संपादकीय

प्रदेशों में साख गंवाती भाजपा

-रमेश सर्राफ धमोरा
(स्वतंत्र पत्रकार
)
भाजपा शासित प्रदेशों की संख्या लगातार कम होती जा रही है। जिसका एकमात्र कारण भाजपा शासित प्रदेशो के मुख्यमंत्री प्रधानमंत्री के साथ कदम से कदम मिलाकर काम नहीं कर पा रहे हैं। केंद्र सरकार द्वारा जनहित में चलाई गई विभिन्न योजनाओं का लाभ अपने-अपने प्रदेशों की जनता को समुचित तरीके से नहीं दिलवा पा रहें हैं। इससे भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों की प्रदेश के मतदाताओं पर पकड़ कमजोर होती जा रही है। जिस कारण एक-एक कर प्रदेशों में भारतीय जनता पार्टी की सरकारें गिरती जा रही है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा की सरकार ने 2019 के लोकसभा चुनाव में अकेले ही लोकसभा की 303 सीटे जीती थी। देश के 22 करोड़ 90 लाख 75 हजार 170 मतदाताओं ने भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में मतदान किया था जो कुल मतदान के 37.36 प्रतिशत वोट थे। 2014 की तुलना में 2019 में भाजपा को करीबन 5 करोड़ 70 लाख यानि 6.02 प्रतिशत मत अधिक मिले थे। 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को 282 सीट व 31.34 प्रतिशत वोट मिले थे।
2017 तक भारतीय जनता पार्टी ने देश के 71 प्रतिशत आबादी वाले क्षेत्र पर भगवा फहरा दिया था। उस समय 16 प्रदेशों में भाजपा व 6 प्रदेशों में सहयोगी दलों के मुख्यमंत्री थे। लेकिन 2018 से अब तक भाजपा की राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, जम्मू कश्मीर व अब महाराष्ट्र में सरकारें हट चुकी हैं। अब देश के 12 प्रदेशों में ही भाजपा के मुख्यमंत्री बचे हैं। भाजपा का प्रभाव क्षेत्र भी घटकर 42 प्रतिशत आबादी पर ही रह गया है। वर्तमान में भाजपा के 12 व सहयोगी दलों के 6 प्रदेशों में मुख्यमंत्री है।
भाजपा ने 2014 में जब केंद्र में पहली बार अपने बूते सरकार बनायी थी तब देश के 7 राज्यों में भाजपा और उसके सहयोगी दलों की सरकारें थी। 2015 में यह संख्या बढकर 13 हुई व 2016 में 15 हो गई। 2017 में एनडीए की 19 राज्यों में सरकारी बन गई तथा 2018 में यह संख्या बढकर 21 हो गई थी। मगर जून 2018 में पहले जम्मू कश्मीर में पीडीपी से गठबंधन टूटने से वहां की सरकार गिरी। फिर दिसंबर 2018 में एक साथ ही तीन राज्यों में उनकी सरकारें चली गई।
पिछले विधानसभा चुनाव से पूर्व मध्यप्रदेश में लंबे समय से मुख्यमंत्री पद पर काबिज रहे शिवराज सिंह चौहान, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह, राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को लेकर प्रदेश की जनता में भारी विरोध था। केंद्रीय नेतृत्व ने समय रहते उनके स्थान पर अन्य किसी दूसरे नेताओं को उन प्रदेशों की कमान नहीं सौंपी। इस कारण भारतीय जनता पार्टी के गढ़ माने जाने वाले तीनो ही प्रदेशों में भाजपा को करारी हार झेलनी पड़ी थी।
2018 के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को मध्य प्रदेश में 56 सीटों व 3.88 प्रतिशत वोटों का घाटा उठाना पड़ा था। हालांकि वहां भाजपा को कांग्रेस से 47 हजार 827 वोट अधिक मिले थे। फिर भी वहां 15 साल से चल रही भाजपा की सरकार को सत्ता से हटना पड़ा था। वहां के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान व्यापम घोटाले को लेकर भी काफी बदनामी झेल रहे थे। छत्तीसगढ़ में भारतीय जनता पार्टी को इस बार 34 सीटों व 8.04 प्रतिशत वोटों का नुकसान उठाना पड़ा था। भाजपा 49 सीटों से घटकर 15 पर सिमट गई थी। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह पर लम्बे समय से सार्वजनिक वितरण प्रणाली को लेकर आरोप लग रहे थे।
इसी तरह राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का उनकी पार्टी के कार्यकर्ता ही विरोध कर रहे थे। ललित मोदी प्रकरण से मुख्यमंत्री की काफी बदनामी हुयी थी। हालांकि उन्होंने प्रदेश में कई जन कल्याणकारी योजनाएं लागू की लेकिन फिर भी वह अपनी सरकार को नहीं बचा पाई। 2013 के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को राजस्थान में 163 सीटें मिली थी मगर 2018 में उसे 90 सीटों का घाटा उठाना पड़ा और भाजपा की सीटें घटकर 73 ही रह गई। यहां भाजपा को 3.5 प्रतिशत वोटों का नुकसान हुआ जिसका सीधा फायदा कांग्रेस को हुआ। मध्य प्रदेश राजस्थान और छत्तीसगढ़ में अन्य कोई तीसरा मोर्चा वजूद में नहीं होने का लाभ भी कांग्रेस को ही मिला।
