ़ी के लोग अब चरस, हेरोइन, कोकीन, अफीम जैसा खतरनाक नशा करने लगे। देश भर में नशे का सामान बेचने वाले बड़े-बड़े नशा माफिया पनप गए हैं। जो स्कूलों, कॉलेजों में कम उम्र के नौजवानों को नशे का सामान बेचते हैं। घर से बाहर रहकर पढ़ने वाले बहुत से छात्र इन नशा माफियाओं के चंगुल में फंसकर नशे की लत के शिकार हो जाते हैं। जब तक उनके घर वालों को असलियत का पता चलता है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है।
नशीले पदार्थों के निवारण के लिए प्रत्येक वर्ष 26 जून को अंतर्राष्ट्रीय नशा मुक्ति दिवस मनाया जाता हैं। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने अपने एक प्रस्ताव में 7 दिसम्बर 1987 से इसे मनाने का निर्णय लिया था। इसका उद्देश्य लोगों को नशे की बुरी आदत से छुटकारा दिलाना तथा उन्हें नशे से होने वाले दुष्प्रभाव से बचाना हैं। यह अच्छी बात है कि इस दिन लोगों को नशे से दूर रहने के लिए प्रेरित किया जाता है। लोगों को सचेत किया जाता है, सावधान किया जाता है। मगर जब तक समाज व सरकार नशे को जड़ से समाप्त करने की दिशा में प्रभावी कार्यवाही नहीं करेगी तब तक नशे का व्यापार फैलता ही रहेगा। भारत में भी सरकार ने विभिन्न प्रकार के नशे के सामान की बिक्री पर रोक लगा रखी है। कई कानून भी बनाए हैं। मगर उन पर प्रभावी अमल नहीं हो पाता है। जिसके चलते खुलेआम नशे का कारोबार होता है।
आज देश में कहीं से कोई भी व्यक्ति नशे का कोई भी सामान खरीद सकता है। उसे ना कोई रोकने वाला है ना कोई टोकने वाला है। नशे का सामान बेचने वाले सौदागर दिनों दिन धनवान होते जा रहे हैं। जिस कारण से उनका पुलिस व प्रशासन पर पूरा प्रभाव रहता है। जिसकी बदौलत वह शासन, प्रशासन से मिलकर सरेआम धड़ल्ले से अपना धंधा करते रहते हैं। नशे की प्रवृत्ति के खिलाफ हमारा समाज भी जागरुक नहीं है। नशे की लत के चलते पंजाब जैसा संपन्न प्रांत नशेड़ियों का प्रदेश कहलाने लगा था। वैसी ही स्थिति आज देश के अधिकांश प्रदेशों की हो रही है। नशे को लेकर पंजाब जब सुर्खियों में आया तो पूरे देश का ध्यान उस तरफ गया और वहां नशे के कारोबार पर कुछ हद तक अंकुश लग पाया। वैसा ही हमें पूरे देश में करना होगा तभी नशे की तरफ जा रही हमारी युवा पीढ़ी को भटकने से रोका जा सकेगा।
कहते हैं कि नशा हर अपराध की जड़ होता है। नशेड़ी व्यक्ति कोई भी बुरे से बुरा काम करने से नहीं झिझकता सकता है। अधिकांश अपराध नशे की धुन में ही किए जाते हैं। बढ़ते नशे के प्रचलन को रोकने के लिए हमें सरकार के भरोसे ही नहीं रहना होगा। इसके लिए हमें स्वयं भी प्रयास करने होंगे। हमें देखना होगा कि हमारे परिवार का कोई सदस्य तो नशे की तरफ नहीं जा रहा है। यदि ऐसा है तो हमें समय रहते उस को नियंत्रित करना होगा। यदि सभी लोग ऐसा करने लगेंगे तो धीरे-धीरे नशे की प्रवृत्ति कम होती चली जाएगी और एक समय ऐसा आएगा जब हमारा समाज, हमारा क्षेत्र, हमारा प्रदेश, हमारा देश नशा मुक्त बन सकेगा।
ड्रग्स और अपराध पर संयुक्त राष्ट्र कार्यालय (यूएनओडीसी) की विश्व ड्रग रिपोर्ट 2022 का अनुमान है कि दुनिया भर में 15-64 आयु वर्ग के लगभग 28.4 करोड़ लोगों ने मादक पदार्थों (ड्रग्स) का सेवन किया था। यह पिछले दशक की तुलना में 26 प्रतिशत अधिक है। हालांकि वैश्विक स्तर पर मादक पदार्थों का सेवन करने वाली महिलाओं की संख्या कम है। इसके बावजूद महिलाओं में मादक पदार्थों के सेवन में वृद्धि दर पुरुषों की तुलना में अधिक है। अवैध मादक पदार्थों पर निर्भर अर्थव्यवस्थाएं मुख्यतः कमजोर कानून व्यवस्था वाले देशों में फल-फूल सकती हैं। इससे देश में संघर्ष की स्थिति पैदा हो सकती है। मध्य-पूर्व और दक्षिण-पूर्व एशिया में संघर्ष की स्थिति सिंथेटिक मादक पदार्थों के निर्माण के लिए प्रेरक के रूप में कार्य करती है।
कोका की गैर-कानूनी खेती के लिए वनों की कटाई की जाती है। इसके अलावा सिंथेटिक मादक पदार्थों के निर्माण के दौरान अत्यधिक मात्रा में अपशिष्ट पैदा होता है। ऐसे अपशिष्ट के कारण प्रत्यक्ष रूप से मृदा, जल और वायु पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। साथ ही इससे अप्रत्यक्ष रूप से सजीव प्राणी और खाद्य श्रृंखलाएं भी प्रभावित होती हैं। इस रिपोर्ट के अनुसार भारत उपभोगकर्ताओं के मामले में दुनिया के सबसे बड़े अफीम बाजारों में से एक है। साथ ही यहां इसकी आपूर्ति बढ़ने की भी संभावना है। इससे गैर-कानूनी व्यापार और इससे जुड़े संगठित अपराधों के स्तर में बढ़ोतरी हो सकती है।
रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया है कि भारत में युवा इस खतरे से सबसे अधिक प्रभावित हैं। भारत में जब्त की गई सभी अवैध दवाओं में से 60 प्रतिशत से अधिक पंजाब से हैं। एक अध्ययन के अनुसार अधिकांश नशेड़ी 15 से 35 वर्ष की आयु के बीच हैं और कई बेरोजगार हैं। नशीली दवाओं का दुरुपयोग समाज को प्रभावित करने वाला एक गंभीर खतरा है। नशीली दवाओं की लत से अनजाने में चोट लगने, दुर्घटनाएं, घरेलू हिंसा की घटनाएं, चिकित्सा समस्याएं और मृत्यु का उच्च जोखिम होता है। नशीली दवाओं का सेवन करने वालों की आर्थिक क्षमता बुरी तरह प्रभावित होती है। नशीली दवाओं पर निर्भरता से आत्म-सम्मान में भी कमी आती है। निराशा, आपराधिक गतिविधियों और यहां तक कि आत्मघाती प्रवृत्ति को भी जन्म दे सकती है।
भारत में नशीली दवाओं के दुरुपयोग के खिलाफ नशा मुक्त भारत अभियान या ड्रग्स-मुक्त भारत अभियान 15 अगस्त 2020 से देश के उन 272 जिलों में शुरू किया गया था जो नशीली दवाओं के दुरुपयोग से सबसे अधिक असुरक्षित और प्रभावित पाए गए थे। इसका उद्देश्य शिक्षण संस्थानों के साथ सकारात्मक भागीदारी, जन शिक्षा और स्वच्छता के लिए सामुदायिक जागरूकता कार्यक्रमों और उपचार, पुनर्वास और परामर्श सुविधाओं के एकीकरण के द्वारा भारत को एक नशा मुक्त देश बनाना है।
भारत ने नशीली दवाओं की समस्याओं को दूर करने के लिए निर्णायक कदम उठाए हैं। हालांकि सरकार के पास व्यापक खाका, प्रतिबद्ध कार्यबल और कई समर्पित कार्यक्रम और नीतियां हैं। लेकिन मौजूदा कार्यक्रमों में और अधिक सुधार करने की जरूरत है।

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