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में भाजपा ने शिवसेना के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ा था। जिसमें दोनों दलों को मिलाकर तो पर्याप्त बहुमत मिल गया। लेकिन भाजपा की सीटें 122 से घटकर 105 ही रह गई। गठबंधन के कारण यहां भारतीय जनता पार्टी को 17 सीटों का व 2.06 प्रतिशत वोटों का नुकसान भी उठाना पड़ा। 2014 के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने अकेले चुनाव लड़ कर 122 सीटे जीती थी। मगर इस बार शिवसेना से गठबंधन होने के कारण वह मात्र 154 सीटों पर ही चुनाव लड़ पायी। जिसका खामियाजा भाजपा को महाराष्ट्र में सत्ता गंवा कर चुकाना पड़ा है।
चुनाव परिणामों के बाद महाराष्ट्र में शिवसेना आधे कार्यकाल के लिये अपना मुख्यमंत्री बनाने की बात पर अड़ गई। जिसे भारतीय जनता पार्टी ने मंजूर नहीं किया फलस्वरूप उनका गठबंधन टूट गया। शिवसेना ने तो कांग्रेस व राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के साथ मिलकर उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री बना कर अपनी जिद पूरी कर ली है। मगर वहां सबसे बड़ी पार्टी होने के बाद भी भाजपा को विपक्ष में बैठना पड़ रहा है।
हरियाणा में भी भारतीय जनता पार्टी को इस बार 7 सीटें कम मिली व पार्टी 40 सीटो तक ही पहुंच सकी। वहां भाजपा बहुमत से 6 सीटें दूर रह गयी थी। हरियाणा में भाजपा को कम सीट मिलने का मुख्य कारण मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर से जाटों की नाराजगी को माना गया। मगर समय रहते भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व के प्रयासों से जननायक जनता पार्टी व निर्दलीयों का समर्थन लेकर भाजपा ने फिर से मनोहर लाल खट्टर को मुख्यमंत्री बनवा दिया। लेकिन महाराष्ट्र में जोड़ तोड़ कर बनायी गयी देवेन्द्र फडनवीस सरकार तीन दिन में ही फेल हो गई। 2017 के विधानसभा चुनाव में गुजरात में भी भाजपा की सीटे घटी थी।
हाल ही में कई प्रदेशों में विधानसभा के उपचुनाव हुये जिनमें भाजपा गुजरात में 6 में से 3 सीट व उत्तर प्रदेश की 11 में से 8 सीट ही जीत पाई। राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ के उपचुनाव में भाजपा अपनी पूर्व में जीती हुयी सीटे भी नहीं बचा सकी। पश्चिम बंगाल में भाजपा तीनों सीट हार गई। इसमें खडगपुर सदर की सीट प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष दिलीप घोष के सांसद बनने से रिक्त हुयी थी। बिहार के किशनगंज में भी भाजपा को असादुदीन ओवैसी की ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन के उम्मीदवार से हारना पड़ा था।
कर्नाटक में जुगाड़ से चल रही सरकार को बचाने के लिये भाजपा को विधानसभा की 15 सीटो पर हो रहे उपचुनाव में 6 सीटे जीतनी जरूरी है वरना वहां भी सरकार गिर सकती है। इस तरह देखे तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाने के नाम पर तो देश की जनता खुलकर भाजपा को वोट देती है। लेकिन भाजपा के प्रादेशिक नेताओं को लेकर मतदाताओं के मन में नाराजगी व्याप्त होने लगी हैं।
भाजपा शासित प्रदेशों की सरकारों में भ्रष्टाचार पर रोक लगाने की कोई प्रभावी कार्यवाही नहीं की जा सकी है। प्रदेशों में भी ऐसे नेताओं को कमान सौंपनी होगी जो आम जन से जुड़े हो व सबको साथ लेकर चल सके। युवा नेताओं को आगे लाना होगा तभी देश में भाजपा का प्रभाव बरकरार रह पायेगा। यदि समय रहते भाजपा नेतृत्व अपनी प्रदेश सरकारों की कार्यप्रणाली को सुधारने की दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठायेगा तो प्रदेशों में भाजपा की पकड़ कमजोर होती चली जाएगी। जिसका खामियाजा आगे चलकर भाजपा को देश भर में उठाना पड़ सकता है।

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